दीपावली के बाद खेले जाने वाली “अंगारों की दिवाली” इस बार भी पुलिस प्रशासन की तमाम सख्तियों और कवायदों के बावजूद नहीं थमी। परंपरा की आड़ में असामाजिक तत्वों ने एक-दूसरे पर खतरनाक पटाखे फेंककर जमकर उत्पात मचाया। इस दौरान करीब 100 से अधिक लोग झुलस गए, जबकि शहर का माहौल करीब तीन घंटे तक युद्धभूमि जैसा बना रहा।
रात सवा 9 बजे गणेश मंदिर से शुरू हुई पारंपरिक घास भैरू की सवारी जब लोढा चौक, सूरजपोल गेट, भैरू गेट और खिड़की गेट से होती हुई वापस गणेश मंदिर पहुंची, तब तक पूरे मार्ग पर अफरातफरी मच चुकी थी। युवाओं ने गंगा-जमुना, सीता-गीता और सूतली बम जैसे खतरनाक पटाखे एक-दूसरे पर फेंककर वातावरण को धुएं से भर दिया। स्थिति यह रही कि मार्ग के किनारे रहने वाले लोगों को अपने घरों की खिड़कियां और दरवाजे बंद करने पड़े। कई मकानों की छतों पर भी पटाखे फेंके गए जिससे लोग भयभीत हो गए।
तीन घंटे तक शहर धुएं से घिरा रहा और लाखों रुपये के पटाखे फोड़े गए। पुलिस प्रशासन द्वारा पहले से ही अतिरिक्त जाब्ता बुलाया गया था। मगर हंगामाई हालातों के आगे पुलिस भी बेबस नजर आई। सवारी मार्ग से करीब 500 फीट दूर तक ही पुलिस दल रुका रहा। कई मौकों पर युवाओं ने पुलिस पर भी जलते हुए पटाखे फेंके, जिससे कुछ अधिकारी और जवान बाल-बाल बचे।
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एएसपी श्योराजमल मीणा, डीएसपी हर्षित शर्मा और थानाप्रभारी कुसुम लता सहित पुलिस का दल मौके पर मौजूद रहा और स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश की। देर रात तक पुलिस ने करीब 50 से अधिक युवाओं को पकड़कर बंद किया, लेकिन इसके बावजूद कई स्थानों पर पटाखों का तांडव जारी रहा। बताया जाता है कि यह परंपरा नगर में वर्षों से चली आ रही है। दीपावली के दूसरे दिन घास भैरू की सवारी बैलों की सहायता से निकाली जाती है, जिसमें भारी पत्थर के रूप में घास भैरू को नगर भ्रमण कराया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस सवारी से रोग-दोष दूर होते हैं और क्षेत्र में खुशहाली आती है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस परंपरा की आड़ में युवाओं द्वारा खतरनाक पटाखे फेंकने की प्रवृत्ति ने इसे खतरनाक खेल का रूप दे दिया है।