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Gonda News: दशरथ जन्म से काफी समय पूर्व पैदा हो चुका था रावण
संवाद न्यूज एजेंसी, गोंडा
Updated Sun, 07 Dec 2025 11:32 PM IST
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आवास विकास कॉलोनी में कथा सुनाते प्रवाचक रमेश भाई शुक्ल। स्रोत: आयोजक
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गोंडा। भगवान श्रीराम के पिता राजा दशरथ के जन्म से भी काफी समय पहले रावण का जन्म हो चुका था। उसने कठोर तप से तीनों लोकों पर प्रभुत्व स्थापित कर लिया था। यद्यपि वह अयोध्या को जीत नहीं सका, फिर भी खुद को तीनों लाेकों का स्वामी कहता था। उसके पाप से धरती पीड़ित थी। ये बातें आवास विकास काॅलोनी में अखिल भारतीय श्रीराम नाम जागरण मंच के तत्वावधान में आयोजित 11 दिवसीय श्रीराम कथा में शनिवार को कथावाचक रमेश भाई शुक्ल ने कहीं।
उन्होंने कहा कि रावण के अत्याचार से त्रस्त देवताओं ने ब्रह्मा और शंकर के साथ मिलकर भगवान विष्णु की स्तुति की। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने जल्द ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहां जन्म लेने का वचन दिया। यह सुनकर देवता प्रसन्न हुए और विभिन्न रूपों में वे भी भगवान श्रीराम की सेवा के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने लगे। सबसे पहले ब्रह्मा जामवंत बनकर पैदा हुए। शंकर जी ने हनुमान रूप में जन्म लिया। इसी प्रकार अन्य देवों ने जन्म लेकर वनवास काल में श्रीराम के साथ रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद समेत लाखों राक्षसों का वध किया।
प्रवाचक ने कहा कि दशरथ के पुत्र के हाथों अपनी मौत के बारे में रावण को पता था। इसलिए उसने कौशल्या व दशरथ के विवाह के पूर्व ही उन्हें मारने की योजना बनाई। विवाह की तैयारियाें के बीच रावण ने राजकुमारी कौशल्या का उनके घर से अपहरण कर पेटिका में बंद करके गंगासागर में रहने वाली एक मछली को सुरक्षित रखने के लिए दे दिया। वह मछली पेटिका को सदैव अपने मुख में रखती थी। एक दिन दूसरी मछली से संघर्ष के दौरान उसने पेटिका गंगासागर के पास एक टीले पर रख दी। इसके बाद सरयू में नौका विहार कर रहे दशरथ को मारने के लिए रावण ने आकाश से उन पर प्राणघातक अस्त्र चलाया। इससे उनकी नौका क्षतिग्रस्त हो गई और वह नदी में डूब गए। इस बीच एक लकड़ी के सहारे बहते हुए वह भी गंगासागर पहुंच गए। संयोग से उसी टीले पर पहुंचे दशरथ ने पेटिका खोली तो एक सुंदर कन्या निकली। परिचय के बाद दोनों ने वहीं विवाह कर लिया। इसकी जानकारी मिलते ही रावण क्रोधित हो उठा और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ा, किंतु ब्रह्मा के समझाने पर वह शांत हो गया। वे दोनों अयोध्या लौट आए और सुखपूर्वक रहने लगे। बाद में उनके घर श्रीराम ने जन्म लिया।
ध्रुव-प्रह्लाद की कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर
नवाबगंज। नवाबगंज गिर्द के घूसे तिवारी पुरवा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में शनिवार रात प्रवाचक मदनमोहन तिवारी ने ध्रुव चरित्र और प्रह्लाद चरित्र का प्रसंग सुनाया। उन्होंने ध्रुव की तपस्या, संकल्प और भगवान विष्णु के वरदान का उल्लेख करते हुए कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी ध्रुव ने अपने लक्ष्य से समझौता नहीं किया। इसके बाद उन्होंने भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाते हुए कहा कि असत्य और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का साहस बालक प्रह्लाद ने दिखाया। प्रह्लाद की भक्ति पर भगवान नृसिंह ने प्रकट होकर उनकी रक्षा की। व्यासपीठ से संदेश दिया गया कि ईश्वर में अटूट विश्वास जीवन को दिशा देता है। कथा के दौरान श्रीनिवासन, गीतादेवी, राजेश, राकेश, वंशराज, अजीत, पंकज आदि उपस्थित रहे। (संवाद)
श्रीकृष्ण जन्म का सुनाया प्रसंग
