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पितृपक्ष: 10 राज्यों के 40 हजार लोगों ने पितरों का किया तर्पण, काशी में श्राद्धकर्म के लिए उमड़ी भीड़

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: अमन विश्वकर्मा Updated Sat, 13 Sep 2025 06:06 AM IST
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सार

Pitru Paksha 2025: काशी के पिशाच मोचन सहित विभिन्न घाटों पर पितरों के श्राद्ध कर्म करने के लिए लोग पहुंच रहे हैं। विधि-विधान से पितरों का पर्तण किया जा रहा है। 

Pitru Paksha 40 thousand people from 10 states performed Tarpan for ancestors Shraddha Karma in Kashi
पिशाच मोचन पर श्राद्ध कर्म करते लोग। - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Varanasi News: पितृपक्ष की पंचमी तिथि पर शुक्रवार को पिशाचमोचन कुंड और घाटों पर मेले जैसा माहौल था। 40 हजार से अधिक लोगों ने पितृदोष से मुक्ति के लिए श्राद्धकर्म किया और पितरों को तृप्तकर सुख-समृद्धि की कामना की। पिशाचमोचन कुंड पर सुबह से रात तक भीड़ रही।

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शुक्रवार को पंचमी और भरणी नक्षत्र के उत्तम संयोग होने से 10 से अधिक राज्यों से लोग बृहस्पतिवार शाम से ही आने लगे। पिशाचमोचन के आसपास की सड़कों पर वाहनों की कतार लगी रही। दिन में दो बजे तक कुंड के सात घाटों के अलावा कुंड के किनार श्राद्धकर्म के लिए भीड़ रही। 
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कर्मकांडी ब्राह्मणों ने श्राद्धकर्म कराए। गया जाने के लिए लोगों ने पिंडदान किया। परिवार में सुख-शांति और समृद्धि के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध करवाए। तीर्थ पुरोहित मुन्ना पांडेय ने बताया कि श्राद्ध और त्रिपिंडी के लिए 40 हजार से अधिक लोगों की भीड़ रही। 14 सितंबर को अष्टमी और 15 को नवमी तिथि के अलावा एकादशी, त्रयोदशी और अमावस्या तिथि पर भी काफी भीड़ होगी।

कुंड पर फैली पूजन सामग्रियां, मरने लगीं मछलियां
पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्धकर्म के बाद पूजन सामग्री फैली हुई थी। उठान न होने से जगह जगह डंप भी पड़ा है। इसके चलते श्राद्धकर्म करवाने वालों को दिक्कत हो रही है। वहीं, कुंड में सामग्री डाले जाने से पानी भी गंदा हो रहा है। इसके चलते कुंड की मछलियां मरने लगी हैं।

चार तरह के श्राद्धकर्म, 61 तरह की सामग्रियों से हो रहा तर्पण
पितृपक्ष में लोग पितृदोष से मुक्ति के लिए पिशाचमोचन कुंड पर श्राद्धकर्म कर पितरों को तृप्तकर सुख-समृद्धि की कामना कर रहे हैं। चार तरह के श्राद्धकर्म के लिए 40 से 61 तरह की सामग्रियों की जरूरत पड़ती है। इसे जुटाने में छह माह लग जाते हैं। इसमें त्रिदेवों की सोने, चांदी और तांबे की मूर्ति के अलावा तीन तरह की औषधियां, छह तरह के फूल और पत्तियां, चार तरह के पल्लव आदि होते हैं। 

पितृदोष से मुक्ति के लिए चार तरह के श्राद्धकर्म होते हैं। इसमें त्रिपिंडी, नारायण बलि, पार्वण और तीर्थ श्राद्ध हैंं। कर्मकांडी ब्राह्मण पं. कुलवंत मणि त्रिपाठी ने बताया कि त्रिपिंडी श्राद्ध में 40 सामग्री, नारायण बलि में 61, पार्वण श्राद्ध में 35 से 40 और तीर्थ श्राद्ध में 20 सामग्री की जरूरत पड़ती है। 

श्राद्धकर्म में त्रिदेवों और सोने की नाग की मूर्तियों के अलावा धातु का लोटा, नारियल, चार तरह के कपड़े, तीन तरह का झंडा, 16 पीस जनेऊ, 16 सोपाड़ी, नारा, पीला सरसों, रोरी, चंदन, घी, बुका, कपूर, लौंग, इलायची, दूध, शहद, पंचरत्न, सर्व औषधि, गुलाब जल, केवड़ा, इत्र, केला, मिठाई, नींबू, मुसम्मी, अदरक, कूसा, पान का पत्ता, तील, चावल, जौ, जूता, छाता, अपराजिता, मदार, दौना का फूल, बेलपत्र, तुलसी, दुर्वा, लोटा, कसोरा, दीया, कलश, पत्तल आदि सामग्रियां शामिल होती हैं।

छह दिन में दो लाख लोगों ने किया श्राद्धकर्म
पितृपक्ष पर काशी में श्राद्धकर्म के लिए रोज ही 15 से 20 हजार लोग पहुंच रहे हैं। पिशाचमोचन कुंड, गंगाघाटों और गलियों में छह दिनों में दो लाख से अधिक लोगों ने अपने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए पिंडदान व श्राद्धकर्म किया। पिशाचमोचन कुंड के तीर्थ पुरोहित पं. आनंद पांडेय व पं. अनिल उपाध्याय ने बताया कि तिथियों पर 30 से 40 हजार और सामान्य दिनों में 10 से 15 हजार लोग श्राद्ध व पिंडदान करवा रहे हैं।

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