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गौरीशंकर मंदिर पर कांवरियों का जमावड़ा
Mau
Updated Mon, 29 Jul 2013 05:33 AM IST
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कोपागंज। कस्बा के राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित प्राचीन गौरीशंकर मंदिर पर सावन के पहले सोमवार को भगवान शंकर का जलाभिषेक करने के लिए श्रद्धालुओं का रेला लगेगा। मान्यता है कि सच्चे मन से पूजन अर्चन करने से मनोकामना पूरी हो जाती है।
लगभग छह सौ वर्ष का इतिहास समेटे कोपागंज थाने के सामने स्थित मंदिर अपने गर्भ में कईं किंवदंतियां समेटे हुए हैं। मध्य प्रदेश के खोड़िया स्टेट के राजा पिथौरा कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। कुष्ठ रोग से निजात के लिए राजा ने तमाम इलाज करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। एक साधु ने बताया कि महाराज नेपाल स्थित पशुपति भगवान मंदिर का भभूति शरीर पर लगाएं तो आपका कुष्ठ रोग ठीक हो जाएगा। राजा कई दिनों तक सफर करने के पश्चात कोपागंज पहुंचे। राजा ने नित्यक्रिया से निपटने के लिए जंगल में गए और वहां स्थित छोटे गड्ढे के पास पहुंचे। राजा ने जैसे ही गड्ढे में हाथ डाला तो देखा कि राजा का पूरा हाथ जो कुष्ठ रोग से ग्रसित था वह ठीक हो गया। आश्चर्यचकित राजा बिना देर किए स्नान किया और उनके शरीर का कोढ़ समाप्त हो गया। राजा ने सहयोगी को अपने पास पहुंचकर अपने मंत्री से पूरी घटना बताई। यह सुन सभी गड्ढे की खुदाई करने लगे। थोड़ी ही देर बाद एक शिवलिंग दिखाई दी। राजा ने शिवलिंग निकलवाने का काफी प्रयास किया। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। अंत में हार मानकर राजा ने मंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया। राजा ने लाव लश्कर के साथ राज्य कोे प्रस्थान कर गए। कुछ दिनों के पश्चात राजा पुन: कोपागंज आए और उसी गड्ढे के ऊपर स्थापित है मंदिर का भव्य निर्माण संवत 1529 में कराया। मंदिर के प्रवेश द्वार पर फारसी भाषा में संवत 1529 और राजा पिथौरा का नाम टूटेफूटे अक्षरों मेें आज भी अंकित नजर आता है। सावन के पहले सोमवार को दूरदराज सहित गैर जिलों से शिवभक्त विधि विधान से जलाभिषेक करेंगे।
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लगभग छह सौ वर्ष का इतिहास समेटे कोपागंज थाने के सामने स्थित मंदिर अपने गर्भ में कईं किंवदंतियां समेटे हुए हैं। मध्य प्रदेश के खोड़िया स्टेट के राजा पिथौरा कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। कुष्ठ रोग से निजात के लिए राजा ने तमाम इलाज करवाया लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। एक साधु ने बताया कि महाराज नेपाल स्थित पशुपति भगवान मंदिर का भभूति शरीर पर लगाएं तो आपका कुष्ठ रोग ठीक हो जाएगा। राजा कई दिनों तक सफर करने के पश्चात कोपागंज पहुंचे। राजा ने नित्यक्रिया से निपटने के लिए जंगल में गए और वहां स्थित छोटे गड्ढे के पास पहुंचे। राजा ने जैसे ही गड्ढे में हाथ डाला तो देखा कि राजा का पूरा हाथ जो कुष्ठ रोग से ग्रसित था वह ठीक हो गया। आश्चर्यचकित राजा बिना देर किए स्नान किया और उनके शरीर का कोढ़ समाप्त हो गया। राजा ने सहयोगी को अपने पास पहुंचकर अपने मंत्री से पूरी घटना बताई। यह सुन सभी गड्ढे की खुदाई करने लगे। थोड़ी ही देर बाद एक शिवलिंग दिखाई दी। राजा ने शिवलिंग निकलवाने का काफी प्रयास किया। लेकिन सफलता नहीं मिल सकी। अंत में हार मानकर राजा ने मंदिर की स्थापना करने का निर्णय लिया। राजा ने लाव लश्कर के साथ राज्य कोे प्रस्थान कर गए। कुछ दिनों के पश्चात राजा पुन: कोपागंज आए और उसी गड्ढे के ऊपर स्थापित है मंदिर का भव्य निर्माण संवत 1529 में कराया। मंदिर के प्रवेश द्वार पर फारसी भाषा में संवत 1529 और राजा पिथौरा का नाम टूटेफूटे अक्षरों मेें आज भी अंकित नजर आता है। सावन के पहले सोमवार को दूरदराज सहित गैर जिलों से शिवभक्त विधि विधान से जलाभिषेक करेंगे।
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