सीधी जिले के एक छोटे से गांव से निकलकर प्रदेश की प्रवीण सूची में शीर्ष स्थान हासिल करने वाले दिव्यांशु तिवारी की कहानी संघर्ष, समर्पण और सपनों का जीवंत उदाहरण है। जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर स्थित गांव के इस मेधावी छात्र ने जीवविज्ञान संकाय में 500 में से 484 अंक प्राप्त कर न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे जिले का नाम रोशन कर दिया।
दिव्यांशु के माता-पिता ने उनकी पढ़ाई के लिए सीधी शहर में किराए पर एक कमरा लिया। उनके पिता एक छोटी-सी इलेक्ट्रॉनिक रिपेयरिंग की दुकान चलाते हैं, जहां वे टीवी और अन्य उपकरणों की मरम्मत कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने कभी बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। यही समर्पण आज दिव्यांशु की सफलता के रूप में सामने आया है।
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दिव्यांशु शुरू से ही पढ़ाई में मेधावी रहे हैं। हर विषय में उनकी गहरी रुचि और कड़ी मेहनत ने उन्हें हमेशा उत्कृष्टता दिलाई। उनके शिक्षकों ने इस उपलब्धि पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि दिव्यांशु जैसे विद्यार्थी वास्तव में शिक्षण व्यवस्था के लिए प्रेरणा हैं।
अब दिव्यांशु का सपना डॉक्टर बनने का है। वे शासकीय मेडिकल कॉलेज में दाखिला लेना चाहते हैं ताकि अपने पिता पर आर्थिक बोझ न पड़े। उनका मानना है कि यदि इरादे मजबूत हों, तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रहता। उनका यह संघर्ष उन हजारों विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा है, जो विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे हैं।
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