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बांकेबिहारी का प्राकट्योत्सव: लकड़ी के डोले से आरंभ हुई सवारी, अब चांदी का रथ...भव्य होता है आयोजन
संंवाद न्यूज एजेंसी, मथुरा
Published by: अमर उजाला ब्यूरो
Updated Thu, 05 Dec 2024 09:32 AM IST
सार
वर्ष 1955 में ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के परंपरागत प्राकट्योत्सव आयोजन का नवीनीकरण हुआ था, जिसमें कई नए कार्यक्रम शामिल किए गए।
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मथुरा। निधिवनराज स्थित ठाकुर श्रीबांकेबिहारी महाराज की प्रागट्यस्थली।
- फोटो : mathura
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विस्तार
वृंदावन में विहार पंचमी को 481 साल पहले जन जन के आराध्य ठाकुर बांकेबिहारी महाराज का प्रादुर्भाव हुआ था। तभी से इस उत्सव पर बधाई सवारी (शोभायात्रा) निकाले जाने की परंपरा वर्ष 1957 से निरंतर चली आ रही है। प्राकट्योत्सव पर निधिवन से मंदिर तक शुरुआत में लकड़ी के डोले से आरंभ हुई सवारी अब चांदी के रथ के साथ निकलती है।
बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि वर्ष 1955 में ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के परंपरागत प्राकट्योत्सव आयोजन का नवीनीकरण हुआ था, जिसमें कई नए कार्यक्रम शामिल किए गए। इसके बाद वर्ष 1957 में पहली बार स्वामी हरिदासजी की सवारी निकाली गई। तब से सवारी निकालने की परंपरा निरंतर चली आ रही है। इस वर्ष 67 वीं वार स्वामीहरिदासजी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी।
उन्होंने बताया कि वर्ष 1955 में बांकेबिहारी मंदिर की तत्कालीन (छठी) प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष पूर्व डिप्टी कलक्टर बाबूराम यादव एवं सदस्यगण गोस्वामी रोहिणीचंद, रंगीलेवल्लभ, रामशंकर, प्रियाशरण एवं बांकेबिहारी समारोह परिषद संयोजक गोस्वामी छबीलेवल्लभ आदि ने परंपरागत समारोह को अतीत के आधार पर दिव्यता व वर्तमान के अनुसार भव्यता प्रदान की। पहली वार स्वामी हरिदासजी पीले रंग की सनील के कपड़े से सजाए गए लकड़ी के डोले में विराजित होकर बिहारीजी के मंदिर पहुंचे थे। इस अवसर पर निधिवन में स्वामीजी की प्रतिमा की स्थापना व स्वामी हरिदास अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया गया था।
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बांकेबिहारी मंदिर के सेवायत प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि वर्ष 1955 में ठाकुर बांकेबिहारी महाराज के परंपरागत प्राकट्योत्सव आयोजन का नवीनीकरण हुआ था, जिसमें कई नए कार्यक्रम शामिल किए गए। इसके बाद वर्ष 1957 में पहली बार स्वामी हरिदासजी की सवारी निकाली गई। तब से सवारी निकालने की परंपरा निरंतर चली आ रही है। इस वर्ष 67 वीं वार स्वामीहरिदासजी की भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी।
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उन्होंने बताया कि वर्ष 1955 में बांकेबिहारी मंदिर की तत्कालीन (छठी) प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष पूर्व डिप्टी कलक्टर बाबूराम यादव एवं सदस्यगण गोस्वामी रोहिणीचंद, रंगीलेवल्लभ, रामशंकर, प्रियाशरण एवं बांकेबिहारी समारोह परिषद संयोजक गोस्वामी छबीलेवल्लभ आदि ने परंपरागत समारोह को अतीत के आधार पर दिव्यता व वर्तमान के अनुसार भव्यता प्रदान की। पहली वार स्वामी हरिदासजी पीले रंग की सनील के कपड़े से सजाए गए लकड़ी के डोले में विराजित होकर बिहारीजी के मंदिर पहुंचे थे। इस अवसर पर निधिवन में स्वामीजी की प्रतिमा की स्थापना व स्वामी हरिदास अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया गया था।
