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Farrukhabad: जुगाड़ की नाव बनाकर किसानों ने तलाशी खेती की राह, तिरपाल, धान व लकड़ी के पटरों से बनाई गई

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, फर्रुखाबाद Published by: शिखा पांडेय Updated Mon, 01 Dec 2025 10:05 AM IST
सार

Farrukhabad News: जुगाड़ की नाव बनाकर किसानों ने खेती की राह तलाशी है।  दो-दो ट्रैक्टर एक साथ नाव पर लादकर ले जा सकते हैं।

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Farrukhabad: Farmers found a way to return to farming by making makeshift boats
समैचीपुर चितार में गंगा नदी में जुगाड़ की नाव पर लदा ट्रैक्टर - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बाढ़ प्रभावित क्षेत्र समैचारीपुर चितार के ग्रामीणों ने समस्याओं का समाधान निकालते हुए खुद ही तकनीक का सहारा लेकर जुगाड़ की नाव तैयार कर ली है। इससे अब किसान इस नाव के सहारे गंगा की दो धाराओं के बीच ट्रैक्टर आदि ले जाकर खेती-किसानी कर सकेंगे। गांव समैचीपुर में गंगा की दो धाराएं हैं। इसके बीच में किसानों की कई बीघा खेत हैं। हर वर्ष इन खेतों में बोआई करना किसानों के लिए बड़ी चुनौती हो जाती है। किसी के कोई ध्यान न देने पर ग्रामीणों ने खुद ही तरकीब निकाली। ग्रामीणों ने मिलकर तिरपाल और धान के पुआल से नाव बनाई है, जिससे ट्रैक्टर तक को आसानी से गंगा पार कर ले जाया जा सकता है।
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ग्रामीणों ने बताया कि बड़ी तिरपाल में धान का पुआल भरकर उसे मजबूती से बांधा गया। उसके ऊपर लकड़ी के पटरे बिछाए। इसके बाद इसमें ट्रैक्टर आदि को खड़ा करते हैं। इस नाव को स्टीमर से रस्सी में बांधते हैं। इसके बाद स्टीमर के सहारे तैयार की गई नाव धार के दूसरी तरफ पहुंचती है। इस नाव के सहारे हम लोग ट्रैक्टर, खाद की बोरियां व अन्य कृषि सामान भी आसानी से ले जा सकते हैं। नाव ट्रैक्टर का भार भी सहन करने में सक्षम है।
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ग्रामीणों ने बताया कि नाव बनाने में करीब 30 हजार का खर्च आया है। आपस में चंदा करके सभी लोगों ने जुगाड़ की नाव बनाई। नईम ने बताया कि खेत गंगा की धाराओं के बीच होने से जुताई-बोआई में काफी दिक्कत आ रही थी। ऐसे में सामूहिक प्रयास से नाव बनाई गई। ग्राम प्रधान ताराबानो ने बताया कि नाव पर दो ट्रैक्टर भी एक साथ गंगा में इधर-उधर ले जा सकते हैं। गंगा के टापू पर किसानों की करीब 500 बीघा खेती है।

ग्रामीणों ने गेहूं की बोआई शुरू की
जुगाड़ की नाव से किसानों ने खेतों में गेहूं की बोआई शुरू कर दी है। वर्षों से फसल बोआई को लेकर चली आ रही समस्या से निजात मिलने से ग्रामीण खुश हैं। राकेश कुमार, चांद मियां और अर्जुन कुमार आदि ग्रामीणों का कहना है कि अब न तो फसल की बोआई और न ही खेतों तक पहुंचने में परेशानी होगी। सामूहिक प्रयास और नवाचार से किसी भी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। यह नाव इसी का उदाहरण है।
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