बंजर जमीन: घास तक नहीं उगती थी, आज लहलहा रहीं फसलें, ऊसर और ऊबड़-खाबड़ भूमि बन गई उपजाऊ
इगलास, गंगीरी, लोधा और बिजौली में करीब 6000 हजार हेक्टेयर बंजर भूमि है। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश सोडिक लैंड रिक्लेमेशन परियोजना के तहत कार्य शुरू किया गया और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट मैपिंग कर 28 गांवों की 2855 हेक्टेयर बंजर भूमि चिह्नित की गई। साल 2018 में 28 गांवों की 1165 हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बना दिया गया।
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ऊबड़-खाबड़ बंजर जमीन, जहां फसल तो दूर घास तक नहीं उगती थी, किसानों ने भी हार मान ली थी और जमीन खाली पड़ी थी। कृषि विभाग ने तकनीकी मदद की, देसी तरीकों का प्रयोग किया, किसानों ने मेहनत की। ये प्रयास रंग लाए और करीब 1980 हेक्टेयर भूमि उपजाऊ बन गई है। आज इसमें किसान धान, गेहूं और आलू की पैदावार ले रहे हैं। किसानों का कहना है कि जिस जमीन में कभी कुछ नहीं उगता था, जहां वहां पर प्रति बीघा 2.5 क्विंटल धान और चार बीघा प्रति क्विंटल गेहूं की पैदावार हो रही है।
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार अलीगढ़ जिले में कुल कृषि योग्य भूमि 3.04 लाख हेक्टेयर है। इगलास, गंगीरी, लोधा और बिजौली में करीब 6000 हजार हेक्टेयर बंजर भूमि है। वर्ष 2012 में उत्तर प्रदेश सोडिक लैंड रिक्लेमेशन परियोजना के तहत कार्य शुरू किया गया और रिमोट सेंसिंग सैटेलाइट मैपिंग कर 28 गांवों की 2855 हेक्टेयर बंजर भूमि चिह्नित की गई। साल 2018 में भोजपुर, आनंदपुर, सहारा, जारौठी, पैडरा, पहाड़ीपुर आदि 28 गांवों के 8400 किसानों की 1165 हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बना दिया गया।
भूमि सुधार के लिए 2022-2023 से 2025-2026 पंडित दीनदयाल किसान समृद्धि योजना अलीगढ़ सहित प्रदेश के 74 जिलों में शुरू की गई। केवल गौतमबुद्धनगर जिला इस योजना में शामिल नहीं था। इस योजना में भी इससे मानपुर, भौरा गौरवा, शहरी मदनगढ़ी, कलंजरी, गढ़ी धनु, मोहकमपुर, हरौथा, अमरपुर नेहरा, गंगीरी, बिजौली आदि गांवों में करीब 815 हेक्टेयर भूमि को उपजाऊ बनाया गया है। 835 हेक्टेयर पर अभी कार्य चल रहा है।
बंजर, जल जमाव वाली भूमि को कृषि योग्य बनाने के लिए किसानों के आवेदन मिल रहे हैं। देसी तकनीक से ऐसी भूमि को उपजाऊ बनाया जा रहा है। किसानों को भी तकनीक की जानकारी दी जा रही है। 350 हेक्टेयर भूमि को कृषि योग्य बनाने का नया लक्ष्य मिला है, इसके लिए तैयारियां चल रही हैं।- डॉ दिव्या मौर्य, भूमि संरक्षण अधिकारी
नौरथा, बिरनेर, पहाड़गढ़ी और उत्तमगढ़ी के बीच करीब 200 बीघा से भी अधिक भूमि बंजर रहती थी। यहां फसल उगाना तो दूर घास तक नहीं उगती थी। आज तकनीकी मदद और किसानों की खुद की मेहनत से यहां खेती हो रही है। -वीरेंद्र बघेल, बिरनेर
ककेथल के आसपास सैकड़ों बीघा जमीन बंजर पड़ी हुई थी, इसका समतलीकरण कराया गया। कृषि विभाग और मनरेगा से भूमि सुधार के कार्य कराए गए। आज जहां गेहूं और धान की पैदावार हो रही है।-सत्यप्रकाश प्रजापति ककेथल
ऐसे बनाया भूमि को उपजाऊ
रिमोट सेंसिंग तकनीक से सैटेलाइट मैपिंग की और तीन चरणों में भूमि सुधार के कार्य शुरू किए गए। पहले चरण में जमीन को समतल कर मेड़बंदी की गई, फिर इसमें पानी भरकर धान की पुआल बिछा दी गई। इससे खाद बना और जमीन में जीवांश कार्बन की मात्रा बढ़ने लगी और मिट्टी में सोडियम की मात्रा कम होने लगी। यह प्रक्रिया लगातार दोहराई गई। इसके बाद गहरी जुताई कराकर ढेंचा की बुवाई कराई, जमीन को हरी खाद मिली। कृषि विशेषज्ञों की माने तो ढेंचा वातावरण से नाइट्रोजन अवशोषित कर उर्वरा शक्ति बढ़ाता है। इसके बाद गेहूं और धान की खेती कराई गई।
यह भी जानें
- 3.04 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि है जिले में
- 6000 हेक्टेयर बंजर भूमि जिले में चिह्नित है
- 4020 हेक्टेयर भूमि जिले में अभी भी बंजर है