काशी में मां ने बेटे को दी मुखाग्नि: पति ने 15 साल पहले छोड़ दिया, अंत समय में बेटी भी नहीं आई; उजड़ गई दुनिया
Varanasi News: वाराणसी में समाजसेवी अमन कबीर की मदद से उस मां को मदद मिली, जिसकी पूरी दुनिया ही उजड़ गई। पति ने पहले ही छोड़ दिया था। एकमात्र बेटे का सहारा था, उसकी भी बीमारी से माैत हो गई।
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Aman Kabir Varanasi: बीते बुधवार को काशी में एक ऐसा मार्मिक दृश्य देखने को मिला, जिसने हर किसी के दिल को झकझोर दिया। मौत के बाद अंतिम संस्कार की परंपराओं में आमतौर पर पिता, पुत्र या भाई को ही मुखाग्नि देने का अधिकार माना जाता है, लेकिन काशी के हरिश्चंद्र घाट पर उस समय भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा जब एक मां ने अपने ही बेटे को मुखाग्नि दी।
बनारस के औरंगाबाद में वर्षों से किराए के कमरे में रहने वाली कुसुम चौरसिया के 23 वर्षीय बेटे राहुल की बीमारी से माैत हो गई। उस वक्त उनकी वह बेटी तक मदद करने के लिए नहीं, जो रोज किसी न किसी काम से आया करती थी। कुसुम के पति भी 15 साल पहले उन्हें छोड़कर चले गए लेकिन उन्होंने कभी भी मांग में सिंदूर लगाना नहीं छोड़ा।
बताया जा रहा है कि राहुल कुछ समय से बीमार चल रहा था। मां कुसुम दूसरों के घरों में झाड़ू-बर्तन का काम करती थीं। इसी से घर के खर्च चलते थे। दूसरी तरफ, बेटी भी छोटे-छोटे सामान लेने आ जाया करती थी। कुसुम अपनी बेटी को खुश देखना चाहती थीं, इसलिए हर बार वे उसे कुछ न कुछ देकर ससुराल भेजती थीं।
बुजुर्ग महिला की उजड़ गई पूरी दुनिया
शर्मनाक बात तब सामने आई, जब भाई की माैत पर बहन घर झांकने तक नहीं आई। कह दिया कि उसके यहां भी गमी पड़ गई है। बेटी के इस जवाब पर मां अपने बेटे की लाश कमरे में रखकर निराश बैठी रही। मोहल्ल के रोहित चौरसिया ने इसकी सूचना समाजसेवी अमन कबीर को दी।
समाजसेवी अमन बुजुर्ग कुसुम के घर पहुंचे। अमन कबीर सेवा न्यास की मदद से राहुल चौरसिया की लाश को लेकर हरिश्चंद्र घाट पहुंचे। यहां हिन्दू रीति-रिवाज से राहुल के अंतिम संस्कार की तैयारियां की गईं। घर में किसी के न होने के कारण मां ने खुद अपने बेटे की चिता को अग्नि दी।
मजबूरियों के बीच मां ने वह जिम्मेदारी निभाई, जिसे निभाने की कल्पना मात्र से भी दिल कांप उठे। घाट पर मौजूद लोगों की आंखें नम हो गईं जब वृद्ध मां ने कांपते कदमों और डगमगाते हाथों से पुत्र की चिता को अग्नि दी।
अमन कबीर के अनुसार, मां ने मुखाग्नि देने से पहले बेटे के चेहरे को आखिरी बार स्पर्श किया, फिर भगवान से उसके मोक्ष की प्रार्थना की। उसके शरीर पर घी का लेपन भी किया। कुसुम के आंसू लगातार बह रहे थे। उसने बताया कि विवाह का सपना था, लेकिन सब चकनाचूर हो गया। वहां मौजूद लोगों का कहना था कि काशी में अनेक विधि-विधान रोज होते हैं, लेकिन मां का ऐसा साहस और दर्द बहुत कम देखने को मिलता है।