सनातनी परंपरा में ऊंचे मापदंडों पर स्थापित महामंडलेश्वर पद पर संन्यासियों के पट्टाभिषेक को लेकर जूना अखाड़ा हमेशा विवादों में घिरा रहा है। कभी राधे मां और शराब कारोबारी सचिन दत्ता को संन्यास दिलाकर महामंडलेश्वर बनाने के जूना अखाड़े के निर्णय पर घमासान मचा, तो कभी अनुसूचित जाति के संत कन्हैया प्रभु नंद को लेकर। अब हरिद्वार कुंभ से पहले इस अखाड़े ने संतों में सामाजिक दूरी पाटने के लिए वंचित व उपेक्षित वर्ग के संतों को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय लिया है। इससे जातीय भेदभाव तो समाप्त होगा ही, साथ ही अखाड़े का भी विस्तार होगा।
हरिद्वार कुंभ की तैयारियां अंतिम दौर में हैं। इससे पहले माघ मेले में पहुंचे जूना अखाड़े के संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि ने अखाड़े के कई प्रमुख संतों की मौजूदगी में अनुसूचित जनजाति के संतों की महामंडलेश्वर पद पर ताजपोशी का निर्णय लिया है। कहा जा रहा है कि जूना अखाड़े के इस एजेंडे की शुरुआत बीते 2019 के प्रयागराज कुंभ में ही हो गई थी। तब किन्नरों को भी नए अखाड़े के रूप में मान्यता देकर जूना ने सबको चौंका दिया था।
अब उसी एजेंडे को हरिद्वार कुंभ में आगे बढ़ाने की जमीन तैयार की गई है। अनुसूचित जनजाति के ऐसे संतों को संन्यास दीक्षा दिलाई जा चुकी है। लेकिन अभी उनके नाम का खुलासा नहीं किया जा रहा है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में पाए जाने वाले मुसहर, डोम, धरिकार जैसी उपेक्षित और वंचित जातियों के संतों को महामंडलेश्वर पद पर सुशोभित कराया जाएगा। शुक्रवार को इसकी पुष्टि जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि ने अमर उजाला से बातचीत में की।
उन्होंने बताया कि इस सूची में कुछ जुलाहे भी शामिल हैं। किसी भी जाति, वर्ग से जुड़े लोग जो आना चाहते हैं, उनके लिए जूना अखाड़े के द्वार खुले हैं। उपेक्षित और वंचित समाज के संतों को संन्यास दिलाकर हरिद्वार कुंभ में महामंडलेश्वर बनाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पिछले कुंभ में जूना अखाड़े ने कन्हैया प्रभुनंद गिरि समेत अनुसूचित जाति-जनजाति के कई संतों को महामंडलेश्वर बनाया था।
- हर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए जाने की अपनी अलग-अलग परंपराएं हैं। लेकिन योग्यता एक ही होती है। वेद, पुराण और शास्त्रों के ज्ञाता को ही इस पद पर आसीन किया जाता है। - महंत नरेंद्र गिरि, अध्यक्ष-अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद।
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सनातनी परंपरा में ऊंचे मापदंडों पर स्थापित महामंडलेश्वर पद पर संन्यासियों के पट्टाभिषेक को लेकर जूना अखाड़ा हमेशा विवादों में घिरा रहा है। कभी राधे मां और शराब कारोबारी सचिन दत्ता को संन्यास दिलाकर महामंडलेश्वर बनाने के जूना अखाड़े के निर्णय पर घमासान मचा, तो कभी अनुसूचित जाति के संत कन्हैया प्रभु नंद को लेकर। अब हरिद्वार कुंभ से पहले इस अखाड़े ने संतों में सामाजिक दूरी पाटने के लिए वंचित व उपेक्षित वर्ग के संतों को महामंडलेश्वर बनाने का निर्णय लिया है। इससे जातीय भेदभाव तो समाप्त होगा ही, साथ ही अखाड़े का भी विस्तार होगा।
हरिद्वार कुंभ की तैयारियां अंतिम दौर में हैं। इससे पहले माघ मेले में पहुंचे जूना अखाड़े के संरक्षक और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के महामंत्री महंत हरि गिरि ने अखाड़े के कई प्रमुख संतों की मौजूदगी में अनुसूचित जनजाति के संतों की महामंडलेश्वर पद पर ताजपोशी का निर्णय लिया है। कहा जा रहा है कि जूना अखाड़े के इस एजेंडे की शुरुआत बीते 2019 के प्रयागराज कुंभ में ही हो गई थी। तब किन्नरों को भी नए अखाड़े के रूप में मान्यता देकर जूना ने सबको चौंका दिया था।
अब उसी एजेंडे को हरिद्वार कुंभ में आगे बढ़ाने की जमीन तैयार की गई है। अनुसूचित जनजाति के ऐसे संतों को संन्यास दीक्षा दिलाई जा चुकी है। लेकिन अभी उनके नाम का खुलासा नहीं किया जा रहा है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और बिहार में पाए जाने वाले मुसहर, डोम, धरिकार जैसी उपेक्षित और वंचित जातियों के संतों को महामंडलेश्वर पद पर सुशोभित कराया जाएगा। शुक्रवार को इसकी पुष्टि जूना अखाड़े के संरक्षक महंत हरि गिरि ने अमर उजाला से बातचीत में की।
उन्होंने बताया कि इस सूची में कुछ जुलाहे भी शामिल हैं। किसी भी जाति, वर्ग से जुड़े लोग जो आना चाहते हैं, उनके लिए जूना अखाड़े के द्वार खुले हैं। उपेक्षित और वंचित समाज के संतों को संन्यास दिलाकर हरिद्वार कुंभ में महामंडलेश्वर बनाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पिछले कुंभ में जूना अखाड़े ने कन्हैया प्रभुनंद गिरि समेत अनुसूचित जाति-जनजाति के कई संतों को महामंडलेश्वर बनाया था।
- हर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनाए जाने की अपनी अलग-अलग परंपराएं हैं। लेकिन योग्यता एक ही होती है। वेद, पुराण और शास्त्रों के ज्ञाता को ही इस पद पर आसीन किया जाता है। - महंत नरेंद्र गिरि, अध्यक्ष-अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद।