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काशी का अनोखा मंदिर: डेढ़ घंटे के लिए ही खुलता है वाराही देवी का कपाट, बेड़ियों से मिलती है मुक्ति; जानें खास

अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी। Published by: अमन विश्वकर्मा Updated Sun, 06 Apr 2025 04:44 PM IST
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सार

काशी नगरी में वाराही देवी का मंदिर काफी प्रख्यात है। वाराही देवी के दर्शन से भक्तों को विशेष लाभ मिलते हैं। वे काशी की क्षेत्रपालिका के रूप में यहां विराजमान हैं। इनका शीश जंगली सूकर का है।

Varahi Devi temple open one and half hours only in varanasi one gets freedom from shackles
वाराही देवी। - फोटो : अमर उजाला
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शक्ति के बिना शिव शव के समान हैं। यही कारण है कि शिव की नगरी में शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा विभिन्न स्वरूपों में विराजमान हैं। नौ दुर्गा, नौ गौरी के साथ ही 64 योगिनियां भी काशी में विराजमान हैं। उन्हीं मंदिरों में विराजमान वाराही देवी का दर्शन महज डेढ़ घंटे के लिए होता है तो बंदी देवी के दर्शन से व्यक्ति कारागार की बेड़ियों से मुक्त हो जाता है। वहीं अंबिकेश्वर गौरी वर्ष में महज एक दिन ही भक्तों का भोग स्वीकार करती हैं। 

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झरोखे से होते हैं दर्शन
दशाश्वमेध क्षेत्र के मानमंदिर घाट की गलियों में वाराही देवी विराजमान हैं। काशी की क्षेत्रपालिका के रूप में काशी की रक्षा करने वाली वाराही देवी भक्तों की हर मुराद पूरी करती हैं। वाराही देवी का मंदिर भोर में मंगला आरती के बाद पांच बजे खुलता है। 
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आम श्रद्धालुओं को सुबह सात बजे से 8:30 बजे तक ही झरोखे से दर्शन मिलते हैं। इसके बाद मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं। यह मंदिर जमीन से एक मंजिल नीचे है। इनके दर्शन के लिए ऊपर छत में झरोखा बनाया गया है। वाराही देवी भगवान विष्णु के वराह अवतार की शक्ति स्वरूपा हैं। इनका शीश जंगली सूकर का है।

तारा सुंदरी की समाधि पर है मां तारा का मंदिर
देवनाथ पुरा मोहल्ले में पांडेय घाट पर स्थित तारामाता के मंदिर की कहानी भी अनोखी है। बाहर से यह एक पुरानी कोठियों जैसा नजर आने वाला यह मंदिर अंदर से एक बड़ी-सी हवेली की तरह भव्य है। मंदिर की मूर्ति की नींव में राजकुमारी की जीवित समाधि है। तंत्र की देवी मां तारा को समर्पित मंदिर का निर्माण बंगाल के नाटोर की रानी भवानी ने 1752 से 1758 के बीच करवाया था।

वर्ष में एक ही दिन मां स्वीकार करती हैं भक्तों का भोग
काशी की नौ गौरियों में एक विशेष गौरी हैं, जो वर्ष में एक बार ही अपने भक्तों का भोग प्रसाद स्वीकार करती है। शेष वर्ष के 364 दिन वह उपवास करती हैं। हम बात कर रहे हैं मां अंबिका गौरी की। 

मृत्युंजय महादेव मार्ग पर रत्नेश्वर मंदिर के सामने सतीश्वर महादेव मंदिर में मां अंबिका गौरी का विग्रह विराजमान है। चैत्र नवरात्र की चतर्थी पर ही माता को भोग लगाया जाता है। इसके अलावा बाकी 364 दिन माता उपवास करती हैं। 

वहीं, काशीखंड में वर्णित है कि जगत्विख्यात् देवाधिदेव महादेव एवं श्रीहरि विष्णु की प्रिय नगरी काशीपुरी के पग-पग पर स्थित देवतीर्थ स्थानों पर जगत जननी माता अपने मुखनिर्मालिका गौरी, ज्येष्ठागौरी, सौभाग्यगौरी-शृंगारगौरी, शान्तिकरी गौरी, विशालाक्षी गौरी, ललितागौरी, भवानीगौरी, मंगलागौरी और अन्य विभिन्न स्वरूपों में विद्यमान हैं। 

कोर्ट कचहरी से मुक्त कर देती हैं बंदी देवी
प्रयागघाट पर स्नान करके जो व्यक्ति बंदीदेवी का दर्शन कर लेता है उसे जीवन में कभी लोहे की बेड़ियों से नहीं बांधा जाता। बंदी देवी का मंदिर दशाश्वमेध घाट पर स्थित है, जहां देवी को फूल माला की जगह ताला चाबी चढ़ाई जाती है।

पाताल लोक की देवी बंदी देवी का मंदिर पूरे विश्व में इकलौता मंदिर बनारस में ही है। काशी खंड के अनुसार कैद, जेल से छुटकारा पाने की इच्छा से जो मनुष्य प्रत्येक मंगलवार को भक्तिपूर्वक केवल एक ही बार भोजन करके काशी में निगडभंजनी देवी अर्थात बंदी देवी का पूजन करता है तो देवी पूजित हो जाने पर सभी बंधनों को काट डालती हैं।

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