विशेष: जब 128 वर्ष पहले सूरजकुंड आया गंगाजल तो गूंज उठे थे जयकारे, शहर में आपूर्ति के लिए खर्च हुए थे 1.5 करोड़
गंगनहर ने शहर को पहले 1896 में मेरठ शहर में पानी और बाद में 1910 में बिजली की आपूर्ति दी। ऐतिहासिक सूरजकुंड पार्क में गंगाजल की आपूर्ति शुरू हुई। शहर में जलापूर्ति के लिए यह नहर सबसे बड़ा साधन है।

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आज से करीब 128 वर्ष पूर्व जब गंगनहर से गंगाजल मेरठ में सूरजकुंड पहुंचा तो आसपास के इलाकों से हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ यह नजारा देखने पहुंच गई। गंगा मैया के जयकारों से आसमान गूंज उठा। सूरजकुंड स्थित बाबा मनोहरनाथ मंदिर, सती माता मंदिर, शमशान घाट, नांगा बाबा ट्रस्ट और कालू बाबा ट्रस्ट के सामने सूरजकुंड क्षेत्र में पूजनीय स्थल था। यहां गंधक का भी स्रोत था और इसे खांडव वन कहा जाता है। तालाब के सूखने के बाद सिर्फ यहां सिर्फ सीढ़ियां ही शेष रह गईं। अब इस तालाब को पार्क में बदल दिया गया है।

अंग्रेज इंजीनियर प्रोबी कॉटले ने 16 अप्रैल 1842 को 898 मील लंबी गंगनहर की खोदाई शुरू कराई। आठ अप्रैल 1854 को रुड़की में गंगनहर में जल छोड़ा गया तो इस नजारे को देखने के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से विशाल जनसमूह पहुंच गया। आधे घंटे तक गंगा मैया के जयकारे गूंजते रहे। गंगनहर में पानी आया तो पश्चिमी उप्र का पूरा इलाका सूखे के संकट से मुक्त हो गया और यहां फसलें लहलहाने लगीं।
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इतिहासविद् डॉ. अमित पाठक बताते हैं कि गंगनहर ने शहर को पहले 1896 में मेरठ शहर में पानी और बाद में 1910 में बिजली की आपूर्ति दी। ऐतिहासिक सूरजकुंड पार्क में गंगाजल की आपूर्ति शुरू हुई। मेरठ गजट यूनाइटेड प्रोविंस ऑफ आगरा में अंग्रेज अफसर एचआर हैवल ने लिखा है कि म्यूनिसिपल बोर्ड ने सूरजकुंड तक गंगाजल पहुंचाने की व्यवस्था गंगनहर के माध्यम से की थी।
शहर में जलापूर्ति के लिए यह नहर सबसे बड़ा साधन है। महामंडलेश्वर निलिमानंद जी ने बताया कि सूरजकुंड में पहले स्वंय ही पानी रहता था। इसके बाद अंग्रेजों ने यहां गंगनहर से पानी पहुंचाया। गंगा दशहरा पर यहां मेला लगता था। समय के साथ पानी की आपूर्ति बाधित हो गई।
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गंगनहर के पानी से भरती थी तहसील की टंकी
वेस्ट एंड रोड स्थित कैसल व्यू के सामने लगी पानी की टंकी और खंदक पुरानी तहसील क्षेत्र में दो पानी की टंकियों में भोला से दो अलग पाइपों के माध्यम से पानी आता था। इतिहाकार डॉ. अमित पाठक ने बताया कि वर्ष 1894 में पाइपलाइन के जरिए शहर को पानी की आपूर्ति के लिए भोला झाल पर नेचुरल पंपिंग सेट लगाए गए। भोला झाल से 1896 में मेरठ शहर में पानी आया। छावनी में पानी 1899 में पहुंचा। छावनी और शहर के अंदर टंकियों से पानी की सप्लाई होती थी।
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पहली बार बिजली भी गंगनहर ने उपलब्ध कराई
शहर में बिजली की आपूर्ति देने के लिए वर्ष 1910 में गंगनहर की भोला झाल पर टरबाइन लगाए गए। भोला झाल में उत्पन्न होने वाली बिजली का प्रयोग सिर्फ छावनी में ही किया जाता था। 1936 में सलावा में टरबाइन की क्षमता बढ़ाई गई। तब टरवाबइन स्विटजरलैंड से और अन्य मशीनें स्वीडन से मंगवाई गईं।
छह महीने घोड़े से घूमकर कॉटले ने किया सर्वे
रुड़की से कानपुर तक छह महीने घोड़े पर घूमकर कॉटले ने गंगनहर का सर्वे किया। तब गंगनहर पर करीब 1.5 करोड़ रुपये की लागत आई। नहर के किनारे ही हर 25 से 40 किलोमीटर के बीच ईंट भट्ठे लगाए जाते थे।