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Terror Attack: आंखें पथराईं... सुधबुध खो बैठी पत्नी, गुमसुम है मासूम; हर जुबां पर सुभाष की बहादुरी के किस्से
अमर उजाला नेटवर्क, हाथरस
Published by: शाहरुख खान
Updated Thu, 25 Jul 2024 11:27 AM IST
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Terror Attack
- फोटो : अमर उजाला
हाथरस के सहपऊ गांव नगला मनी की गलियों में सन्नाटा है, चौक-चौराहों व पेड़ के नीचे बैठे ग्रामीणों में बलिदानी सुभाष की ही चर्चा हो रही थी। ये उसके साहस और शौर्य को याद कर रहे थे तो परिवार को लेकर भी चिंतित थे। सुभाष की पार्थिव देह बुधवार की शाम को जम्मू से दिल्ली पहुंच गई। अब उनकी पार्थिव देह गांव लाई जाएगी।
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- फोटो : अमर उजाला
बलिदानी सुभाष की पार्थिव देह बुधवार को करीब चार बजे जम्मू से रवाना हुई, उसके बृहस्पतिवार तड़के गांव में पहुंचने की संभावना है। पूरे दिन गांव में सुभाष चंद्र की बहादुरी चर्चाएं होती नजर आईं। भारत पाकिस्तान नियंत्रण रेखा पर स्थित कृष्णा घाटी के बट्टल में मंगलवार तड़के सुरक्षाबलों ने सीमा पार से घुसपैठ की साजिश को नाकाम किया था।
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Terror Attack
- फोटो : अमर उजाला
इस गोलीबारी में सहपऊ क्षेत्र के नगला मनी निवासी सुभाष चंद्र बलिदान हो गए। सूचना पर ग्रामीण, परिचित और रिश्तेदार सुभाष के घर पहुंच गए और परिवार ढाढ़स बंधाया। लांस नायक सुभाष के घर पर रिश्तेदारों की आवाजाही रही। रिश्तेदार दूर-दूराज क्षेत्रों से पहुंचे और परिजनों को ढाढ़स बंधाया।
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- फोटो : अमर उजाला
आंखें पथराईं...सुधबुध खो बैठी पत्नी कांति
लांस नायक सुभाष चंद्र के बलिदान की खबर से पत्नी कांति देवी सुधबुध खो बैठी है। गुमसुम बैठी पथराई आंखों से वह लोगों को देख रही है। महिलाएं उसे दिलासा देकर संभालने की कोशिश कर रही है। वह आठ माह की गर्भवती है, ऐसे में उसके स्वास्थ्य की भी चिंता है। मंगलवार की रात तक तो परिजनों ने उन्हें सुभाष को गोली लगने की बात बताई थी, लेकिन देर रात उसे उनके बलिदान होने की जानकारी मिल गई। कभी वह बिलखने लगती तो कभी गुमसुम बैठ जाती हैं।
लांस नायक सुभाष चंद्र के बलिदान की खबर से पत्नी कांति देवी सुधबुध खो बैठी है। गुमसुम बैठी पथराई आंखों से वह लोगों को देख रही है। महिलाएं उसे दिलासा देकर संभालने की कोशिश कर रही है। वह आठ माह की गर्भवती है, ऐसे में उसके स्वास्थ्य की भी चिंता है। मंगलवार की रात तक तो परिजनों ने उन्हें सुभाष को गोली लगने की बात बताई थी, लेकिन देर रात उसे उनके बलिदान होने की जानकारी मिल गई। कभी वह बिलखने लगती तो कभी गुमसुम बैठ जाती हैं।
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घर में लोगों को देख गुमसुम है रितिका...उसे नहीं पता बलिदान हो गए पिता
सुभाष की डेढ़ साल की बेटी रितिका इस बात से अनजान है कि उसके पिता ने देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया है। घर में आने वाले नए -नए चेहरों को देख कर वह गुमसुम है। समझ नहीं पा रही है कि क्या हुआ। वह इतनी छोटी है कि न कुछ पूछने की स्थिति में है और न ही परिजन उसे बताने की स्थिति में है। कुछ देर इधर, उधर घूमने के बाद दादा मथुरा प्रसाद की गोद में बैठ जाती है और वह भी नम आखों से उसे दुलारने लगते हैं।
सुभाष की डेढ़ साल की बेटी रितिका इस बात से अनजान है कि उसके पिता ने देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया है। घर में आने वाले नए -नए चेहरों को देख कर वह गुमसुम है। समझ नहीं पा रही है कि क्या हुआ। वह इतनी छोटी है कि न कुछ पूछने की स्थिति में है और न ही परिजन उसे बताने की स्थिति में है। कुछ देर इधर, उधर घूमने के बाद दादा मथुरा प्रसाद की गोद में बैठ जाती है और वह भी नम आखों से उसे दुलारने लगते हैं।
