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CSJMU Bhaasha Utsav: विशेषज्ञ बोले- AI के दामन में नहीं समा पाएंगीं दिलो-दिमाग की अनंत उमंगें, ये भी कहा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कानपुर Published by: हिमांशु अवस्थी Updated Thu, 11 Jan 2024 12:24 PM IST
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सार

Kanpur News: छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय में विश्व हिंदी दिवस पर भाषा उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में शिक्षाविदों और विशेषज्ञों का समागम हो रहा है।

Expectations and fears regarding AI were discussed in the language festival organized in CSJMU
पद्मश्री अशोक चक्रधर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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कानपुर में कृत्रिम मेधा (आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस) के तेजी से फैलाव के मद्देनजर ये सवाल उठने लगे हैं कि क्या एआई के विभिन्न टूल मानवीय संवेदनाओं को पूरी तरह उकेर पाएंगे। चैट जीपीटी सरीखे टूल विषयों से संबंधित शब्दों को बता देने भर से कविता तो बना देते हैं। क्या एआई बहादुरशाह जफर के अशआर ‘जरा उनकी शोखी तो देखिये लिए जुल्फ खमशुदा हाथ में-मेरे पीछे आए दबे-दबे मुझे सांप कह के डरा दिया’ की तरह जज्बात और नजारा जेहन में उभार पाएगा। इंसान का दिलो-दिमाग भावनाओं, उमंगों का अथाह समंदर है। एआई यह नहीं समेट सकता है।यह भी अंदेशा है कि कहीं कृत्रिम मेधा मानव पर हावी न हो जाए और नया खतरा बने। बुधवार को छत्रपति शाहूजी महाराज विवि में भाषा उत्सव के उद्घाटन सत्र में एआई को लेकर उम्मीदों और अंदेशों पर चर्चा हुई। इसका विषय हिंदी और कृत्रिम मेधा था। उद्घाटन सत्र में वक्ताओं ने जो कुछ बोला, वह हू-ब-हू पेश है-

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पद्मश्री अशोक चक्रधर बोले- एआई आंसू नहीं ला सकता
कृत्रिम मेधा के पास मनुष्य की फीड की हुई बुद्धि है लेकिन मनुष्य के पास तो समंदर है। इस नकली बुद्धि से असली काम किया जा सकता है। एआई प्राण किरण तक पहुंच जाता है। यह हर क्षण बदल रहा है। लेकिन यह ध्यान रखना जरूरी है कि एआई निरंकुश न होने पाए। इससे एआई रचनात्मक रहेगा। एआई भाषा समझ सकता है और तत्काल अनुवाद भी कर सकता है। लोगों को पहचान भी लेता है और तर्क भी दे देता है। इसकी गुणवत्ता तो बढ़ी है लेकिन हिंदी में अभी उतना काम नहीं हो पाया है। गलत सूचना मिल जाती है। एक बार मेरे मित्र ने कृत्रिम मेधा से मेरे बारे में पूछा तो एक सांसद का पूरा प्रोफाइल आ गया। कब चुनाव लड़ा? कब जीते? वगैरह। फिर दोबारा पूछा तो कवि वाला प्रोफाइल आया। मेरी कविता पूछी तो तुरंत एक कविता बता दी पर वो मेरी नहीं थी। ऐसे में गलतियों को सुधारने की जिम्मेदारी आपकी होती है। एआई आंसू नहीं ला सकता, पसीना नहीं ला सकता, बेहोशी-कंपन भी नहीं ला सकता। दिमाग से संचालित भावनाएं नहीं आ सकतीं। चैट जीपीटी को गुलाम बना कर रखें, तभी महफूज भी होंगे और लाभ उठा सकेंगे।

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डॉ. अवनिजेश अवस्थी ने बोले- विज्ञान अपनी लक्ष्मण रेखा न लांघने पाए
यह ध्यान रखना पड़ेगा कि विज्ञान अपनी लक्ष्मण रेखा न लांघने पाए। जब यह लक्ष्मण रेखा लांघ जाता है तो अभिशाप बन जाता है। प्रौद्योगिकी से निश्चित रूप से सुविधा तो मिलती है लेकिन इसके साथ ऐसी विकट स्थिति आ जाती है जिसका समाधान अगली प्रौद्योगिकी में ढूंढना पड़ता है। अगर प्रकृति के साथ विकृति होती है तो वह बहुत खतरनाक साबित होती है। वैसे प्रौद्योगिकी की नजदीकी विकृति के पास लाई है। प्रौद्योगिकी का मानव कल्याण के लिए इस्तेमाल किया जाए तो बहुत अच्छा है। समाज राजपाठ वालों को नहीं जंगल जाने वालों को पूजता है। हर पंथ और संस्कृति ने राम का चरित्र स्वीकार किया है। एआई में राम का चरित्र नहीं आ सकता। एप कविता नहीं लिख सकता। तकनीकी किसी सुनामी को भी निमंत्रण दे सकती है। इस वजह से इस पर नियंत्रण जरूरी है।

