{"_id":"6935cf4c9356a4baf60f65d5","slug":"nrc-is-empty-children-are-suffering-from-malnutrition-badaun-news-c-123-1-sbly1001-152349-2025-12-08","type":"story","status":"publish","title_hn":"Budaun News: एनआरसी खाली... कुपोषण से जूझ रहे बच्चे","category":{"title":"City & states","title_hn":"शहर और राज्य","slug":"city-and-states"}}
Budaun News: एनआरसी खाली... कुपोषण से जूझ रहे बच्चे
विज्ञापन
जिला अस्पताल में स्थित एनआरसी। संवाद
- फोटो : udhampur news
विज्ञापन
बदायूं। जिले में कुपोषण मुक्त अभियान पूरी तरह बेपटरी है। स्थिति यह है कि जहां एक ओर जिले में 2000 से ज्यादा बच्चे अति कुपोषण से जूझ रहे हैं, वहीं जिला अस्पताल में संचालित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में केवल दो बच्चे ही भर्ती हैं। जिम्मेदार विभाग कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या तो चिह्नित कर देता है, लेकिन उन्हें उचित उपचार दिलाने और एनआरसी तक पहुंचाने में बेहद ढिलाई बरती जा रही है।
जिला अस्पताल में एनआरसी का मुख्य उद्देश्य गंभीर कुपोषित बच्चों को चिकित्सकीय निगरानी, पौष्टिक भोजन, नियमित जांच और स्वास्थ्य परामर्श उपलब्ध कराना है। यहां भर्ती बच्चों की 14 दिन तक विशेष देखभाल दी जाती है, ताकि उनका वजन और स्वास्थ्य में सुधार हो सके, लेकिन आंकड़ों और धरातल की स्थिति में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है।
अति कुपोषित श्रेणी के 2000 से ज्यादा बच्चे घरों और गांवों में उपचार से वंचित हैं, जबकि एनआरसी में सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी उनका उपयोग नहीं हो पा रहा। अधिकारियों का मानना है कि बच्चों के कम पहुंचने के पीछे जागरूकता की कमी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की ओर से रेफरल में ढिलाई और कई परिवारों का अस्पताल में भर्ती कराने से हिचकना प्रमुख कारण हैं। कई माता-पिता कामकाज छोड़कर बच्चे के साथ अस्पताल में रुकने को तैयार नहीं होते, जिसके कारण गंभीर कुपोषित बच्चे उपचार से वंचित रह जाते हैं।
सामुदायिक प्रबंधन इस प्रकार करता है काम
अति कुपोषित बच्चा पहचान में आते ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उसे टीकाकरण दिवस पर एएनएम को दिखाती हैं। यदि एएनएम को लगता है कि खानपान सुधार, स्वच्छता और कुछ दवाओं से बच्चा ठीक हो सकता है तो वह आंगनबाड़ी को इसकी जानकारी देकर सामुदायिक स्तर पर सुधार की प्रक्रिया करती हैं।
संस्थागत प्रबंधन इस प्रकार करता है काम
अगर बच्चा गंभीर अति कुपोषण की स्थिति में है और सामान्य उपायों से सुधार संभव नहीं दिखता तो एएनएम उसे डॉक्टर के पास रेफर करती हैं। यहां से बच्चे को एनआरसी में भर्ती किया जाता है, लेकिन यहां पर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही देखने काे मिल रही है। आंगनबाड़ी, एएनएम और डॉक्टर उनको जिला अस्पताल भेज ही नहीं रहे हैं। यही वजह है कि एनआरसी के 10 बेड में अधिकांश काफी समय से खाली चल रहे हैं।
बच्चे के साथ-साथ मां को भी मिलता है बेहतर भोजन और 100 रुपये रोजाना भत्ता
