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आजादी का अमृत महोत्सव: अपने ही गांव में गुमनाम हो गए स्वतंत्रता सेनानी, भारत छोड़ो आंदोलन में हुए थे शामिल

संवाद न्यूज एजेंसी, कुशीनगर। Published by: गोरखपुर ब्यूरो Updated Fri, 05 Aug 2022 09:37 AM IST
सार

 सुकई भगत के पौत्र रामभरोस कुशवाहा और सुकई पांडेय के पौत्र महेंद्र पांडेय ने बताया कि परिवार के लोगों को गर्व है कि उनके पूर्वज देश के काम आए। इस बात का मलाल भी है कि देश के नाम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने वालों के नाम पर एक स्मारक तक नहीं बन सका।

Freedom fighters gone anonymous in kushinagar
स्वतंत्रता सेनानी सुकई पांडेय। - फोटो : अमर उजाला।

विस्तार
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स्वतंत्रता आंदोलन में अहम योगदान देने वाले सुकई भगत और सुकई पांडेय अपने ही गांव में गुमनाम हो गए हैं। प्रशासनिक उपेक्षा के कारण लोग उन्हें भूलने लगे हैं। अंग्रेजों भारत छोड़ो, सत्याग्रह, सविनय आंदोलन, डांडी यात्रा जैसे कई आंदोलनों में शामिल होने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के निधन के बाद उनके सम्मान में स्मारक तक नहीं बन सका है।



नेबुआ नौरंगिया क्षेत्र के ग्राम सभा लौकरिया के निवासी सुकई भगत और सौहार्द खुर्द के सुकई पांडेय कम उम्र में ही स्वाधीनता आंदोलन में हिस्सा लेने लगे थे। वर्ष 1917 में नील की खेती के लिए पश्चिमी चंपारण में किसानों का आंदोलन चल रहा था। 15 अप्रैल 1917 को पश्चिमी चंपारण जाते समय महात्मा गांधी कुछ देर के लिए नेबुआ नौरंगिया चौराहे पर रुके थे। वहां उन्होंने एक सभा को संबोधित किया था। इससे प्रेरित होकर सुकई भगत और सुकई पांडेय ने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने का मन बना लिया।


दोनों 19 से 20 वर्ष की आयु में आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज से जुड़ गए। वर्ष 1932 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सुकई भगत को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर अंडमान निकोबार की जेल में छह माह तक रखा। वर्ष 1941 में अंग्रेजों ने उन पर सत्याग्रह आंदोलन के दौरान गिरफ्तार कर एक वर्ष की कैद और 100 रुपये का जुर्माना लगाया। सुकई पांडेय को भी अंग्रेजों ने पडरौना से गिरफ्तार कर कोलकाता जेल में डाल दिया। उनके साथ बगहा बिहार के जगरनाथ दुबे भी बंद थे।
 

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स्वतंत्रता सेनानी सुकई भगत। - फोटो : अमर उजाला।
आजादी के बाद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुकई पांडेय और सुकई भगत को पेंशन मिलने लगी। वर्ष 1986 में सुकई पांडेय का निधन हो गया। दो साल बाद 1988 में सुकई भगत का भी निधन हो गया। दोनों के निधन के बाद सरकार ने कभी उनकी सुध नहीं ली।'

 सुकई भगत के पौत्र रामभरोस कुशवाहा और सुकई पांडेय के पौत्र महेंद्र पांडेय ने बताया कि परिवार के लोगों को गर्व है कि उनके पूर्वज देश के काम आए। इस बात का मलाल भी है कि देश के नाम पर अपना सब कुछ न्योछावर करने वालों के नाम पर एक स्मारक तक नहीं बन सका।

स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान से आजादी मिली है। सेनानियों के नाम पर अमृत सरोवर का निर्माण कराया जा रहा है। -विनीत कुमार यादव, बीडीओ, नेबुआ नौरंगिया
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