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UP: शाहीन के खातों में सात साल में 1.55 करोड़ का लेनदेन, डॉक्टर मां की काली करतूतें... बच्चों से छिपा रहा बाप
अमर उजाला नेटवर्क, कानपुर
Published by: शाहरुख खान
Updated Mon, 17 Nov 2025 11:18 AM IST
सार
आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के फरीदाबाद माड्यूल की अहम सदस्य डॉ. शाहीन के बैंक खातों में सात साल में 1.55 करोड़ का लेनदेन हुआ है। जांच में जुटी एजेंसियां रुपयों के आने और जाने का माध्यम खंगाल रहीं हैं। एजेंसियां विदेशी फंडिंग की जांच के शक में खातों की पड़ताल कर रहीं हैं।
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डॉ. शाहीन सईद का पूर्व पति डॉ. हयात जफर
- फोटो : amar ujala
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विस्तार
डॉ. शाहीन के अब तक मिले बैंक खातों में बीते सात वर्षों में करीब 1.55 करोड़ रुपयों का लेनदेन हुआ है। मामले की जांच में जुटी एजेंसियां इस धनराशि के आने और जाने के माध्यमों के बारे में जानकारी जुटा रहीं हैं।
जांच एजेंसियों को डॉ. शाहीन के पास सात बैंक खाते होने की जानकारी मिली थी। इनमें से तीन बैंक खाते कानपुर, दो-दो लखनऊ और दिल्ली में हैं। इनमें से कुछ निजी और कुछ सरकारी बैंकों में हैं।
डॉ. शाहीन के बैंक खातों की पड़ताल में वर्ष 2014 में नौ लाख, 2015 में छह लाख, 2016 में 11 लाख, 2017 में 19 लाख के बड़े ट्रांजेक्शन मिले हैं। वहीं, डॉ. आरिफ के भी तीन बैंक खाते मिले हैं। इन खातों में हुए ट्रांजेक्शन की भी पड़ताल की जा रही है।
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जांच एजेंसियों को डॉ. शाहीन के पास सात बैंक खाते होने की जानकारी मिली थी। इनमें से तीन बैंक खाते कानपुर, दो-दो लखनऊ और दिल्ली में हैं। इनमें से कुछ निजी और कुछ सरकारी बैंकों में हैं।
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डॉ. शाहीन के बैंक खातों की पड़ताल में वर्ष 2014 में नौ लाख, 2015 में छह लाख, 2016 में 11 लाख, 2017 में 19 लाख के बड़े ट्रांजेक्शन मिले हैं। वहीं, डॉ. आरिफ के भी तीन बैंक खाते मिले हैं। इन खातों में हुए ट्रांजेक्शन की भी पड़ताल की जा रही है।
स्लीपर सेल की जांच में सक्रिय है खुफिया
डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ का नाम सामने आने के बाद से जांच एजेंसियां शहर में स्लीपर सेल का पता लगाने में जुट गईं हैं। एजेंसियों का मानना है कि युवाओं को आतंक से जोड़ने से पहले उन्हें धर्म के नाम बरगलाया जाता है। माइंड वॉश कर ऐसे युवाओं तक आतंकी संगठनों का संदेश पहुंचाया जाता है जिसे वह कर गुजरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। संवेदनशील जिला होने के नाते कानपुर कई बार चर्चा में रहा है। ऐसे में यहां पर स्लीपर सेल सक्रिय होने की आशंका को देखते हुए जानकारी जुटाई जा रही है।
डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ का नाम सामने आने के बाद से जांच एजेंसियां शहर में स्लीपर सेल का पता लगाने में जुट गईं हैं। एजेंसियों का मानना है कि युवाओं को आतंक से जोड़ने से पहले उन्हें धर्म के नाम बरगलाया जाता है। माइंड वॉश कर ऐसे युवाओं तक आतंकी संगठनों का संदेश पहुंचाया जाता है जिसे वह कर गुजरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। संवेदनशील जिला होने के नाते कानपुर कई बार चर्चा में रहा है। ऐसे में यहां पर स्लीपर सेल सक्रिय होने की आशंका को देखते हुए जानकारी जुटाई जा रही है।
सिम खरीद पर भी नजर
धमाके के बाद डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ के पकड़े जाने के बाद खुफिया एजेंसियों का मानना है कि कई संदिग्ध अपने पुराने सिम का इस्तेमाल कर नया सिम ले सकते हैं। ऐसे में सिम खरीदने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। एजेंसियाें ने 10 नवंबर के बाद बिके सिमों की डिटेल जुटाना शुरू कर दिया है। इनके संदिग्ध महसूस होने पर सत्यापन कराया जाएगा।
धमाके के बाद डॉ. शाहीन और डॉ. आरिफ के पकड़े जाने के बाद खुफिया एजेंसियों का मानना है कि कई संदिग्ध अपने पुराने सिम का इस्तेमाल कर नया सिम ले सकते हैं। ऐसे में सिम खरीदने वालों के बारे में भी जानकारी जुटाई जा रही है। एजेंसियाें ने 10 नवंबर के बाद बिके सिमों की डिटेल जुटाना शुरू कर दिया है। इनके संदिग्ध महसूस होने पर सत्यापन कराया जाएगा।
डॉक्टर मां की काली करतूतें... बच्चों से छिपा रहा पिता
आतंकी घटना में शामिल डॉ. शाहीन की काली करतूतों का असर उसके 18 और 15 वर्षीय दो बेटों पर न पड़े इसके लिए पिता उसे बच्चों से छिपाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कक्षा 12 व नौ में पढ़ने वाले बच्चों को कुछ दिन स्कूल से छुट्टी दिलाने के अलावा बच्चों की सोशल मीडिया और टीवी से भी दूरी बना दी ताकि बच्चों को अपनी मां की कोई जानकारी न मिल सके।
आतंकी घटना में शामिल डॉ. शाहीन की काली करतूतों का असर उसके 18 और 15 वर्षीय दो बेटों पर न पड़े इसके लिए पिता उसे बच्चों से छिपाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। कक्षा 12 व नौ में पढ़ने वाले बच्चों को कुछ दिन स्कूल से छुट्टी दिलाने के अलावा बच्चों की सोशल मीडिया और टीवी से भी दूरी बना दी ताकि बच्चों को अपनी मां की कोई जानकारी न मिल सके।
बच्चों के पिता डॉ. जफर हयात बच्चों की परवरिश को लेकर इस कदर परेशान हैं कि वो खुद बीमार पड़ गए। अस्पताल से छुट्टी भी ले ली। साथ काम करने वाले डॉक्टरों व स्टाफ का भी कहना है कि वे मिलनसार हैं। भले ही वो पत्नी से अलग हो गए हों लेकिन इस घटना का असर उनके जीवन और स्वास्थ्य दोनों पर पड़ा है। वह ज्यादातर बच्चों को घर पर ही रख रहे हैं। न्यूज चैनल और अखबार पढ़ने से भी बचा रहे हैं।
कानपुर देहात में तैनात डॉ. हामिद ने तीन साल बिताए गुमनामी में, जांच तेज
कानपुर देहात की सीएचसी में तैनात डॉ. हामिद अंसारी की भी जांच तेज हो गई है। वह 2013 में डॉ. शाहीन के साथ ही लापता हो गए थे। तीन साल बाद बिना कारण बताए ही 2016 में नौकरी जॉइन कर ली थी। वह एनाटॉमी विभाग में थे। तीन साल उन्होंने कहां गुमनामी काटी इसकी जांच चल रही है। इसके साथ ही एक जगह से इस्तीफा दिए बिना उन्हें दूसरी जगह नौकरी कैसे मिल गई। यह भी जांच में शामिल किया गया है।
