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Pitru Paksha 2025: 100 साल बाद पितृपक्ष में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण का योग, दुर्लभ है ये खगोलीय संयोग

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: प्रगति चंद Updated Fri, 22 Aug 2025 01:17 PM IST
सार

Pitru Paksha 2025 : पितृपक्ष की शुरुआत सात सितंबर से हो रही है। प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा। इस बार 100 साल बाद पितृपक्ष में चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण का योग बन रहा है। 

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Pitru Paksha 2025  lunar and solar eclipse after 100 years know significance
pitru paksha 2025 - फोटो : istock

पितरों के श्राद्ध और तर्पण का पक्ष सात सितंबर से शुरू हो रहा है। ज्योतिष और खगोलविदों के अनुसार लगभग 100 साल बाद ऐसा संयोग बन रहा है जब पितृपक्ष के दौरान चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण दोनों एक पक्ष में पड़ेंगे। ग्रहण की यह घटना पितरों की शांति, तर्पण और कर्मकांड को बेहद खास बनाएगी। साढ़े तीन घंटे के चंद्रग्रहण का सूतक नौ घंटे पहले लग जाएगा। जबकि सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होने से सूतक नहीं लगेगा। 

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Pitru Paksha 2025  lunar and solar eclipse after 100 years know significance
pitru paksha - फोटो : amar ujala
बीएचयू के ज्योतिष विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. विनय पांडेय ने बताया कि काशी के पंचांगों के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत सात सितंबर से हो रही है। प्रतिपदा का श्राद्ध आठ सितंबर को होगा। इस बार नवमी तिथि की हानि हो रही है। पंचमी और षष्ठी तिथि का श्राद्ध 12 सितंबर को होगा।
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कब लगेगा साल का दूसरा चंद्रग्रहण, क्या भारत में आएगा नजर? - फोटो : अमर उजाला
चंद्रग्रहण सात सितंबर को रात 9:57 बजे शुरू होगा और मोक्ष 1:27 बजे होगा। इसके नौ घंटे पूर्व सूतक काल की शुरुआत हो जाएगी। ग्रहण के दौरान श्राद्धकर्म वर्जित नहीं होते हैं, हालांकि चंद्रग्रहण के सूतक के पूर्व ही तर्पण और श्राद्ध के कार्य हो जाएंगे। वहीं, 21 सितंबर को पितृ विसर्जन पर सूर्यग्रहण पड़ रहा है।

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Pitru Paksha 2025  lunar and solar eclipse after 100 years know significance
साल 2025 में कब-कब दिखाई देगा सूर्यग्रहण - फोटो : Freepik
सूर्यग्रहण रात 11 बजे शुरू होगा और 22 सितंबर को सुबह 3:24 बजे पर खत्म होगा। हालांकि इस सूर्यग्रहण को भारत में नहीं देखा जा सकेगा। यह ग्रहण कन्या राशि और उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में लगेगा। इसलिए इसका ज्योतिषीय महत्व है। 
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सांकेतिक तस्वीर - फोटो : freepik
ज्योतिषाचार्य दैवज्ञ कृष्ण शास्त्री ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में ग्रहण का लगना शुभ-अशुभ फल को और प्रभावशाली बनाता है। यह घटना पितरों की शांति और तर्पण कर्मकांड को विशेष महत्व देने वाली होगी।

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