डॉ. बुद्ध चंद्रशेखर ने बोला- छोटा भीम सीरियल की छुटकी के नाम पर बनाया टूल
अनुवादिनी पोर्टल के एक टूल का नाम मैंने छुटकी रखा है। मेरा बेटा छोटा भीम सीरियल देखता है, वहीं छुटकी को देखा। देखता है कि अक्सर एआई में अनुवाद में गलती हो जाती है। एक वाक्य को बदलने से अर्थ बदल जाता है। छुटकी अनुवाद का टूल है। इससे संस्कृत को इंटरमीडिएट भाषा बनाया है। इससे 95 फीसदी तक अनुवाद सही आने लगा है। साथ ही एक समस्या और जेहन में आई। जीरॉक्स कॉपी बनानी है तो मूल कॉपी ही बनेगी, उसकी भाषा वही रहेगी। इससे टूल में यह व्यवस्था भी की गई। मूल कॉपी का जीरॉक्स में अनुवाद हो जाए। इससे किताब को अनुवाद करने में आसानी हो जाएगी। अगर कोई पुस्तक अरबी में है तो उसका अनुवाद हिंदी में किया जा सकता है। पीडीएफ का भी अनुवाद हो जाता है। हस्तलिखित अभिलेख का भी अनुवाद किया जा सकता है। इससे दूरदराज ग्रामीण इलाकों के लोगों के सामने से भाषा का बैरियर हट जाएगा।

अखिलेंद्र मिश्रा ने कहा- वेबसीरीज से बिगड़ रही युवाओं की भाषा
ओटीटी पर रिलीज वेबसीरीज को देखकर युवाओं के साथ उनकी भाषा भी बिगड़ रही है। लोग अपनी भाषा की गहराई को नहीं समझ पा रहे हैं। उनको यह नहीं मालूम कि वे जो भी बात बोलते हैं वह इस ब्रह्मांड में लौटकर वापस जरूर आता है। इसका कारण यह है कि शुरुआत सबकी एक कण से ही होती है। बॉलीवुड में अच्छे लेखकों की कमी है। लेखकों के पास भाषा का ज्ञान नहीं है। निर्माता और निर्देशकों ने कुछ चुनिंदा लोगों को अपने दायरे में सीमित कर रखा है, उन्हीं से ही काम कराया जाता है। आप लोगों का बचपन भले ही यक्कू देखकर बीता हो, लेकिन अब बच्चों के सामने जो परोसा जा रहा है, उस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। वेबसीरीज में कमजोर अभिनय को ही गालियों से ढंकने का प्रयास किया जाता है। सिनेमा का दायित्व केवल नोट कमाना नहीं होना चाहिए, समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी भी समझनी होगी।

पूर्व कुलपति प्रो. गिरिश्वर मिश्र ने बोले- हिंदी के पिछड़ने का कारण हिंदी भाषी लोग
हिंदी के और भाषाओं से पिछड़ने का कारण हिंदी भाषी लोग ही हैं। तमिल, तेलुगु, मलयालम आदि बोलने वाले लोग अपनी भाषा को बड़े गर्व से बोलते हैं पर हिंदी भाषी लोग ही हिंदी को स्वीकार नहीं कर पाते। हिंदी दिवस केवल मनाने से हिंदी को प्रसिद्धि नहीं मिलने वाली। हम सभी को हृदय से हिंदी को खुद अपनाना होगा। बीते कुछ समय से भारत के अध्यापक विदेशों में जाकर हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे हैं पर अभी भी इसमें और मेहनत करने की आवश्यकता है।

कुलपति प्रो. बलदेव भाई शर्मा ने कहा- रोजगार के भ्रम में भ्रमित की जा रही हिंदी
पत्रकारों ने लिखना और पढ़ना छोड़ दिया है। खबरें लिखना लेखन नहीं है। यह कहना गलत नहीं है कि भाषा का सर्वनाश हमने मिलकर किया है। अंग्रेजी अखबार के पत्रकार कभी भी अपनी लेखनी में हिंदी शब्दों का वर्णन नहीं करते, लेकिन हिंदी पत्रकारिता में अक्सर ही अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल होते देखा गया है। हिंदी की बात करना सिर्फ भाषा के बारे में बात करना नहीं है बल्कि पूरे वैश्विक चेतना की बात करना है। लोगों का हिंदी में बात करना, उनका रहन-सहन, खानपान सब पिछड़ेपन की निशानी बना दी गई है। लोग हिंदी में बात करना नहीं पसंद करते हैं। वर्तमान में रोजगार के भ्रम में हिंदी को भ्रमित किया जाता है, अंग्रेजी भाषा को प्रमुखता दी जाती है। हिंदी और इंग्लिश के मिश्रण का उपयोग करने से बचना चाहिए। रोजमर्रा के जीवन में हमें हिंदी के शुद्ध शब्दों का उपयोग करना चाहिए।

