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Hardoi News: पोर्टेबल मशीन से एक्सरे कराने में मरीज घंटों हो रहे परेशान
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फोटो- 27- एक्सरे कक्ष के बाहर परेशान हो रही मरीजों की भीड़। संवाद
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हरदोई। मेडिकल काॅलेज में मरीजों को एक्सरे कराना परेशानी का सबब बनता जा रहा है। पोर्टेबल मशीन से हो रहे एक्सरे में मरीजों को अपनी बारी के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। दिन भर में रोजाना 100-150 मरीजों के एक्सरे हो रहे हैं। इसमें मरीजों को फिल्म भी नहीं मिल रही है और लोगों को मोबाइल पर एक्सरे की फोटो लेनी पड़ रही है।
एक्सरे विभाग में लगी डिजिटल मशीन अलग-अलग खामियों की वजह से बीते 11 माह से जैसे तैसे चल रही है। यह मशीन बीते तीन माह से पूरी तरह बंद है जिससे मरीजों को पोर्टेबल मशीन से एक्सरे कराना पड़ रहा है। पोर्टेबल से एक बार में अधिकतम 65 से 70 मरीजों के 135 से 140 एक्सरे हो पा रहे हैं। वहीं, इन दिनों रोजाना 100 से 150 के बीच मरीज आ रहे हैं। बुधवार को भी 124 मरीजों के एक्सरे किए गए। अधिक एक्सरे होने से पोर्टेबल मशीन पर लोड हाेता है और उसे बंद भी करना पड़ता है। ऐसे में मरीजों का लंबा इंतजार करना पड़ता है।
एक मशीन चलने से बढ़ी भीड़
वैसे तो एक्सरे के लिए दो पोर्टेबल मशीन हैं। इनमें एक पर सिर्फ सीने का एक्सरे होता है लेकिन बुधवार को सिर्फ एक मशीन चल रही थी। इस कारण मरीजों की भीड़ बढ़ गई और लोगों को परेशान होना पड़ा। बालामऊ से आए रमेश को भी सीने का एक्सरे कराना था करीब डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद दोपहर को 12 बजे के बाद भी उनका नंबर नहीं आ सका। बताया कि समुचित स्टाफ न होने की वजह से एक मशीन से काम नहीं लिया जा सका।
फिल्म के लिए निजी लैब में जाना मजबूरी
पाेर्टेबल मशीन में एक्सरे कराने पर फिल्म नहीं मिलती। मोबाइल पर एक्सरे की फोटो दे दी जाती है। फोटो लेने पर कई बार रिपोर्ट साफ भी नहीं आती। इससे मरीज को निजी लैबों से जांच कराना पड़ता है। निजी लैब पर एक बार एक्सरे कराने में 500 से 900 रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में मरीज को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से भी परेशान होना पड़ रहा है।
सायरिक्स कंपनी को डिजिटल मशीन बनाने के लिए निर्देशित किया जा चुका है। इसके बावजूद कंपनी के प्रतिनिधि लापरवाही कर रहे हैं। उनसे बात कर मशीन को जल्द ही बनवाया जाएगा। मरीजों की समस्या का जल्द समाधान कराया जाएगा। -डॉ. जेबी गोगोई, प्रधानाचार्य, मेडिकल कॉलेज
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एक्सरे विभाग में लगी डिजिटल मशीन अलग-अलग खामियों की वजह से बीते 11 माह से जैसे तैसे चल रही है। यह मशीन बीते तीन माह से पूरी तरह बंद है जिससे मरीजों को पोर्टेबल मशीन से एक्सरे कराना पड़ रहा है। पोर्टेबल से एक बार में अधिकतम 65 से 70 मरीजों के 135 से 140 एक्सरे हो पा रहे हैं। वहीं, इन दिनों रोजाना 100 से 150 के बीच मरीज आ रहे हैं। बुधवार को भी 124 मरीजों के एक्सरे किए गए। अधिक एक्सरे होने से पोर्टेबल मशीन पर लोड हाेता है और उसे बंद भी करना पड़ता है। ऐसे में मरीजों का लंबा इंतजार करना पड़ता है।
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एक मशीन चलने से बढ़ी भीड़
वैसे तो एक्सरे के लिए दो पोर्टेबल मशीन हैं। इनमें एक पर सिर्फ सीने का एक्सरे होता है लेकिन बुधवार को सिर्फ एक मशीन चल रही थी। इस कारण मरीजों की भीड़ बढ़ गई और लोगों को परेशान होना पड़ा। बालामऊ से आए रमेश को भी सीने का एक्सरे कराना था करीब डेढ़ घंटे इंतजार करने के बाद दोपहर को 12 बजे के बाद भी उनका नंबर नहीं आ सका। बताया कि समुचित स्टाफ न होने की वजह से एक मशीन से काम नहीं लिया जा सका।
फिल्म के लिए निजी लैब में जाना मजबूरी
पाेर्टेबल मशीन में एक्सरे कराने पर फिल्म नहीं मिलती। मोबाइल पर एक्सरे की फोटो दे दी जाती है। फोटो लेने पर कई बार रिपोर्ट साफ भी नहीं आती। इससे मरीज को निजी लैबों से जांच कराना पड़ता है। निजी लैब पर एक बार एक्सरे कराने में 500 से 900 रुपये खर्च होते हैं। ऐसे में मरीज को मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से भी परेशान होना पड़ रहा है।
सायरिक्स कंपनी को डिजिटल मशीन बनाने के लिए निर्देशित किया जा चुका है। इसके बावजूद कंपनी के प्रतिनिधि लापरवाही कर रहे हैं। उनसे बात कर मशीन को जल्द ही बनवाया जाएगा। मरीजों की समस्या का जल्द समाधान कराया जाएगा। -डॉ. जेबी गोगोई, प्रधानाचार्य, मेडिकल कॉलेज