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बांकेबिहारी मंदिर में दीपदान: 1008 दीपों से जगमग हुआ ठाकुरजी का आंगन, 104 वर्ष पुरानी है परंपरा
संवाद न्यूज एजेंसी, मथुरा-वृंदावन
Published by: मुकेश कुमार
Updated Sat, 23 Oct 2021 12:16 AM IST
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बांकेबिहारी मंदिर में जलाए गए 1008 दीप
- फोटो : अमर उजाला
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कार्तिक मास में वृंदावन के ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में दीपदान की अनोखी परंपरा चली आ रही है। इसी के तहत दीपदान महोत्सव में शामिल होकर श्रद्धालु भी पुण्य लाभ अर्जित कर रहे हैं। मंदिर में प्रतिदिन शाम को तेल के 1008 दीपक जलाए जा रहे हैं। शुक्रवार शाम को भी श्रद्धालुओं ने आस्था के दीपक जलाए, जिससे ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर परिसर दीपों की रोशनी से जगमग हो उठा। मंदिर में बिखरती अद्भुत आभा के बीच श्रद्धालु अपने आराध्य की भक्ति में लीन नजर आए।
कार्तिक मास के पहले दिन से कार्तिक पूर्णिमा तक ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर परिसर के गेट नंबर दो के पास चबूतरे पर प्रतिदिन शाम को दीपदान किया जाता है। मंदिर के शयन भोग सेवाधिकारी गोस्वामी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के साथ दीपदान करा रहे हैं।
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बांकेबिहारी मंदिर में जलाए गए 1008 दीप
- फोटो : अमर उजाला
इस दीपदान सेवा की शुरुआत ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत अशोक गोस्वामी के दादा फुंदीलाल गोस्वामी ने लगभग 104 वर्ष पूर्व की थी। इसका अब तक निर्वहन किया जा रहा है। यह दीपदान सिर्फ बांकेबिहारी मंदिर में कार्तिक मास के दौरान होता है।
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ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत अंकित गोस्वामी
- फोटो : अमर उजाला
ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत अंकित गोस्वामी ने कहा कि कार्तिक माह में दीपदान करने से देवता प्रसन्न होते हैं। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भक्त ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर में दीपदान कर ठाकुरजी के श्री चरणों में अपने परिवार में सुख, शांति और समृद्धि की कामना करते हैं।
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ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर
- फोटो : अमर उजाला
शरद पूर्णिमा के बाद ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के खानपान और रहन-सहन में बदलाव आ गया। कहते हैं कि शरद पूर्णिमा से सर्दी का आगमन भी हो जाता है। इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए ठाकुरजी की सेवा में भी बदलाव हो गया है। गुरुवार को पड़वा से ठाकुर श्रीबांकेबिहारी महाराज के मंदिर में भोग सेवा में मौसम के अनुरूप परिवर्तन हो गया है।
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ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर
- फोटो : अमर उजाला
ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत आचार्य प्रह्लाद बल्लभ गोस्वामी ने बताया कि ठाकुरजी को अब हल्की रेशमी पोशाकों के स्थान पर वेलवेट, सनील, ऊनी कपड़े की पोशाकें धारण कराई गईं हैं। ठाकुरजी को सर्दी न लगे, इसके लिए रजत जड़ित शयन शैया पर पशमीने की चादर, शेमल की रुई वाली रजाई, तकिये बिछाए जाते हैं और चांदी की सिगड़ी में अग्नि सुलगाकर गर्भगृह को गर्म रखा जाता है।
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