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Year Ender 2025: महाकुंभ के 45 दिनों में तीन करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचे काशी, घाट भी रहे गुलजार
अमर उजाला नेटवर्क, वाराणसी।
Published by: प्रगति चंद
Updated Thu, 25 Dec 2025 05:04 PM IST
सार
Year Ender 2025: महाकुंभ के दौरान 45 दिनों में तीन करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु बाबा विश्वनाथ के धाम में पहुंचे। इस दौरान काशी महाकुंभ की छाया में धर्म, दर्शन और परंपरा से सराबोर रही।
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kashi vishwanath dham
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
सनातन परंपरा की अनंत धारा को अपने भीतर समेटे काशी नगरी के लिए वर्ष 2025 धार्मिक दृष्टि से ऐतिहासिक रहा। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ का व्यापक प्रभाव हो या काशी विश्वनाथ धाम में श्रद्धालुओं की लगातार बढ़ती संख्या। पूरे वर्ष वाराणसी आस्था, अनुष्ठान और उत्सवों का जीवंत केंद्र बनी रही। 45 दिनों में तीन करोड़ से ज्यादा श्रद्धालुओं ने बाबा के धाम में दर्शन किए।
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गंगा के घाट, मंदिरों के प्रांगण और मठ-आश्रम श्रद्धा के रंग में रंगे नजर आए। वर्ष 2025 ने यह स्पष्ट कर दिया कि काशी केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि जीवंत आस्था की राजधानी है। महाकुंभ के प्रभाव से लेकर देव दीपावली की भव्यता तक, पूरे वर्ष काशी धर्म, दर्शन और संस्कृति के संगम के रूप में स्थापित रही। आने वाले वर्षों में भी काशी इसी तरह विश्व की आध्यात्मिक चेतना का मार्गदर्शन करती रहेगी।
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महाकुंभ 2025: काशी बना दूसरा बड़ा तीर्थ पड़ाव
प्रयागराज महाकुंभ में संगम स्नान के बाद श्रद्धालुओं का रुख स्वाभाविक रूप से काशी की ओर रहा। मान्यता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन के बिना तीर्थ यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसी कारण महाकुंभ काल के दौरान लाखों श्रद्धालु वाराणसी पहुंचे। साधु-संतों, अखाड़ों और महामंडलेश्वरों की मौजूदगी से काशी का धार्मिक वातावरण और अधिक सघन हो गया। घाटों, सड़कों और मंदिर परिसर में हर ओर हर-हर महादेव के जयघोष गूंजते रहे। पहली बार अखाड़ों ने गेट नंबर चार से धाम में प्रवेश किया। महाकुंभ के पलट प्रवाह के बीच श्री काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या ने नया रिकॉर्ड बना दिया। मंदिर प्रशासन के आंकड़ों के मुताबिक 45 दिनों में तीन करोड़ श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। औसतन आंकड़ों की बात करें तो रोजाना साढ़े छह लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने दर्शन किए। मंदिर के इतिहास में श्रद्धालुओं की यह संख्या सबसे ज्यादा रही।
काशी विश्वनाथ धाम में वर्षभर उत्सव
2025 में काशी विश्वनाथ धाम श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र बना रहा। महाशिवरात्रि, सावन मास, श्रावण सोमवार, प्रदोष व्रत और कार्तिक मास में विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान आयोजित हुए। सावन में कांवरियों का सैलाब उमड़ा, जिन्होंने गंगा से जल भरकर बाबा का जलाभिषेक किया। महाशिवरात्रि की रात धाम परिसर भक्ति और साधना के रंग में डूबा रहा।
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काशी विश्वनाथ धाम में वर्षभर उत्सव
2025 में काशी विश्वनाथ धाम श्रद्धालुओं की आस्था का मुख्य केंद्र बना रहा। महाशिवरात्रि, सावन मास, श्रावण सोमवार, प्रदोष व्रत और कार्तिक मास में विशेष पूजा-अर्चना और अनुष्ठान आयोजित हुए। सावन में कांवरियों का सैलाब उमड़ा, जिन्होंने गंगा से जल भरकर बाबा का जलाभिषेक किया। महाशिवरात्रि की रात धाम परिसर भक्ति और साधना के रंग में डूबा रहा।
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देव दीपावली: काशी की वैश्विक पहचान
कार्तिक पूर्णिमा पर मनाई गई देव दीपावली 2025 ने काशी की आध्यात्मिक छवि को वैश्विक मंच पर और मजबूत किया। गंगा घाटों पर लाखों दीपों की रोशनी से अलौकिक दृश्य बना। गंगा महोत्सव के अंतर्गत शास्त्रीय संगीत, लोकनृत्य और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों ने श्रद्धालुओं और पर्यटकों को मंत्रमुग्ध किया। विदेशों से आए पर्यटकों ने भी इस आयोजन को भारतीय संस्कृति का अद्भुत उदाहरण बताया।
काशी तमिल संगमम और सांस्कृतिक समन्वय
