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Prayagraj : पहले बाढ़ ने बेघर किया अब बारिश ने छीन ली छत, दो दिन की बारिश ने बढ़ाई बाढ़ पीड़ितों की मुश्किलें

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 18 Sep 2024 06:25 PM IST
सार

मंगलवार को तेज हवाओं के साथ दिन भर हुई बारिश के बाद बुधवार को दिन में मौसम साफ होने से लोगों को कुछ राहत मिली थी, लेकिन शाम को पांच बजे के बाद फिर हुई तेज बारिश और हवाओं के झोंकों ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में छत पर टेंट लगाकर रहने वालों को भी राहत शिविरों में पहुंचा दिया है। गंगा और यमुना के जलस्तर में मामूली (एक घंटे में आधा सेमी) कमी दर्ज की गई। हालांकि, इसकी रफ्तार बहुत धीमी है।

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First the flood left people homeless, now the rain took away the roof
छोटा बघाड़ा में बाढ़ से घिरे मकान। - फोटो : अमर उजाला।

गंगा-यमुना में उफान से बेघर हुए लोगों के सिर से छत भी छिन गई। मंगलवार को तेज हवाओं के साथ दिन भर हुई बारिश के बाद बुधवार को दिन में मौसम साफ होने से लोगों को कुछ राहत मिली थी, लेकिन शाम को पांच बजे के बाद फिर हुई तेज बारिश और हवाओं के झोंकों ने बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में छत पर टेंट लगाकर रहने वालों को भी राहत शिविरों में पहुंचा दिया है।











 

गंगा और यमुना के जलस्तर में मामूली (एक घंटे में आधा सेमी) कमी दर्ज की गई। हालांकि, इसकी रफ्तार बहुत धीमी है। इससे तटीय इलाकों में बसे लोगों ने कुछ राहत जरूर महसूस की, लेकिन तेज बहाव ने बाढ़ में फंसे लोगों की मुसीबत और बढ़ा दी है। हालांकि, मुहाने पर बसे लोगों ने राहत महसूस की है।

ऊंचवागढ़ी में काफी दूर तक बाढ़ का पानी घुस गया है। मोहल्ले के आशीष मिश्रा, रिंकू पाल आदि के सामने वाली गली में भी पानी आ गया है, लेकिन उनके घरों में अभी नहीं घुसा है। आशीष का कहना था कि अंदर जाकर बसे लोगों के घर डूब गए हैं। हम लोगों ने सामान बांध कर प्रथम तल पर पहुंचा दिया है लेकिन अब पानी थम गया है।

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छोटा बघाड़ा इलाके में बाढ़ के हालात। - फोटो : अमर उजाला।

सोमवार दिन से ही जलस्तर कम होने लगा था। ऐसे में मंगलवार को राहत की उम्मीद की जा रही थी। प्रशासन की ओर से भी कहा गया कि दो-तीन दिनों में काफी पानी निकल जाएगा, लेकिन सहायक नदियों के जरिये से गंगा और यमुना में काफी पानी आ रहा है। इसकी वजह से जलस्तर में कमी की रफ्तार न के बराबर है। इसकी वजह से एक लाख से अधिक लोग अब भी बाढ़ में फंसे हैं।

ऐसे में दिन भर हुई बारिश से चुनौती और बढ़ गई। बड़ी संख्या में लोग छतों पर टेंट डालकर रह रहे थे लेकिन उन्हें वहां से निकाला गया। सामान वहीं छोड़ना पड़ा। बड़ी संख्या में तो अपने रिश्तेदारों के घर पर चले लेकिन 50 से अधिक लोगों ने राहत शिविरों में शरण ली। इसका नतीजा रहा कि जलस्तर में कमी के बावजूद शिविरों में आने वालों की संख्या बढ़ गई। मंगलवार को शिविरों में 393 परिवार के 1694 लोग मौजूद थे। शरणार्थियों की संख्या बुधवार को और बढ़ गई। 

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बारिश के चलते शहर की कई सड़कों पर पानी भर गया। - फोटो : अमर उजाला।

तेज हवा और बहाव से बढ़ा खतरा

लगातार बारिश के बीच तेज हवा चलने तथा दोनों नदियों में उफान की वजह से खतरे भी बढ़ गए हैं। कछार में भीतर जाकर बने तथा हर साल बाढ़ में डूबने वाले घरों के गिरने की भी आशंका बन गई है। इसे लेकर राहत कार्य में लगी टीमें लोगों को आगाह करने के साथ सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील करती रहीं।

कछार में हजारों मकान काफी भीतर जाकर बने हैं। इनमें से वर्षों पुराने मकान हैं और करीब हर साल या दूसरे वर्ष बाढ़ में डूब जाते हैं। इसकी वजह से ये काफी कमजोर हो गए हैं। इस समय भी इन मकानों का प्रथम तल बाढ़ में डूब गया है लेकिन लोग प्रथम तल या उसके ऊपर के मंजिल में रह रहे हैं।

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सिविल लाइंस में निरंजन डॉट पुल के नीचे भरा पानी। - फोटो : अमर उजाला।

इसके विपरीत दोनों नदियों में काफी तेज बहाव है। साथ में बारिश के साथ तेज हवा भी चली। ऐसे में कमजोर मकानों के गिरने से जान माल का भी खतरा बन गया है। इसे देखते हुए एनडीएआर, राजस्व एवं नागरिक सुरक्षा की टीमें ऐसे मोहल्लों में जाकर लोगों से सुरक्षित स्थानों पर जाने की अपील करती रही। मकान छोड़ने के इच्छुक 100 से अधिक लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। डीएम रविंद्र कुमार मंदर का कहना है कि खतरे को देखते हुए लोगों को सचेत करने के साथ उन्हें सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने के समुचित इंतजाम किए गए हैं। टीमें लगातार प्रभावित इलाकों का भ्रमण कर रही हैं।

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दारागंज में बाढ़ का दृश्य। - फोटो : अमर उजाला।

राहत कार्य हुआ प्रभावित

लगातार बारिश की वजह से राहत कार्य प्रभावित हुआ। ऋषिकुल तथा एनी बेसेंट स्कूल के खाली स्थानों पर कीचड़ हो गया था। इससे कमरों में भी गंदगी हो गई थी। महबूब अली इंटर कॉलेज में एक कमरा भी टपक रहा था। लोगों को वहां से हटाना पड़ा। बाढ़ में फंसे लोगों तक भी राहत पहुंचाने में कठिनाई हुई।

सिविल डिफेंस तथा अन्य संगठन के लोग नाव एवं मोटरबोट से नदी में उतरने से डर रहे थे। ऐसे में लोगों तक खाना का पैकेट, लाई, चना समेत अन्य सामग्री पहुंचाने की पूरी जिम्मेदारी एनडीआरएफ, सीडीआरएफ पर रही।

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