पसका। लोहंगपुर के भगवानदीन पुरवा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में शनिवार को प्रवाचक पं. राघवेंद्र महाराज ने कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि कंस के अत्याचार से त्रस्त धरती को पापाचार से मुक्त करने और धर्म की रक्षा हेतु श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। कथा के दौरान गौरीशंकर, मिंटू, सूरज, सौरभ और राजन उपस्थित रहे। (संवाद)
सदाचार और मर्यादा के प्रतीक हैं श्रीराम
पसका। अग्नि जलाती है, सूर्य प्रकाशित करता है और चंद्रमा शीतलता देता है, लेकिन रामनाम की महिमा की कोई सीमा नहीं है। यह बात श्री अद्वैत स्वरूप संन्यास आश्रम में आयोजित भजन-कीर्तन व सत्संग में रविवार को प्रवाचक शशि बहन ने कही। उन्होंने कहा कि भगवान राम सदाचार और मर्यादा के प्रतीक हैं। इस अवसर पर रजनी बहन, निर्मला, शांति, पंकज बाबा और रामू बाबा रहे। (संवाद)
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उन्होंने कहा कि रावण के अत्याचार से त्रस्त देवताओं ने ब्रह्मा और शंकर के साथ मिलकर भगवान विष्णु की स्तुति की। इससे प्रसन्न होकर उन्होंने जल्द ही अयोध्या में राजा दशरथ के यहां जन्म लेने का वचन दिया। यह सुनकर देवता प्रसन्न हुए और विभिन्न रूपों में वे भी भगवान श्रीराम की सेवा के लिए पृथ्वी पर जन्म लेने लगे। सबसे पहले ब्रह्मा जामवंत बनकर पैदा हुए। शंकर जी ने हनुमान रूप में जन्म लिया। इसी प्रकार अन्य देवों ने जन्म लेकर वनवास काल में श्रीराम के साथ रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद समेत लाखों राक्षसों का वध किया।
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प्रवाचक ने कहा कि दशरथ के पुत्र के हाथों अपनी मौत के बारे में रावण को पता था। इसलिए उसने कौशल्या व दशरथ के विवाह के पूर्व ही उन्हें मारने की योजना बनाई। विवाह की तैयारियाें के बीच रावण ने राजकुमारी कौशल्या का उनके घर से अपहरण कर पेटिका में बंद करके गंगासागर में रहने वाली एक मछली को सुरक्षित रखने के लिए दे दिया। वह मछली पेटिका को सदैव अपने मुख में रखती थी। एक दिन दूसरी मछली से संघर्ष के दौरान उसने पेटिका गंगासागर के पास एक टीले पर रख दी। इसके बाद सरयू में नौका विहार कर रहे दशरथ को मारने के लिए रावण ने आकाश से उन पर प्राणघातक अस्त्र चलाया। इससे उनकी नौका क्षतिग्रस्त हो गई और वह नदी में डूब गए। इस बीच एक लकड़ी के सहारे बहते हुए वह भी गंगासागर पहुंच गए। संयोग से उसी टीले पर पहुंचे दशरथ ने पेटिका खोली तो एक सुंदर कन्या निकली। परिचय के बाद दोनों ने वहीं विवाह कर लिया। इसकी जानकारी मिलते ही रावण क्रोधित हो उठा और उन्हें मारने के लिए आगे बढ़ा, किंतु ब्रह्मा के समझाने पर वह शांत हो गया। वे दोनों अयोध्या लौट आए और सुखपूर्वक रहने लगे। बाद में उनके घर श्रीराम ने जन्म लिया।
ध्रुव-प्रह्लाद की कथा सुनकर श्रद्धालु भाव विभोर
नवाबगंज। नवाबगंज गिर्द के घूसे तिवारी पुरवा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में शनिवार रात प्रवाचक मदनमोहन तिवारी ने ध्रुव चरित्र और प्रह्लाद चरित्र का प्रसंग सुनाया। उन्होंने ध्रुव की तपस्या, संकल्प और भगवान विष्णु के वरदान का उल्लेख करते हुए कहा कि विपरीत परिस्थितियों में भी ध्रुव ने अपने लक्ष्य से समझौता नहीं किया। इसके बाद उन्होंने भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाते हुए कहा कि असत्य और अन्याय के विरुद्ध खड़े होने का साहस बालक प्रह्लाद ने दिखाया। प्रह्लाद की भक्ति पर भगवान नृसिंह ने प्रकट होकर उनकी रक्षा की। व्यासपीठ से संदेश दिया गया कि ईश्वर में अटूट विश्वास जीवन को दिशा देता है। कथा के दौरान श्रीनिवासन, गीतादेवी, राजेश, राकेश, वंशराज, अजीत, पंकज आदि उपस्थित रहे। (संवाद)
श्रीकृष्ण जन्म का सुनाया प्रसंग
पसका। लोहंगपुर के भगवानदीन पुरवा में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में शनिवार को प्रवाचक पं. राघवेंद्र महाराज ने कृष्ण जन्म का प्रसंग सुनाया। उन्होंने बताया कि कंस के अत्याचार से त्रस्त धरती को पापाचार से मुक्त करने और धर्म की रक्षा हेतु श्रीकृष्ण ने जन्म लिया। कथा के दौरान गौरीशंकर, मिंटू, सूरज, सौरभ और राजन उपस्थित रहे। (संवाद)
सदाचार और मर्यादा के प्रतीक हैं श्रीराम
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