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Magh Mela : कल्पवासियों का भरोसा बने प्रयागवाल आजादी की जंग में रहे हैं भागीदार, कई पीढ़ियों से कायम है रिश्ता

योगेश नारायण दीक्षित, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 17 Dec 2025 02:10 PM IST
सार

Prayagwal Role In Magh Mela : पवित्र माघ माह में तीर्थराज प्रयागराज में संगम तट पर लाखों कल्पवासी पुण्य लाभ के लिए जुटने वाले हैं। ये कल्पवासी संगमनगरी के प्रयागवालों के यजमान बनकर हर वर्ष नियमित गंगास्नान से लेकर पूजापाठ तक करते हैं। प्रयागवाल और कल्पवासियों का यह रिश्ता विश्वास और भक्ति की ऐसी डोर से बंधा है जिसे पीढ़ियों ने निभाया है। इन्हीं प्रयागवालों को यहां आजादी की प्रथम जंग का नींव का पत्थर भी माना जाता है।

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Prayagwals have become the trust of Kalpvasis, they have been participants in the freedom struggle
माघ मेले में भूमि पूजन करते प्रयागवाल समाज के लोग। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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प्रयागराज का ऐतिहासिक महा माघ मेला शुरू होने जा रहा है। उम्मीद की जा रही है कि इस बार 20 लाख से अधिक कल्पवासी एक माह से अधिक के कठिन तप और गंगास्नान से पुण्य कमाएंगे। इन कल्पवासियों के लिए शासन-प्रशासन सुविधाएं उपलब्ध कराने के प्रयास में जुटा है। लेकिन, लाखों कल्पवासी और तीर्थयात्री हर वर्ष जिस भरोसे और विश्वास के बल पर प्रयागराज की पवित्र भूमि पर आते हैं, उन्हें यहां के लोग प्रयागवाल कहते हैं। कल्पवासियों को प्रयागवाल अपना यजमान कहते हैं और तीर्थयात्री उनको अपना तीर्थपुरोहित मानकर सम्मान और दान देते हैं।

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कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी एआई जैसी तकनीक के सहारे सारा ज्ञान मुट्ठी में करने का इरादा रखने वाली पीढ़ी को इन प्रयागवाल की बही (पोथियों) को एक बार जरूर देखना चाहिए। इनके पास वैज्ञानिक और तकनीकी ढंग से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई प्रदेशों के निवासियों की वंशावलियां कई पीढ़ियों से सुरक्षित हैं। तीर्थ पुरोहित धीरज और सागर पांडे बताते हैं कि वरिष्ठ प्रयागवालों ने अपने इतिहास और सामाजिक सरोकारों में सहभागिता के ऐतिहासिक संस्मरण ढंग से संजोकर रखे हैं।

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उनका मानना है कि तीर्थराज प्रयाग की प्राचीनता संग ही प्रयागवालों का इतिहास जुड़ा है। आर्य मुनियों और भरद्वाज, अत्रि और दुर्वासा जैसे तपी ऋषियों के संग उनका संबंध रहा है। वैसे तो प्रयागराज के तीर्थपुरोहितों को ही प्रयागवाल कहा जाता रहा है, लेकिन कालांतर में इनकी दो शाखाएं हो गईं। पहली पीढ़ियां और दूसरी परदेसी। इनकी यजमानी का आधार क्षेत्र और खानदान के आधार पर चलता है जिससे तीर्थयात्रियों को पूजा-पाठ कराने में सुविधा रहती है।

इतिहासकार बताते हैं कि 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की रूपरेखा प्रयागवालों के बीच ही तैयार की गई थी। रानी लक्ष्मीबाई के तीर्थपुरोहित यहीं थे और झांसी की रानी ने उन्हीं के बीच आकर अंग्रेजों के खिलाफ जंग की रणनीति बनाई थी। बताते हैं कि महगांव के मौलवी लियाकात अली ने तत्कालीन इलाहाबाद के प्रयागवाल ब्राह्मणों के सहयोग से ही 6 जून 1857 को अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई का बिगुल फूंका था। प्रयागवाल संगम क्षेत्र में टैक्स लगाए जाने से नाराज थे और उन्हें ईसाई मिशनरियों के धर्म परिवर्तन के चक्रव्यूह से लोगों को बाहर निकालने का यह अच्छा अवसर सूझा था।

इतिहास में दर्ज है कि शिवाजी आगरा से निकलने के बाद प्रयागराज के दारागंज में एक तीर्थ पुरोहित के परिवार में रहे थे। प्रयागवाल परिवार की सेवा और राष्ट्रभक्ति से प्रसन्न होकर उन्होंने अपने पुत्र संभाजी को उन्हीं के साथ रहने दिया था। सुखद यह है कि प्रयागवालों की नई पौध सोशल मीडिया और तकनीक का सहारा लेकर महा माघ को भी यादगार बनाने के प्रयास में जुटी है।

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