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पांच दिन की प्रेम कहानी...सदियों से गूंज: ब्रज में शुरू हुआ टेसू-झांझी उत्सव, अनूठी है यह परंपरा
अमर उजाला ब्यूरो, आगरा
Published by: मुकेश कुमार
Updated Sat, 16 Oct 2021 01:36 PM IST
ब्रज में विजयदशमी के अवसर पर शुक्रवार को देवी प्रतिमाओं का विसर्जन और दशानन का पुतला फूंका गया तो वहीं टेसू और झांझी के विवाह उत्सव की तैयारियां भी शुरू हो गईं। महाभारत काल में यह छोटी सी प्रेम कहानी सिर्फ पांच दिन ही चल पाई, लेकिन इसकी गूंज आज भी गीतों के माध्यम से ब्रज में सुनाई देती है।
ब्रज से लेकर बुंदेलखंड तक टेसू और झांझी की यह परंपरा है। हालांकि आज के दौर में यह विलुप्त होती जा रही है। एक दौर था, जब बच्चे और बच्चियां टेसू-झांझी लेकर घर-घर से निकलते थे और गाना गाकर चंदा मांगते थे। टेसू-झांझी विवाह समिति भी बनाई जाती थी। अगली स्लाइड्स में जानिए टेसू और झांझी की प्रेम कहानी के बारे...
किवदंती है कि भीम के पौत्र बर्बरीक (टेसू) को महाभारत का युद्ध देखने आते समय झांझी से प्रेम हो गया था। उन्होंने युद्ध से लौटकर झांझी से विवाह करने का वचन दिया था। लेकिन कौरवों की तरफ से युद्ध करने के कारण श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उनका सिर काट दिया था।
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टेसू तैयार करता बालक
- फोटो : अमर उजाला
वरदान के चलते सिर कटने के बाद भी बर्बरीक (टेसू) जीवित रहे। युद्ध के बाद झांझी की मां ने विवाह के लिए मना कर दिया। इस पर बर्बरीक ने जल समाधि ले ली। झांझी उसी नदी किनारे टेर लगाती रही, लेकिन वह लौट कर नहीं आए। तब से टेसू-झांझी के प्रेम की परंपरा आज तक चली जा रही है।
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टेसू देखता बालक
- फोटो : अमर उजाला
मेरा टेसू यहीं अड़ा, खाने को मांगे दही-बड़ा, दही-बड़ा बहुतेरा, खाने को मुंह टेढ़ा। बचपन की यादों में शुमार टेसू-झांझी उत्सव की यह पंक्तियां अब विलुप्त होने लगी हैं। दशहरा से कार्तिक पूर्णिमा तक चलने वाले इस उत्सव से नए पीढ़ी के बच्चे अनजान हैं।
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टेसू झांझी
- फोटो : अमर उजाला
एक दशक पहले हर साल शहर की गलियों में जब छोटे बच्चे और बच्चियां टेसू-झांझी लेकर घर-घर निकलते थे, गाना गाकर चंदा मांगते थे तो कोई एक परिवार झांझी के लिए जनाती और दूसरा परिवार टेसू की तरफ से बराती होता था। इस अनोख उत्सव का आयोजन कार्तिक पूर्णिमा तक होता है।
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