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पीएम ने लकड़ी के खिलौने बोला तो मन हुआ प्रफुल्लित
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मन की बात कार्यक्रम के दौरान पीएम ने इन लकड़ी के खिलौने के बारे में उल्लेख किया। जिसे टीवी स्क्री?
- फोटो : CHITRAKOOT
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चित्रकूट। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात में जैसे ही चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने का उच्चारण सुनाई पड़ा तो इस काम से जुड़े शिल्पकारों का मन प्रफुल्लित हो उठा। लेकिन पीएम तक अपनी बात पहुंचाने की उम्मीद अधूरी रह गई। पीएम ने उनके व्यवसाय को बढ़ावा देने की बात कही तो उनका दर्द दूर हो गया। लकड़ी के खिलौने बनाने वालों को पीएम ने विश्वकर्मा (शिल्पकार) की श्रेणी में रखा।
रविवार को एक जिला एक उत्पाद के तहत चयनित चित्रकूट जिले में लकड़ी के खिलौने उद्योग का प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को लेकर सुबह से ही उत्सुकता रही। सीतापुर के रामघाट के पास बड़ी टीवी स्क्रीन लगाकर चयनित दो शिल्पकार बलराम राजपूत व धीरज द्विवेदी को आगे की कुर्सी में बैठाया गया। आगे की मेज पर उनके द्वारा बनाए गए लकड़ी के खिलौने सजाए गये। पीछे की कुर्सियों में भाजपा नेताओं की मौजूदगी रही। सभी ने प्रधानमंत्री के एक-एक शब्द को गौर से सुना। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के साथ ही भगवान विश्वकर्मा जयंती की शुभकामनाएं दी। इसी दौरान उन्होंने कहा कि देश में जो भी निर्माण कार्य में लगे हैं वह सब विश्वकर्मा की ही श्रेणी में आते हैं। देश के निर्माण से लेकर भवन निर्माण और लकड़ी के खिलौैने का निर्माण करने वालों पर फक्र है। यह सब देश में उद्योग, रोजगार और सृजनात्मक कार्यक्रम से विश्वभर में देश की छवि बनाने में जुटे हैं।
तालियों से गूंज उठा हाल...
चित्रकूट। प्रधानमंत्री ने जैसे ही लकड़ी के खिलौने बनाने वालों का जिक्र किया वैसे ही पूरे हॉल में तालियां गूंज उठीं। कार्यक्रम खत्म होते ही सभी ने शिल्पकारों को बधाई दी। शिल्पकारों ने कहा कि उन्हें पीएम से कई बात करनी थी लेकिन आज यह संभव नहीं हो सका। इसके बावजूद यह जरूर लगा कि पीएम को भी चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने के उद्योग की चिंता है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के भूमि पूजन के दौरान जब पीएम भरतकूप आए थे उन्होंने लकड़ी के खिलौने उपहार में दिए थे। पीएम ने इस कारीगरी की प्रशंसा कर इस उद्योग को बढ़ावा देने का आश्वासन दिया था।
चित्रकूट। शिल्पकार बलराम राजपूत व धीरज द्विवेदी ने कार्यक्रम की समाप्ति पर कहा कि उन्हें इस उद्योग में काम करते बहुत साल हो गए हैं। धीरज ने बताया कि 1996 में बस्ती के ही बच्चा सिंह से यह गुण सीखा फिर 1999 से इस व्यवसाय से पूरा परिवार चलाने लगे। यूपी एमपी के कई जिलों में वह प्रदर्शनी लगा चुके हैं। कई इनाम भी मिले हैं। बलराम का कहना है कि यह उनका पुश्तैनी काम है। उनके पिता गोरेलाल राजपूत को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
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रविवार को एक जिला एक उत्पाद के तहत चयनित चित्रकूट जिले में लकड़ी के खिलौने उद्योग का प्रधानमंत्री के मन की बात कार्यक्रम को लेकर सुबह से ही उत्सुकता रही। सीतापुर के रामघाट के पास बड़ी टीवी स्क्रीन लगाकर चयनित दो शिल्पकार बलराम राजपूत व धीरज द्विवेदी को आगे की कुर्सी में बैठाया गया। आगे की मेज पर उनके द्वारा बनाए गए लकड़ी के खिलौने सजाए गये। पीछे की कुर्सियों में भाजपा नेताओं की मौजूदगी रही। सभी ने प्रधानमंत्री के एक-एक शब्द को गौर से सुना। प्रधानमंत्री ने देशवासियों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के साथ ही भगवान विश्वकर्मा जयंती की शुभकामनाएं दी। इसी दौरान उन्होंने कहा कि देश में जो भी निर्माण कार्य में लगे हैं वह सब विश्वकर्मा की ही श्रेणी में आते हैं। देश के निर्माण से लेकर भवन निर्माण और लकड़ी के खिलौैने का निर्माण करने वालों पर फक्र है। यह सब देश में उद्योग, रोजगार और सृजनात्मक कार्यक्रम से विश्वभर में देश की छवि बनाने में जुटे हैं।
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तालियों से गूंज उठा हाल...
चित्रकूट। प्रधानमंत्री ने जैसे ही लकड़ी के खिलौने बनाने वालों का जिक्र किया वैसे ही पूरे हॉल में तालियां गूंज उठीं। कार्यक्रम खत्म होते ही सभी ने शिल्पकारों को बधाई दी। शिल्पकारों ने कहा कि उन्हें पीएम से कई बात करनी थी लेकिन आज यह संभव नहीं हो सका। इसके बावजूद यह जरूर लगा कि पीएम को भी चित्रकूट के लकड़ी के खिलौने के उद्योग की चिंता है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस वे के भूमि पूजन के दौरान जब पीएम भरतकूप आए थे उन्होंने लकड़ी के खिलौने उपहार में दिए थे। पीएम ने इस कारीगरी की प्रशंसा कर इस उद्योग को बढ़ावा देने का आश्वासन दिया था।
चित्रकूट। शिल्पकार बलराम राजपूत व धीरज द्विवेदी ने कार्यक्रम की समाप्ति पर कहा कि उन्हें इस उद्योग में काम करते बहुत साल हो गए हैं। धीरज ने बताया कि 1996 में बस्ती के ही बच्चा सिंह से यह गुण सीखा फिर 1999 से इस व्यवसाय से पूरा परिवार चलाने लगे। यूपी एमपी के कई जिलों में वह प्रदर्शनी लगा चुके हैं। कई इनाम भी मिले हैं। बलराम का कहना है कि यह उनका पुश्तैनी काम है। उनके पिता गोरेलाल राजपूत को राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है।
