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High Court : 2017 से पहले 16 साल से अधिक उम्र की पत्नी के साथ संबंध अपराध नहीं, कोर्ट ने आरोपी को किया बरी

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Thu, 16 Oct 2025 12:03 PM IST
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सार

हाईकोर्ट ने कानपुर के एक मामले में 2005 की घटना में विवाह के बाद बने शारीरिक संबंध को अपराध मानते हुए ट्रायल कोर्ट की ओर सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने इस्लाम उर्फ पलटू की अपील पर दिया।

High Court: Relationship with wife above 16 years of age before 2017 is not a crime, court acquits the accused
अदालत का फैसला। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि वर्ष 2017 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले 16 से 18 साल उम्र की पत्नी संग शारीरिक संबंध आईपीसी के तहत दुष्कर्म नहीं था। यह टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने 2005 की घटना में विवाह के बाद बने शारीरिक संबंध को अपराध मानते हुए ट्रायल कोर्ट की ओर सुनाई गई सजा और दोषसिद्धि को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति अनिल कुमार की खंडपीठ ने इस्लाम उर्फ पलटू की अपील पर दिया। कानपुर नगर निवासी अपीलकर्ता पर पीड़िता के पिता ने 2005 में दुष्कर्म, अपहरण सहित कई आरोपों में मुकदमा दर्ज कराया था।

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आरोप लगाया था कि उसकी 16 वर्षीय बेटी को बहला-फुसला कर भगा ले गया और दुष्कर्म किया। वहीं, आरोपी का कहना था कि दोनों मुस्लिम हैं और उन्होंने सहमति से पीड़िता से निकाह किया था। ट्रायल कोर्ट ने पीड़िता को नाबालिग मानते हुए उसकी सहमति को महत्वहीन मानते हुए दुष्कर्म, अपहरण, विवाह के लिए मजबूर करने के इरादे से अपहरण का दोषी करार देते हुए सजा सुनाई। इस फैसले को अपीलकर्ता ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।

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पीड़िता और अपीलकर्ता दोनों मुस्लिम

अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि पीड़िता की चिकित्सा जांच रिपोर्ट के अनुसार उसकी उम्र 16 वर्ष से अधिक थी। हालांकि, 18 वर्ष से अधिक नहीं थी। पीड़िता और अपीलकर्ता दोनों मुस्लिम थे और उन्होंने निकाह किया था। पीड़िता के बयान से यह स्पष्ट था कि शारीरिक संबंध विवाह के बाद स्थापित हुए थे। ऐसे में उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

कोर्ट ने 2017 में सुप्रीम कोर्ट के इंडिपेंडेंट थॉट बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के फैसले का हवाला दिया। इसके तहत 18 वर्ष से कम आयु की पत्नी के साथ यौन संबंध भी बलात्कार माना गया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में स्पष्ट किया था कि यह फैसला भविष्य के प्रभाव से लागू होगा। इसलिए 2005 की घटना में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लागू नहीं होगा। कोर्ट ने अपीलकर्ता को दुष्कर्म के साथ ही अन्य आरोप से बरी कर दिया और अपील स्वीकार कर ली।

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