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UP : हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी- आंख मूंदकर असाधारण शक्ति का प्रयोग नहीं कर सकते ट्रायल कोर्ट
अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Thu, 18 Sep 2025 10:38 AM IST
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सार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-319 के तहत आरोपी को तलब करना ट्रायल कोर्ट की असाधारण शक्ति है जिसका इस्तेमाल आंख मूंदकर नहीं किया जा सकता।

अदालत।
- फोटो : Adobe Stock
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विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-319 के तहत आरोपी को तलब करना ट्रायल कोर्ट की असाधारण शक्ति है जिसका इस्तेमाल आंख मूंदकर नहीं किया जा सकता। इसका प्रयोग करते समय ट्रायल कोर्ट को आकलन करना चाहिए कि आरोपी को बुलाने के लिए गवाही में पर्याप्त बल है या नहीं।

इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति समीर जैन की अदालत ने 15 साल पुराने मामले में राम नारायण, राम दारोगा व अन्य को बतौर आरोपी तलब करने के ट्रायल कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया। मामला चंदौली जिले का है। 12 नवंबर 2010 की घटना की एफआईआर तीन माह बाद 12 फरवरी 2011 को मजिस्ट्रेट के आदेश पर दर्ज की गई थी। पुलिस जांच में पुनरीक्षणकर्ताओं की संलिप्तता झूठी पाई गई।
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आरोप पत्र में नाम शामिल नहीं किया गया लेकिन ट्रायल के दौरान पीड़ित पक्ष के बयानों के आधार पर उन्हें 30 अक्तूबर 2023 के आदेश से बतौर आरोपी ट्रायल का सामना करने के लिए तलब कर लिया गया। इस आदेश के खिलाफ याचियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट ने पाया कि मामले की एफआईआर दर्ज करने में अत्यधिक देरी हुई थी और गवाहों की गवाही की गुणवत्ता पर भी सवाल उठते हैं जिन्हें ट्रायल कोर्ट ने नजर अंदाज कर दिया। लिहाजा, कोर्ट ने याचियों की पुनरीक्षण याचिका स्वीकार कर ली।
सीआरपीसी की धारा-319 का इस्तेमाल तभी हो सकता है जब परीक्षण के दौरान आए साक्ष्य इतने प्रबल हों कि नए आरोपी को मुकदमे का सामना कराना अनिवार्य लगे। - इलाहाबाद हाईकोर्ट