संडीला। मेलों और प्रदर्शनी में मिलने वाले खजला का लोगों को इंतजार रहता है। खजला मीठा और नमकीन दोनों प्रकार के होते हैं। छह दशक से पहलवान खजला भंडार की परंपरा अभी भी जीवित है। पहलवान के न रहने पर अब उनके भतीजे विरासत संभाल रहे हैं।
झाड़ी शाह बाबा उर्स और मेले में लोगों को पहलवान की दुकान का खजला अधिक पसंद आ रहा है। मेले में खजला इस बार भी मिठास घोल रहा है। वर्तमान में पहलवान के भतीजे सुरेंद्र सिंह और चिंटू सिंह विरासत को भली प्रकार से संभाल रहे हैं। भतीजों ने बताया कि बाबा पहलवान लटूर सिंह ने खजला बनाने का काम बुलंदशहर से शुरू किया था। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से बनाए जाने वाले स्वादिष्ट खजला का लोगों को दीवाना बना दिया। खजला के कारोबार ने उनको पहचान दिलाई। उनके कारोबार को हम आगे बढ़ा रहे हैं।
सुरेंद्र सिंह ने बताया कि वह झाड़ी शाह बाबा मेले में हर साल दुकान लगाते हैं। हर साल आना पड़ता है। बताया कि नमकीन के साथ ही मीठा और खोया वाला खजला, नान खटाई और खस्ता खजूर भी बनाया जाता है। बताया कि दुकान पर करीब दस लोगों की टीम काम करती है। बताया कि मेलों और प्रदर्शनी के बाद के बचे समय में वह खेतीबाड़ी करते हैं। बताया कि उनकी दुकान गोरखपुर, बस्ती, शाहजहांपुर, बुलंदशहर और हरदोई आदि में जिलों में लगती है।