सीहोर के जिला न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण और ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जो मध्य प्रदेश में सबसे लंबे समय से चल रहे मामले में आया है। यह मामला 1988 से लंबित था, जिसे आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (EOW) ने दर्ज किया था। 1485 मृतकों के परिजन के नाम से फर्जी खाते खोलकर 72 लाख से ज्यादा की बीमा राशि हड़पने के बहुचर्चित मामले में आखिरकार 27 साल बाद मंगलवार को फैसला आ गया।
जिला न्यायालय की सीजेएम अर्चना नायडू बोडे ने कुल 39 आरोपियों को 3 से 5 साल की सजा और एक-एक हजार रुपये का जुर्माना लगाया। एक आरोपी वेंटिलेटर पर होने से 38 को ही जेल भेजा गया, जबकि एक आरोपी की हैंडराइटिंग मैच नहीं होने से उसे बरी कर दिया गया। वहीं, 27 साल तक चली सुनवाई के दौरान 9 आरोपियों की मौत हो चुकी है। जिन्हें सजा हुई है, उनमें सरपंच, समिति प्रबंधकों के साथ-साथ भारतीय इंश्योरेंस सर्विस के दो अधिकारी भी शामिल हैं। ये अधिकारी एलआईसी कार्यालय भोपाल में पदस्थ थे। इस तरह कुल 49 आरोपी थे।
इस तरह फूटा फर्जीवाड़े का भांडा
लोक अभियोजक अनिल बादल ने बताया कि मामले का खुलासा राजगढ़ जिले के सारंगपुर में 1998 में पदस्थ एसडीएम को एक शिकायती चिट्ठी से हुआ था। शिकायतकर्ता की पुष्टि नहीं हो पाई थी, लेकिन जब एसडीएम ने जांच की तो बड़ा मामला सामने आया। सबसे पहले सारंगपुर की गुलावता समिति में 522 हितग्राहियों के नाम से फर्जी तरीके से 26 लाख 2 हजार 745 रुपए बीमा राशि निकाले जाने की बात सामने आई थी। लेकिन, जब जांच आगे बढ़ी तो चौंकाने वाली स्थिति सामने आई। जिसमें कुल 1485 हितग्राहियों के नाम से 72 लाख 9 हजार रुपए बीमा राशि निकालने की पुष्टि हुई। ये हितग्राही राजगढ़ जिले के साथ-साथ सीहोर और शाजापुर जिले के थे। समिति प्रबंधक, सरपंच सहित अन्य लोगों के आरोपी होने के कारण मामले की जांच लोकायुक्त पुलिस को दी गई थी। मंगलवार को आए फैसले के बाद देर शाम सभी 38 आरोपियों को जेल भेज दिया गया।
1485 हितग्राहियों की मौत के बाद उनके परिजन के नाम से फर्जी खाते खोले
डीपीओ अनिल बादल ने बताया कि एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम (आईआरडीपी) योजकला सामने आया था। इस पूरे मामले में सोसायटी प्रबंधक, सरपंच और बीमा कंपनी के अधिकारी शामिल थे। कुल 1485 मामलों की जांच के बाद 898 मामले ऐसे थे, जिनमें नॉमिनी ही फर्जी थे। शेष 568 ऐसे लोग थे, जिन्होंने दावा फार्म भी नहीं भरा था। जिस खाते से राशि निकाली गई थी, वह खाता किसी और ने खुलवाकर राशि निकाल ली थी। जांच के दौरान 19 हितग्राहियों ने स्वीकार किया कि उन्होंने ही अपने परिजन की मौत के बाद बीमा राशि ली है। चौंकाने वाली बात यह थी कि वे 19 हितग्राही आईआरडीपी योजना के हितग्राही ही नहीं थे। इसलिए इन्हें भी आरोपी बनाया गया था।
फर्जी प्रमाण-पत्र देने वाले सरपंचों को भी सजा
आगखेड़ी के तत्कालीन सरपंच बाबूलाल, कचनारिया के गयाराम, देवली के केवलराम, धनखेड़ी के तात्कालीन सरपंच देवेंद्र उपलावदिया और रोला के तात्कालीन सरपंच प्रेमनारायण गौर ने हितग्राहियों के नाम से फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी किए थे। इसलिए इन्हें भी दोषी मानकर सजा सुनाई गई और जेल भेजा गया।
एलआईसी और बैंक कर्मी भी घोटाले में शामिल
1998 के इस मामले में भारतीय इंश्योरेंस सर्विस के अधिकारी भी दोषी पाए गए हैं। एलआईसी के वरिष्ठ अधिकारी सुरेश चंद्र भगोरिया और आनंद मोहन पांडेय दोषी पाए गए। इसके साथ ही गुलावता समिति के लिपिक यशवंत वैध, सारंगपुर बैंक में सहायक लेखापाल अंबाराम पाटीदार, राजगढ़ बैंक में सहायक लेखापाल राजेंद्र कुमार और मंडी बैंक प्रबंधक गणेश प्रसाद माकरिया भी दोषी पाए गए और उन्हें भी सजा सुनाई गई।