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दिवाली की रात हवा में घुल जाता है 'जहर', यहां पढ़िए चौंकने वाली रिपोर्ट

अमर उजाला ब्यूरो, गोरखपुर। Published by: vivek shukla Updated Mon, 02 Nov 2020 09:06 AM IST
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Poison dissolve in air on Diwali night know what is green firecrackers important facts about crackers
सांकेतिक तस्वीर। - फोटो : PTI

दिवाली की रात इतने पटाखे जलाए जाते हैं कि हवा सेहत के लिए हानिकारक हो जाती है। मानक से अधिक शोर और वायु प्रदूषण से मनुष्य से लेकर पंछी तक परेशान हो जाते हैं। दिवाली से पहले और उसके बाद के पिछले कुछ वर्षों के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो इसकी पुष्टि खुद-ब-खुद हो जाती है। वातावरण में सिर्फ धूल कण ही नहीं, सल्फर डाई ऑक्साइड (एसओ-2) और नाइट्रोजन ऑक्साइड (एनओ-2) की मात्रा बहुत ज्यादा हो जाती है। पटाखा जलाना पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। लिहाजा, अमर उजाला ने 'एक युद्ध ...पटाखों के विरुद्ध' अभियान की शुरूआत की है।

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MMMUT - फोटो : अमर उजाला।

मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (एमएमएमयूटी) ने दिवाली से पहले और बाद में औद्योगिक, आवासीय और व्यावसायिक क्षेत्रों में प्रदूषण की जो रिपोर्ट तैयार की है, वह चौंकने वाली है। रिपोर्ट के मुताबिक पटाखों से वातावरण में रेस्पिरेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (आरएसपीएम) और सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर (एसपीएम) की मात्रा डेढ़ गुना बढ़ जाती है। नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाई ऑक्साइड की मात्रा भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के स्तर तक पहुंच जाती है। इससे दम घुटता है। घर के बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। यह शरीर के सभी हिस्सों को प्रभावित करता है। सांस के साथ ही आंख, कान के मरीज भी बढ़ जाते हैं।

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शिक्षक प्रो. गोविंद पांडेय।(फाइल) - फोटो : अमर उजाला।

ग्रीन दिवाली मनाएं
एमएमएमयूटी के पर्यावरणविद एवं शिक्षक प्रो. गोविंद पांडेय ने बताया कि दिवाली से पहले और बाद के पिछले वर्षों के आंकड़े इस बात का स्पष्ट संदेश देते हैं कि पर्यावरण को बचाने के लिए पटाखों से दूरी बनानी जरूरी है। खुशी का इजहार करना है तो बच्चों के साथ ग्रीन दिवाली मनाएं। इससे वातावरण में पीएम-10 और पीएम-2.5 उत्सर्जित नहीं होता है।

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डॉ. अश्विनी मिश्रा।(फाइल) - फोटो : अमर उजाला।

सामान्य व्यक्ति को भी दिक्कत
बीआडी मेडिकल कॉलेज के छाती रोग विशेषज्ञ डॉ. अश्विनी मिश्रा ने बताया कि पटाखों की वजह से हवा में धूल कण, सल्फर और नाइट्रोजन की मात्रा काफी बढ़ जाती है। इससे न सिर्फ सांस के मरीजों को बल्कि सामान्य और स्वस्थ लोगों को भी दिक्कत होती है। पहले से जो सांस के मरीज नहीं होते हैं, उनके फेफड़ों में धूल कण, सल्फर और नाइट्रोजन जम जाते हैं। सांस की नली में सूजन आ जाती है। सामान्य रूप से सांस लेने में दिक्कत आती है। लगता है दमा के मरीज हो गए हैं। सांस के मरीजों में लंग्स अटैक की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे मरीजों को कई बार अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आई है।  

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मौसम विशेषज्ञ कैलाश पांडेय।(फाइल) - फोटो : अमर उजाला।

सिर्फ दीये जलाने की धार्मिक मान्यता
गोरखपुर एनवायरमेंटल एक्शन ग्रुप के मौसम विशेषज्ञ कैलाश पांडेय ने बताया कि दिवाली के बारे में जागरूक होने की जरूरत है। शास्त्रों में दीये जलाने की धार्मिक मान्यता है। कहीं भी आतिशबाजी का जिक्र नहीं है। आतिशबाजी से बचना चाहिए। हम ग्रीन दिवाली भी मना सकते हैं। शासन प्रशासन स्तर पर फिल्टर बढ़ाने की जरूरत है। बड़ी संख्या में पेड़ पौधे लगाए जाएं। इससे प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। 

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