कानपुर देहात की सीएचसी में तैनात डॉ. हामिद अंसारी की भी जांच तेज हो गई है। वह 2013 में डॉ. शाहीन के साथ ही लापता हो गए थे। तीन साल बाद बिना कारण बताए ही 2016 में नौकरी जॉइन कर ली थी। वह एनाटॉमी विभाग में थे। तीन साल उन्होंने कहां गुमनामी काटी इसकी जांच चल रही है। इसके साथ ही एक जगह से इस्तीफा दिए बिना उन्हें दूसरी जगह नौकरी कैसे मिल गई। यह भी जांच में शामिल किया गया है।
वहीं, सर्जरी विभाग के डॉ. निसार अहमद भी उसी समय बिना बताए नौकरी छोड़कर दुबई में बस गए थे। फिजियोलॉजी विभाग के डॉ. हिफजुल रहमान ने भी उसी समय नौकरी छोड़ दी थी। डॉ. हामिद और डॉ. हिफजुल मेडिकल कॉलेज परिसर के ही डी ब्लॉक में रहते थे। डॉ. निसार तो सर्जरी विभाग में बहुत अच्छे थे। काफी सारी जटिल सर्जरी भी उन्होंने की। व्यवहार भी सामान्य था।
बिना बताए मेडिकल कॉलेज छोड़ चुके 20 से 25 डॉक्टर
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 20 से 25 डॉक्टर बिना बताए छोड़कर जा चुके हैं। उनमें से 90 प्रतिशत डॉक्टरों के विदेश में बसने की जानकारी दी जा रही है। अधिकतर अच्छी सैलरी के चलते डॉक्टर विदेश में जाने की चाह रखते हैं। इसके चलते जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज ही नहीं सभी कॉलेजों में यही हाल है कि फैकल्टी आती है और बिना बताए चली भी जाती है।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 20 से 25 डॉक्टर बिना बताए छोड़कर जा चुके हैं। उनमें से 90 प्रतिशत डॉक्टरों के विदेश में बसने की जानकारी दी जा रही है। अधिकतर अच्छी सैलरी के चलते डॉक्टर विदेश में जाने की चाह रखते हैं। इसके चलते जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज ही नहीं सभी कॉलेजों में यही हाल है कि फैकल्टी आती है और बिना बताए चली भी जाती है।
ब्लूटूथ और हिजाब पर प्रतिबंध
मेडिकल कॉलेज में आने-जाने वाले छात्रों और फैकल्टी के लिए नियम सख्त हो गए हैं। फेस बायोमीटि्रक से ही प्रवेश हो रहा है। कक्षा में मोबाइल बिल्कुल भी ले जाना नहीं है। ब्लूटूथ बैन कर दिया गया है। परीक्षा के दौरान हिजाब पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
मेडिकल कॉलेज में आने-जाने वाले छात्रों और फैकल्टी के लिए नियम सख्त हो गए हैं। फेस बायोमीटि्रक से ही प्रवेश हो रहा है। कक्षा में मोबाइल बिल्कुल भी ले जाना नहीं है। ब्लूटूथ बैन कर दिया गया है। परीक्षा के दौरान हिजाब पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।
जांच एजेंसियां लिखित में मांग रहीं जानकारी
जांच एजेंसियों ने मेडिकल कॉलेज से पहले मुंह जुबानी स्टाफ का ब्योरा मांगा तो नकार दिया गया। इसके बाद लिखित में एक-एक कर जानकारी मांग रहे हैं। जो डॉक्टर छोड़कर चले गए और जो काम कर रहे हैं सभी की जानकारी जुटाने के लिए लिखित में ही जानकारी मांगी जा रही है।
जांच एजेंसियों ने मेडिकल कॉलेज से पहले मुंह जुबानी स्टाफ का ब्योरा मांगा तो नकार दिया गया। इसके बाद लिखित में एक-एक कर जानकारी मांग रहे हैं। जो डॉक्टर छोड़कर चले गए और जो काम कर रहे हैं सभी की जानकारी जुटाने के लिए लिखित में ही जानकारी मांगी जा रही है।