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षाविद डॉ. सतेंद्र प्रताप सिंह ने ये कहा
जुड़ाव महसूस कराती है हिंदी हिंदी का उपयोग करने से कोई हमें पिछड़ा और कम पढ़ा-लिखा न समझे, इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। अंग्रेजी बोलना पढ़े-लिखे लोगों की निशानी है। मनुष्य हमेशा दुख-सुख की व्यथा अपनी मातृभाषा में ही व्यक्त करता है। अपनी पीड़ा या संवेदना को महसूस कराने के लिए अपनी मातृभाषा हिंदी ही याद आती। चाहे कितनी ही और भाषा हो पर रोते समय, अपनों से बात करते समय तो हिंदी का ही प्रयोग होना चाहिए। हिंदी हमें एक जुड़ाव महसूस कराती है। एक नेता या प्रधानमंत्री को भी क्षेत्रीय लोगों से जुड़ने के लिए हिंदी का इस्तेमाल करना पड़ता है।

कवि एवं हिंदी के वक्ता डॉ. ओम निश्चल ने ये कहा
हिंदी का उपयोग करने से कोई हमें पिछड़ा और कम पढ़ा-लिखा न समझे, इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है। मनुष्य हमेशा दुख-सुख की व्यथा अपनी मातृभाषा में ही व्यक्त करता है। अपनी पीड़ा या संवेदना को महसूस कराने के लिए अपनी मातृभाषा हिंदी ही याद आती। चाहे कितनी ही और भाषा हो पर रोते समय, अपनों से बात करते समय तो हिंदी का ही प्रयोग होना चाहिए। हिंदी हमें एक जुड़ाव महसूस कराती है। एक नेता या प्रधानमंत्री को भी क्षेत्रीय लोगों से जुड़ने के लिए हिंदी का इस्तेमाल करना पड़ता है।

डॉ. विनय पाठक बोले- अपनी भाषा और संस्कृति पर वापस आ रहे
भाषा उत्सव के उद्घाटन सत्र में सीएसजेएमयू के कुलपति डॉ. विनय पाठक ने कहा कि हम अपनी संस्कृति और भाषा पर वापस आ रहे हैं। सभी कार्य अपनी भाषा में किए जाने चाहिए। हिंदी से संबंधित कृत्रिम मेधा में अभी और सुधार की जरूरत है। इसमें कभी-कभी दिक्कत हो जाती है। सत्र के अंत में प्रति कुलपति सुधीर कुमार अवस्थी ने आभार ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि एआई को मानव पर हावी नहीं होना चाहिए।

कृत्रिम मेधा प्रेम की धड़कन नहीं गिन सकती
जो मेहनत करी तेरा पैसा रहेगा, ना रेशम सही तेरा रेशा रहेगा, अभी पूरे कर ले सभी काम अपने, तू क्या सोचता है हमेशा रहेगा...पद्मश्री अशोक चक्रधर ने जैसे ही अपनी इस कविता का पाठ किया पूरा सीनेट हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। इसके अलावा उनकी कृत्रिम मेधा प्रेम की धड़कन नहीं गिन सकती कविता को भी पसंद किया गया। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविधालय के सीनेट हॉल में भाषा उत्सव के अंतिम दिन कवि सम्मेलन में प्रो. अशोक चक्रधर, राकेश कुमार मिश्र, डॉ. राजीव राज, गीतकार डॉ. सागर, रामायण धर द्विवेदी, सुधा रविंद्र, शेखर अस्तित्व और भूमिका जैन ने अपनी रचनाओं से खूब तालियां बटोरी।

इश्किया गजलों के माध्यम से युवाओं के मन को छुआ
अयोध्या से आए रामायण धर द्विवेदी ने अपने काव्य गीत अगर मगर कर समय बिताना, जुगनू जैसी जलती बुझती आशाएं... के माध्यम से का सभी का मन मोह लिया। इटावा से आए राजीव राज ने भी अपने भ्रष्ट व्यवस्था प्रेम के गीत, उमरिया, भागमभाग भरी जिंदगी गीत से सुनने वालों की खूब वाहवाही बटोरी। बॉलीवुड गीतकार शेखर अस्तित्व ने भी अपनी कला का प्रदर्शन करते हुए लोगों का मनोरंजन किया। बुलंदशहर क्राइम ब्रांच में बतौर एसपी राकेश मिश्रा ने भी अपनी इश्किया गजलों के माध्यम से युवाओं के मन को छुआ। कार्यक्रम में कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक, आयुर्वेदाचार्य डॉ. वंदना पाठक, प्रति कुलपति प्रो. सुधीर कुमार अवस्थी, कुलसचिव डॉ .अनिल कुमार यादव मौजूद रहे।

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