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Barwani News: पूर्वजों की अनोखी परंपरा निभा रहा आदिवासी समाज, पांच दिनों तक जलाते हैं होली, नहीं जाते घर
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बड़वानी Published by: बड़वानी ब्यूरो Updated Mon, 17 Mar 2025 08:34 AM IST
वैसे तो देश प्रदेश में होलिका दहन हो चुका है, लेकिन प्रदेश के बड़वानी जिले के पानसेमल में होलिका दहन की अनोखी परंपरा है। यहां होली के बाद भी पांच दिनों तक होली जलाई जाती है। यहां स्थित आदिवासी भवन के समीप आदिवासी समाजजनों ने पूर्वजों की परंपरा को निभाते हुए रात 10 बजे के दरमियान होलिका का दहन किया।
आदिवासी समाज के सरस्वती संजय भंडार शेरसिंह सोलंकी जलगोन के कालूसिंह पटेल ने परंपरा की जानकारी देते हुए बताया कि आदिवासी समाज अपनी पुरानी परंपराओं को निभाते आ रहा है। इसी के अंतर्गत हमारे समाज के युवा गेर बनकर विभिन्न वेशभूषा में युवक पांच दिन तक फाग में शामिल होते हैं। गांव की शांति एवं मंगल कामनाओं सहित अपनी मन्नतों को पूर्ण करते हैं। साथ ही इस दौरान अंगारों पर चलना, पांच दिन तक अपने घर से बाहर रहना, ऐसी कई परंपराएं निभाई जाती हैं। इसी तरह से यहां का आदिवासी समाज, हर्षोल्लास व प्रसन्नता के साथ होली का पर्व प्रतिवर्ष मनाते आ रहा है।
पांच दिन तक नहीं जाते घर
जलगोन से आए ग्रामीण कालू सिंह पटेल ने बताया कि वे गैर पंचायत से हैं। यह हमारी परंपरा है, जो कि बरसों से चलती आ रही है। यह मान मन्नत की होती है और हमारी परंपरा के अनुसार ही हम पांच दिन तक घर नहीं जाते हैं। इस दौरान हम लोग पटेल के यहां रहते हैं, और वहीं खाना पीना करते हैं।
आदिवासी लोग बहुत ज्यादा मानते हैं होली का त्यौहार
पानसेमल की रहने वाली सरस्वती संजय भंडारी ने बताया कि आज तीसरे दिन का होली दान हो रहा है। यहां पर परंपरा के हिसाब से सभी लड़के लोग, कोई लड़की तो कोई महिला बनते ही हैं। ऐसे ही हमारे रिवाज में पांच दिन तक नाचते हैं और हमारे पूर्वज जैसा करते आए हैं वैसा ही हम भी कर रहे हैं। इसमें जिसकी जैसी मन्नत रहती है, वह वैसा करता है। जैसी होली हमारे पूर्वज मनाते आए हैं, वैसे ही हम भी मना रहे हैं। हमारे में होली के त्यौहार का बहुत महत्व है, हम आदिवासी लोग बहुत ज्यादा इसे मानते हैं।
गांव में घटना होने पर मनाते हैं शांतिपूर्वक होली
इसके साथ ही इस परंपरा को बताते हुए पानसेमल से आए ग्रामीण शेर सिंह ने बताया कि यहां परंपरा से ही रीति-रिवाज के साथ होली मनाते चले आ रहे हैं। यहां नारियल, अगरबत्ती, कंगन, गुड़ के साथ मनाते हैं। जैसी जिसकी मन्नत, जैसे सवा महीने या पांच दिन, उस हिसाब से मनाते आ रहे हैं। इसमें किसी की मन्नत मानता रहती है तो वह फाग बनता है। लेकिन अगर गांव में कोई घटना हो जाती है तो, बगैर नाच गाने के शांतिपूर्वक भी होली मना लेते हैं।
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