राजस्थान के बांसवाड़ा शहर में स्थित मां महालक्ष्मी का प्राचीन मंदिर न सिर्फ दीपावली के अवसर पर बल्कि पूरे वर्ष श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना रहता है। इस मंदिर की विशेषता यह है कि यहां भक्त केवल पूजा-अर्चना ही नहीं करते, बल्कि अपनी मनोकामनाएं ‘पर्ची’ में लिखकर दानपात्र में डालते हैं। मान्यता है कि मां लक्ष्मी भक्तों की हर पुकार सुनती हैं और उनकी इच्छाएं पूरी करती हैं।
पर्ची में लिखते हैं अपनी कामना
मंदिर में आने वाले श्रद्धालु मां से सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य, संतान, नौकरी और तबादले जैसी कामनाओं की अर्जी पर्ची में लिखकर डालते हैं। किसी की पर्ची में लिखा होता है, ‘मां, मेरी बीमारी दूर कर दो’, तो कोई लिखता है, ‘पति का तबादला बांसवाड़ा करवा दो’ या ‘मां, मेरी गोद सूनी है, कृपा करो’। प्रतिवर्ष दो बार जब दानपेटी खोली जाती है, तो इनमें से सैकड़ों पर्चियां निकलती हैं- जिनमें आस्था, विश्वास और उम्मीदें झलकती हैं।
200 साल पुराना मंदिर, बना आस्था का केंद्र
महालक्ष्मी मंदिर लगभग 200 वर्ष पुराना है। इसका निर्माण वर्ष 1819-20 के आसपास हुआ था। मंदिर का स्थान अब महालक्ष्मी चौक के नाम से जाना जाता है। पुजारी निलेश कुमार सेवक के अनुसार, मंदिर में तीन फीट ऊंची सफेद संगमरमर की प्रतिमा स्थापित है, जिसके सामने श्रीयंत्र भी बनाया गया है। दीपावली, धनतेरस, रूप चतुर्दशी और श्राद्ध पक्ष की अष्टमी पर विशेष अनुष्ठान होते हैं। मां का श्रृंगार चांदी के आभूषणों से किया जाता है, जबकि कई भक्त नोटों से श्रृंगार कर अपनी भक्ति प्रकट करते हैं।
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पूरी होती हैं कामनाएं, भक्त देते हैं आभार
मंदिर की देखरेख पंच जड़िया श्रीमाल समाज द्वारा की जाती है। समाज के नरोत्तम श्रीमाल, निखिलेश श्रीमाल, बृजमोहन श्रीमाल और नरेश श्रीमाल बताते हैं कि कई भक्त अपनी मन्नत पूरी होने पर आभार की पर्ची भी डालते हैं। इन पर्चियों को कुछ समय तक सुरक्षित रखा जाता है, बाद में उन्हें नदी की धारा में प्रवाहित किया जाता है।
दीपावली पर बढ़ जाती है रौनक
धनतेरस से लेकर दीपावली तक मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। भक्तजन मां के चरणों में दीप अर्पित करते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। शहर का यह प्राचीन मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक आस्था का भी प्रतीक बन चुका है।
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