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लोकसभा चुनाव 2019 : सपा-बसपा गठबंधन से बदला सियासी समीकरण, भाजपा उतारेगी पांच सीटों पर नए चेहरे!

प्रदीप मिश्र,अमर उजाला,वाराणसी Published by: Sayali Maurya Updated Tue, 12 Mar 2019 12:34 PM IST
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सार

  • सपा-बसपा गठबंधन के बाद बदले माहौल को साधने में जुटी भाजपा
  • आंतरिक सर्वे की रिपोर्ट के बाद आलाकमान पशोपेश में, अंतर्विरोध का डर

BJP Stand 5 new candidates in loksabha election 2019
सपा-बसपा गठबंधन (फाइल फोटो)

विस्तार
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बीते चुनाव में वाराणसी, आजमगढ़ और मिर्जापुर मंडल की 12 लोकसभा सीटों में 10 पर प्रधानमंत्री मोदी समेत भाजपा के सांसद जीते थे। मिर्जापुर सीट पर भाजपा के सहयोग से अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने भी बाजी मारी थी। लेकिन अब सपा-बसपा के साथ आने के बाद सूबे में बदले सियासी समीकरण को साधने में पार्टी को पसीने छूट रहे हैं। पार्टी ने पिछले दिनों एक आंतरिक सर्वे कराया जिसमें सूबे में दो दर्जन से अधिक सीटों पर स्थानीय पार्टी सांसदों की हालत पतली पाई गई। 

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यही कारण है कि भाजपा संसदीय बोर्ड ने वाराणसी से प्रधानमंत्री का ही टिकट तय किया है, जबकि अन्य सीटों के प्रत्याशियों के नाम पर मंथन जारी है। तीनों मंडलों में छठे और सातवें चरण में मतदान होना है लेकिन संकेतों के मुताबिक पार्टी नेतृत्व पांच वर्तमान सांसदों के टिकट काटने पर विचार कर रहा है। रेल राज्यमंत्री मनोज सिन्हा और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के क्षेत्र बदलने की अटकलें हैं।
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पार्टी के अंदरूनी सूत्र कह रहे हैं कि 2014 में ‘मोदी लहर’ और बिखरे विपक्ष के कारण भाजपा पूर्वांचल की कई सीटों पर जीत गई थी लेकिन इस बार सपा-बसपा गठबंधन की सीटें तय होने के बाद इन्हें फिर हासिल करना कड़ी चुनौती होगी। दरअसल, पांच साल पहले दोनों दलों के प्रत्याशियों को अलग-अलग मिले मतों ने भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। जातीय गणित भी भाजपा के पक्ष में नहीं है। 

पार्टी मान रही है कि जिस तत्परता और निरंतरता से प्रधानमंत्री ने वाराणसी में विकास कार्य कराए हैं, अन्य संसदीय क्षेत्रों में ऐसा नहीं हो पाया। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव में तीनों मंडल की 61 विधानसभा सीटों में भाजपा को कमोवेश 2014 जैसा जनादेश मिला था पर अब स्थितियां और सियासी समीकरण बदल गए हैं। टिकट बंटवारे के लेकर पार्टी के अंदर खेमेबाजी और अंतर्विरोध बढ़ने का अंदेशा भी बढ़ गया है।

इन प्रत्याशियों के टिकट मिलने पर है संशय

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भरत सिंह (फाइल फोटो)
चर्चा है कि बलिया से भरत सिंह, जौनपुर से केपी सिंह, भदोही से वीरेंद्र सिंह मस्त, घोसी से हरिनारायण राजभर और राबर्ट्सगंज से छोटेलाल खरवार को दोबारा टिकट नहीं मिल रहा है। बलिया से केतकी सिंह, भाजपा के प्रदेश उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह भी दावेदार हैं। सपा से नीरज शेखर को प्रत्याशी बनाए जाने पर जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए भरत सिंह की टिकट काटी जा सकती है।

जौनपुर में भी पार्टी नया प्रयोग करना चाहती है। भाजपा प्रवक्ता प्रेम शुक्ला जौनपुर के हैं और इन दिनों उनकी सक्रियता उनको टिकट दिए जाने का संकेत दे रही है। सीट से भोजपुरी फिल्मों के अभिनेता रवि किशन की भी चर्चा है। बसपा की ओर से रंगनाथ मिश्र की उम्मीदवारी के बाद मस्त के लिए भदोही संसदीय क्षेत्र का जातीय गणित उपयुक्त नहीं माना जा रहा है।

बसपा से रंगनाथ मिश्र की उम्मीदवारी उनकी राह मुश्किल कर रही है। भाजपा खेमें में चर्चा है कि यहां से पिछड़ा कार्ड चलकर बसपा से निष्कासित रमेश चंद्र बिंद को लड़ाया जा सकता है। संभावना यह भी है कि मस्त को बलिया से चुनाव लड़ाया जाए।

राबर्ट्सगंज सांसद खरवार और घोसी सांसद राजभर प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर जब-तब सवाल उठाते रहे हैं। दोनों की भाजपा कार्यकर्ताओं से अनबन भी कई बार जाहिर हो चुकी है। हरिनारायण की जगह भाजपा प्रदेश के वन मंत्री दारा सिंह को उम्मीदवार बना सकती है।

पिछली बार बसपा के टिकट पर दूसरे स्थान पर रहना दारा सिंह के पक्ष को मजबूत करता है। खरवार की उम्मीदवारी इसलिए भी खतरे में है, क्योंकि अद (एस) मिर्जापुर सीट पर लाभ के लिए यहां से पकौड़ी लाल कोल के लिए टिकट मांग रहा है।

 

‘कृपा’ से बचेगी राम चरित्र निषाद की टिकट!

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नितिन गडकरी के साथ रामचरित्र निषाद (फाइल फोटो)

दूसरी ओर मछलीशहर से भाजपा के प्रदेश महामंत्री और विधान परिषद सदस्य विद्यासागर सोनकर के अलावा केराकत विधायक दिनेश चौधरी को प्रत्याशी बनाए जाने और मौजूदा सांसद रामचरित्र निषाद को दिल्ली से किसी क्षेत्र से उम्मीदवार बनाए जाने की चर्चा थी।

अब कहा जा रहा है कि गडकरी की ‘कृपा’ से मौजूदा सांसद राम चरित्र निषाद की टिकट बच जाएगी। बताया जा रहा है कि गोरखपुर उपचुनाव में पराजय के बाद भाजपा निषाद समुदाय को नाराज नहीं करना चाहती है।

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