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Hardoi News: जब नाम ही काफी... नियम का क्या काम
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फोटो-05- जिला आबकारी अधिकारी की गाड़ी। संवाद
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हरदोई। नियमों को धता बताकर जिले में तैनात अधिकारी निजी वाहनों को अनुबंधित कर रफ्तार भर रहे हैं। नियम के मुताबिक टैक्सी पंजीकरण वाले वाहनों का ही अनुबंध किया जाना चाहिए।
नियम तोड़ने वालों पर दिन भर कार्रवाई का चाबुक लेकर घूमने वाले जिम्मेदार अफसरों के हाथ इन वाहनों पर कार्रवाई करने में कांप जाते हैं। दरअसल, हकीकत यह है कि टैक्सी परमिट पर एक साल में लगभग 23 हजार रुपये अतिरिक्त खर्च प्रत्येक वाहन पर आता है। हालांकि, इससे परिवहन विभाग को ही राजस्व मिलता है।
अधिकांश विभागों में अब सरकारी वाहन नहीं हैं। मुख्य विकास अधिकारी से लेकर जिला आबकारी अधिकारी तक के पास अनुबंधित वाहन ही हैं। अनुबंधित वाहनों को लेकर स्पष्ट नियम है कि टैक्सी परमिट वाले वाहनों के साथ ही अनुबंध किया जाना चाहिए। जिले में इस नियम की धज्जियां लगातार उड़ रही हैं। जिला समाज कल्याण अधिकारी, ग्राम्य विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक समेत कई अधिकारी जिन वाहनों से चल रहे हैं, वह अनुबंध पर लगे हैं लेकिन प्राइवेट वाहन के तौर पर पंजीकृत हैं। प्राइवेट वाहन का पंजीकरण शुल्क कम पड़ता है जबकि टैक्सी कोटे का पंजीकरण और परमिट मंहगा होता है।
केस-1
टैक्सी परमिट के बिना ही हो गया अनुबंध
जिला समाज कल्याण अधिकारी रमाकांत पटेल हैं। उनके वाहन पर उनका पदनाम भी लिखा है। वाहन संख्या यूपी 30 सीए 7856 है। प्राइवेट वाहन के तौर पर यह परिवहन निगम में पंजीकृत है। इस वाहन के मालिक महोलिया शिवपार निवासी मुनेंद्र सिंह हैं। रमाकांत का कहना है कि जेम पोर्टल से कार किराए पर लगी है। बाकी बहुत जानकारी नहीं है।
केस-2
शान न जाए : कार टैक्सी कोटे की, नंबर प्लेट प्राइवेट वाहन की
जिला आबकारी अधिकारी केपी सिंह हैं। वह जिस वाहन से चलते हैं उस पर बाकायदा उत्तर प्रदेश सरकार लिखा है। वाहन का नंबर यूपी 30 डीटी 8051 है। केपी सिंह के मुताबिक जेम पोर्टल के जरिये वाहन किराये पर लिया गया है। इसका अनुबंध भी है। वाहन टैक्सी कोटे का है। यह इसके पंजीकरण नंबर से पता चल जाता है। इसके बाद भी नंबर प्लेट पीली न होकर सफेद है। मतलब यह कि नियम का यहां भी कोई काम नहीं।
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अधिकांश विभागों में अब सरकारी वाहन नहीं हैं। मुख्य विकास अधिकारी से लेकर जिला आबकारी अधिकारी तक के पास अनुबंधित वाहन ही हैं। अनुबंधित वाहनों को लेकर स्पष्ट नियम है कि टैक्सी परमिट वाले वाहनों के साथ ही अनुबंध किया जाना चाहिए। जिले में इस नियम की धज्जियां लगातार उड़ रही हैं। जिला समाज कल्याण अधिकारी, ग्राम्य विकास अभिकरण के परियोजना निदेशक समेत कई अधिकारी जिन वाहनों से चल रहे हैं, वह अनुबंध पर लगे हैं लेकिन प्राइवेट वाहन के तौर पर पंजीकृत हैं। प्राइवेट वाहन का पंजीकरण शुल्क कम पड़ता है जबकि टैक्सी कोटे का पंजीकरण और परमिट मंहगा होता है।
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टैक्सी परमिट के बिना ही हो गया अनुबंध
जिला समाज कल्याण अधिकारी रमाकांत पटेल हैं। उनके वाहन पर उनका पदनाम भी लिखा है। वाहन संख्या यूपी 30 सीए 7856 है। प्राइवेट वाहन के तौर पर यह परिवहन निगम में पंजीकृत है। इस वाहन के मालिक महोलिया शिवपार निवासी मुनेंद्र सिंह हैं। रमाकांत का कहना है कि जेम पोर्टल से कार किराए पर लगी है। बाकी बहुत जानकारी नहीं है।
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जिला आबकारी अधिकारी केपी सिंह हैं। वह जिस वाहन से चलते हैं उस पर बाकायदा उत्तर प्रदेश सरकार लिखा है। वाहन का नंबर यूपी 30 डीटी 8051 है। केपी सिंह के मुताबिक जेम पोर्टल के जरिये वाहन किराये पर लिया गया है। इसका अनुबंध भी है। वाहन टैक्सी कोटे का है। यह इसके पंजीकरण नंबर से पता चल जाता है। इसके बाद भी नंबर प्लेट पीली न होकर सफेद है। मतलब यह कि नियम का यहां भी कोई काम नहीं।

फोटो-05- जिला आबकारी अधिकारी की गाड़ी। संवाद