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Barabanki News: पति व पीड़िता के बयान में ही विरोधाभास, सामूहिक दुष्कर्म में आरोपी बरी
संवाद न्यूज एजेंसी, बाराबंकी
Updated Thu, 18 Dec 2025 10:25 PM IST
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श्रुतिमान शुक्ल
बाराबंकी। नौ साल पहले सुबेहा थाने में दर्ज हुई सामूहिक दुष्कर्म का मामला अदालत में टिक नहीं सका। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि दुष्कर्म जैसे मामलों में पीड़िता का एकल बयान भी साक्ष्य के रूप में पर्याप्त हो सकता है, लेकिन इस प्रकरण में पीड़िता और उसके पति के बयानों में गंभीर और बुनियादी विरोधाभास पाए गए।
मामला वर्ष 2016 का है। महिला के पति ने अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र देकर आरोप लगाया था कि 10 अगस्त 2016 की शाम वह अपनी पत्नी को दवा कराने ले जा रहा था। इसी दौरान सड़क पर मिले विवेक और तीन अज्ञात लोगों ने उन्हें रोक लिया और पत्नी काे खींच ले गए। उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। अदालत के आदेश पर करीब दो माह बाद 12 अक्टूबर 2016 को मुकदमा दर्ज किया गया। विवेचना के बाद मामला अदालत पहुंचा, जहां अभियोजन पक्ष की ओर से वादी मुकदमा, पीड़िता, पुलिसकर्मी और चिकित्सक समेत कुल छह गवाह पेश किए गए। सुनवाई के दौरान कई अहम तथ्य सामने आए। अदालत को बताया गया कि दुष्कर्म की घटना से आठ दिन पहले दोनों पक्षों के बीच मारपीट की घटना हुई थी, जिसमें पुलिस ने दोनों परिवारों के खिलाफ पाबंदी की कार्रवाई की थी। इस पृष्ठभूमि ने मामले में पुरानी रंजिश की आशंका को और मजबूत कर दिया। इतना ही नहीं, जिस स्थान को घटनास्थल बताया गया था, वहां के दुकानदारों और स्थानीय लोगों ने अपने बयानों में किसी भी प्रकार की ऐसी घटना से इन्कार किया। अभियोजन की कहानी को न तो प्रत्यक्षदर्शी मिले और न ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य मजबूत साबित हो सके। समय और घटना के तरीके को लेकर पति-पत्नी के कथन एक-दूसरे से मेल नहीं खा सके। अपर सत्र न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपी विवेक को दोषमुक्त करते हुए कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य घटना की पुष्टि नहीं करते।
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बाराबंकी। नौ साल पहले सुबेहा थाने में दर्ज हुई सामूहिक दुष्कर्म का मामला अदालत में टिक नहीं सका। फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सुनवाई पूरी करते हुए आरोपी को बरी कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी स्पष्ट किया कि दुष्कर्म जैसे मामलों में पीड़िता का एकल बयान भी साक्ष्य के रूप में पर्याप्त हो सकता है, लेकिन इस प्रकरण में पीड़िता और उसके पति के बयानों में गंभीर और बुनियादी विरोधाभास पाए गए।
मामला वर्ष 2016 का है। महिला के पति ने अदालत में धारा 156(3) के तहत प्रार्थनापत्र देकर आरोप लगाया था कि 10 अगस्त 2016 की शाम वह अपनी पत्नी को दवा कराने ले जा रहा था। इसी दौरान सड़क पर मिले विवेक और तीन अज्ञात लोगों ने उन्हें रोक लिया और पत्नी काे खींच ले गए। उनके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। अदालत के आदेश पर करीब दो माह बाद 12 अक्टूबर 2016 को मुकदमा दर्ज किया गया। विवेचना के बाद मामला अदालत पहुंचा, जहां अभियोजन पक्ष की ओर से वादी मुकदमा, पीड़िता, पुलिसकर्मी और चिकित्सक समेत कुल छह गवाह पेश किए गए। सुनवाई के दौरान कई अहम तथ्य सामने आए। अदालत को बताया गया कि दुष्कर्म की घटना से आठ दिन पहले दोनों पक्षों के बीच मारपीट की घटना हुई थी, जिसमें पुलिस ने दोनों परिवारों के खिलाफ पाबंदी की कार्रवाई की थी। इस पृष्ठभूमि ने मामले में पुरानी रंजिश की आशंका को और मजबूत कर दिया। इतना ही नहीं, जिस स्थान को घटनास्थल बताया गया था, वहां के दुकानदारों और स्थानीय लोगों ने अपने बयानों में किसी भी प्रकार की ऐसी घटना से इन्कार किया। अभियोजन की कहानी को न तो प्रत्यक्षदर्शी मिले और न ही परिस्थितिजन्य साक्ष्य मजबूत साबित हो सके। समय और घटना के तरीके को लेकर पति-पत्नी के कथन एक-दूसरे से मेल नहीं खा सके। अपर सत्र न्यायाधीश इंद्रजीत सिंह फास्ट ट्रैक कोर्ट ने आरोपी विवेक को दोषमुक्त करते हुए कहा कि प्रस्तुत साक्ष्य घटना की पुष्टि नहीं करते।
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