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आगरा: अपनों ने नहीं किया दाह-संस्कार, माटी को विसर्जन का इंतजार, सनातम धर्म है मोक्ष की विशेष मान्यता

अमर उजाला ब्यूरो, आगरा Published by: Abhishek Saxena Updated Fri, 15 Oct 2021 12:39 PM IST
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Death From Corona Virus Infection Bones Are Waiting For Immersion After Cremation
आगरा: इंतजार में अस्थि कलश - फोटो : अमर उजाला
तस्वीर में जो कलश आप देख रहे हैं, इनमें उनकी अस्थियां हैं, जिनकी कोरोना महामारी में जान गई। कोरोना वायरस के चलते अपनों ने शव का दाह-संस्कार नहीं कर किया। तब मजबूरियां रहीं होंगी, लेकिन पांच-छह महीने बीतने पर भी परिजन अस्थियां लेने नहीं आए। श्राद्ध पक्ष में फोन किए लेकिन इनके अपने बहाने दर बहाने गढ़ते रहे। कलश में रखी माटी को अपनों के हाथों से विसर्जित होने का इंतजार है। विद्युत शवदाह गृह के प्रभारी संजीव गुप्ता ने बताया कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर अप्रैल से जून तक 1,349 के शव का अंतिम संस्कार किया। इनमें कोरोना की वजह से कइयों के परिजन शामिल भी नहीं हो पाए थे। सभी का कर्मचारियों ने पीपीई किट (पर्सनल प्रोटेक्शन इक्विपमेंट) पहनकर अंतिम संस्कार किया। जैसे-जैसे संक्रमण की दर कम हुई, लोग अपनों की अस्थियां लेकर गए।
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आगरा: लॉकर में रखे अस्थि कलश - फोटो : अमर उजाला
विद्युत शवदाह गृह के प्रभारी संजीव गुप्ता ने बताया कि श्राद्ध पक्ष में तो परिजनों को कई बार फोन भी किया है, लेकिन व्यस्तता समेत अन्य वजह बताते हुए अस्थियां लेने नहीं आए हैं। अभी भी 53 की अस्थियां हैं, जिन्हें लेने के लिए अपने नहीं आए हैं।

 
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आगरा: शवदाह गृह का फाइल फोटो - फोटो : अमर उजाला
क्षेत्र बजाजा तीन साल बाद कराती है विसर्जन
क्षेत्र बजाजा कमेटी के अध्यक्ष अशोक गोयल ने बताया कि जिनके परिजन अस्थियां लेने नहीं आते या फिर लावारिस शव की अस्थियों को गंगा में विसर्जन किया जाता है। इसमें सभी धर्मों के गुरुओं को भी बुलाया जाता है, जिनसे उनकी आत्मा की शांति के लिए धर्म के अनुसार प्रार्थना करवाते हैं। तीन साल तक अस्थियों को सुरक्षित रखा जाता है।

 
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श्री क्षेत्र बजाजा कमेटी - फोटो : अमर उजाला
23 साल में 12 हजार अस्थियों का करा चुके हैं संस्कार
क्षेत्र बजाजा कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सुनील विकल ने बताया कि ऐसी अस्थियों को शवदाह गृह पर रैक में तीन साल तक सुरक्षित रखा जाता है। इस दौरान अस्थियां न लेने आने पर इनका सोरों और गंगा में विसर्जन करते हैं। 1998 से यह प्रकल्प चल रहा है। इन 23 साल में करीब 12 हजार अस्थियाें का गंगा में विसर्जन कर चुके हैं।

 
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विद्युत शवदाह गृह, ताजगंज - फोटो : अमर उजाला
अपनों के हाथों से अस्थियां विसर्जन से आत्मा को मिलती शांति
मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी ने बताया कि सनातन धर्म में शव का अंतिम संस्कार तभी माना जाता है, जब शव के दाह के बाद उनकी अस्थियों को विसर्जन हो जाए। खासतौर से अपनों के हाथों से अस्थियों के विसर्जन होने से आत्मा को भी शांति प्रदान होती है। 

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