जिला अस्पताल में स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र कुल 10 बेड का है। यहां पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चे के साथ उनकी मांताएं भी रहती हैं। 14 दिन के प्रवास के दौरान बच्चे के रहने, खाने और इलाज की पूरी व्यवस्था की जाती है। बच्चे के साथ रहने वाली मां को निशुल्क भोजन के साथ 100 रुपये प्रतिदिन भत्ता भी दिया जाता है। वहीं आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बच्चे को लेकर आती हैं तो उन्हें भी भत्ता मिलता है। एंबुलेंस से लाने-ले जाने की सुविधा भी उपलब्ध है।
पोषण पुनर्वास केंद्र में जो भी बच्चा पहुंचता है, उसका गंभीरता से इलाज किया जाता है, ताकि बच्चों को जल्द से जल्द सामान्य श्रेणी में लाया जा सके। -डॉ. अलंकार सोलंकी, प्रभारी पोषण पुनर्वास केंद्र
Trending Videos
जिला अस्पताल में एनआरसी का मुख्य उद्देश्य गंभीर कुपोषित बच्चों को चिकित्सकीय निगरानी, पौष्टिक भोजन, नियमित जांच और स्वास्थ्य परामर्श उपलब्ध कराना है। यहां भर्ती बच्चों की 14 दिन तक विशेष देखभाल दी जाती है, ताकि उनका वजन और स्वास्थ्य में सुधार हो सके, लेकिन आंकड़ों और धरातल की स्थिति में बड़ा अंतर दिखाई दे रहा है।
विज्ञापन
विज्ञापन
अति कुपोषित श्रेणी के 2000 से ज्यादा बच्चे घरों और गांवों में उपचार से वंचित हैं, जबकि एनआरसी में सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी उनका उपयोग नहीं हो पा रहा। अधिकारियों का मानना है कि बच्चों के कम पहुंचने के पीछे जागरूकता की कमी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता की ओर से रेफरल में ढिलाई और कई परिवारों का अस्पताल में भर्ती कराने से हिचकना प्रमुख कारण हैं। कई माता-पिता कामकाज छोड़कर बच्चे के साथ अस्पताल में रुकने को तैयार नहीं होते, जिसके कारण गंभीर कुपोषित बच्चे उपचार से वंचित रह जाते हैं।
सामुदायिक प्रबंधन इस प्रकार करता है काम
अति कुपोषित बच्चा पहचान में आते ही आंगनबाड़ी कार्यकर्ता उसे टीकाकरण दिवस पर एएनएम को दिखाती हैं। यदि एएनएम को लगता है कि खानपान सुधार, स्वच्छता और कुछ दवाओं से बच्चा ठीक हो सकता है तो वह आंगनबाड़ी को इसकी जानकारी देकर सामुदायिक स्तर पर सुधार की प्रक्रिया करती हैं।
संस्थागत प्रबंधन इस प्रकार करता है काम
अगर बच्चा गंभीर अति कुपोषण की स्थिति में है और सामान्य उपायों से सुधार संभव नहीं दिखता तो एएनएम उसे डॉक्टर के पास रेफर करती हैं। यहां से बच्चे को एनआरसी में भर्ती किया जाता है, लेकिन यहां पर स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही देखने काे मिल रही है। आंगनबाड़ी, एएनएम और डॉक्टर उनको जिला अस्पताल भेज ही नहीं रहे हैं। यही वजह है कि एनआरसी के 10 बेड में अधिकांश काफी समय से खाली चल रहे हैं।
बच्चे के साथ-साथ मां को भी मिलता है बेहतर भोजन और 100 रुपये रोजाना भत्ता
जिला अस्पताल में स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र कुल 10 बेड का है। यहां पांच वर्ष तक के कुपोषित बच्चे के साथ उनकी मांताएं भी रहती हैं। 14 दिन के प्रवास के दौरान बच्चे के रहने, खाने और इलाज की पूरी व्यवस्था की जाती है। बच्चे के साथ रहने वाली मां को निशुल्क भोजन के साथ 100 रुपये प्रतिदिन भत्ता भी दिया जाता है। वहीं आशा और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बच्चे को लेकर आती हैं तो उन्हें भी भत्ता मिलता है। एंबुलेंस से लाने-ले जाने की सुविधा भी उपलब्ध है।
पोषण पुनर्वास केंद्र में जो भी बच्चा पहुंचता है, उसका गंभीरता से इलाज किया जाता है, ताकि बच्चों को जल्द से जल्द सामान्य श्रेणी में लाया जा सके। -डॉ. अलंकार सोलंकी, प्रभारी पोषण पुनर्वास केंद्र