वर्ष 2025 में आयोजित काशी तमिल संगमम धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना। 1400 से ज्यादा तमिल प्रतिनिधियों ने काशी में दर्शन पूजन और संस्कृति से साक्षात्कार किया। तमिलनाडु से आए श्रद्धालुओं और विद्वानों ने काशी के मंदिरों, घाटों और परंपराओं से आत्मिक जुड़ाव महसूस किया। यह आयोजन उत्तर और दक्षिण भारत की धार्मिक परंपराओं को जोड़ने का सशक्त माध्यम साबित हुआ।
जैन, बौद्ध और संत परंपराओं की सहभागिता
काशी केवल सनातन धर्म का ही नहीं, बल्कि विविध धार्मिक परंपराओं का भी केंद्र रही। जैन समाज की ओर से तीर्थंकर परश्वनाथ जयंती पर भव्य शोभायात्रा निकाली गई। सारनाथ में बौद्ध धर्म से जुड़े ध्यान शिविर, प्रवचन और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित हुए। संत रविदास, कबीर और अन्य संत परंपराओं से जुड़े आयोजनों ने सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक चेतना को मजबूत किया।
काशी तमिल संगमम और सांस्कृतिक समन्वय
वर्ष 2025 में आयोजित काशी तमिल संगमम धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना। 1400 से ज्यादा तमिल प्रतिनिधियों ने काशी में दर्शन पूजन और संस्कृति से साक्षात्कार किया। तमिलनाडु से आए श्रद्धालुओं और विद्वानों ने काशी के मंदिरों, घाटों और परंपराओं से आत्मिक जुड़ाव महसूस किया। यह आयोजन उत्तर और दक्षिण भारत की धार्मिक परंपराओं को जोड़ने का सशक्त माध्यम साबित हुआ।
जैन, बौद्ध और संत परंपराओं की सहभागिता
काशी केवल सनातन धर्म का ही नहीं, बल्कि विविध धार्मिक परंपराओं का भी केंद्र रही। जैन समाज की ओर से तीर्थंकर परश्वनाथ जयंती पर भव्य शोभायात्रा निकाली गई। सारनाथ में बौद्ध धर्म से जुड़े ध्यान शिविर, प्रवचन और अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम आयोजित हुए। संत रविदास, कबीर और अन्य संत परंपराओं से जुड़े आयोजनों ने सामाजिक समरसता और आध्यात्मिक चेतना को मजबूत किया।
अन्नकूट महोत्सव और संगीत समारोह
अन्नपूर्णा मंदिर में अन्नकूट महोत्सव, संकटमोचन हनुमान मंदिर में हनुमान जयंती और संगीत समारोह, दुर्गा मंदिर में नवरात्र के आयोजन श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहे। इन आयोजनों में स्थानीय लोगों के साथ देश के विभिन्न हिस्सों से आए भक्तों ने भाग लिया।
प्रशासनिक तैयारी और व्यवस्थाएं
श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने 2025 में व्यापक तैयारियां कीं। यातायात प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं और सफाई अभियान पर विशेष ध्यान दिया गया। काशी विश्वनाथ धाम और घाटों पर अतिरिक्त पुलिस बल, सीसीटीवी निगरानी और चिकित्सा शिविर लगाए गए।
धार्मिक पर्यटन से अर्थव्यवस्था को संबल
धार्मिक आयोजनों का असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखाई दिया। होटल, धर्मशालाएं, नाविक, पुरोहित, फूल और प्रसाद विक्रेता, हस्तशिल्प कारोबारी वर्षभर व्यस्त रहे। पर्यटन विभाग के अनुसार धार्मिक पर्यटन से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला।
प्रशासनिक तैयारी और व्यवस्थाएं
श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने 2025 में व्यापक तैयारियां कीं। यातायात प्रबंधन, सुरक्षा व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवाएं और सफाई अभियान पर विशेष ध्यान दिया गया। काशी विश्वनाथ धाम और घाटों पर अतिरिक्त पुलिस बल, सीसीटीवी निगरानी और चिकित्सा शिविर लगाए गए।
धार्मिक पर्यटन से अर्थव्यवस्था को संबल
धार्मिक आयोजनों का असर स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी साफ दिखाई दिया। होटल, धर्मशालाएं, नाविक, पुरोहित, फूल और प्रसाद विक्रेता, हस्तशिल्प कारोबारी वर्षभर व्यस्त रहे। पर्यटन विभाग के अनुसार धार्मिक पर्यटन से हजारों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार मिला।
पहली बार शुरू हुई नमो घाट पर गंगा आरती
काशी के इतिहास में पहली बार नमो घाट पर गंगा आरती की शुरूआत हुई। जिला प्रशासन की ओर से आरती का आयोजन कराया जा रहा है। रोजाना ढाई से तीन हजार श्रद्धालु इस आरती में शामिल हो रहे हैं।
19 साल के महेश को काशी में मिली विक्रम की उपाधि, रचा नया इतिहास
काशी के दो सौ वर्षों के इतिहास में महाराष्ट्र के देवव्रत महेश रेखे ने शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनी शाख का घनपाठ किया। सांगवेद विद्यालय में देवव्रत का विक्रम की उपाधि से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही शृंगेरी के शंकराचार्य ने भी स्वर्ण कंगन और एक लाख 1 हजार 116 रुपये की दक्षिणा दी थी।
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