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यूपी: बांदा की हाई सिक्योरिटी जेल में बंद है माफिया मुख्तार, जहां अंदर छिपे कैदी को ढूंढने में लगे बीस घंटे

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बांदा Published by: प्रभापुंज मिश्रा Updated Tue, 08 Jun 2021 05:51 AM IST
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UP: Mafia Mukhtar is lodged in Banda's High Security Jail, where it took twenty hours to find the prisoner hidden inside
मुख्तार अंसारी की बांदा वापसी - फोटो : अमर उजाला
बांदा जिला जेल में बाहुबली विधायक और गैंगस्टर मुख्तार अंसारी समेत कई प्रदेशों के खूंखार अपराधी बंद होने पर जेल की अभेद सुरक्षा इंतजाम किए। पिछले माह सीमावर्ती चित्रकूट जिले की जेल में गैंगवार की घटना के बाद यहां जेल की सुरक्षा और बढ़ाई गई। अफसरों ने दावा किया था कि यहां पर परिंदा भी पर नहीं मार पाएगा, लेकिन दावों की कलई बंदी विजय आरख ने खोलकर रख दी। रविवार की शाम सभी सुरक्षा व्यवस्थाओं को धता बताते हुए फरार हो गया। यह बात दीगर है कि आखिरकार बीस घंटे बाद वह घास में छिपा मिल गया। इस बाबत जेल अधिकारी कोई भी सटीक जवाब नहीं दे पा रहे हैं। बाहुबली विधायक और गैंगस्टर मुख्तार अंसारी सात अप्रैल को पंजाब के रोपड़ जेल से बांदा मंडल कारागार लाया गया था। इसे लेकर जेल में सुरक्षा के खासे बंदोबस्त किए गए थे। सुरक्षा में 44 सीसीटीवी कैमरा, पांच बॉडी वार्म कैमरे और एक ड्रोन कैमरा निगरानी के लिए लगाया गया था।


 
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मुख्तार अंसारी की बांदा वापसी - फोटो : अमर उजाला
जेल के अंदर की सुरक्षा में 134 बंदीरक्षक व एक दर्जन होमगार्ड व बाहरी सुरक्षा में एक कंपनी पीएसी और 11 होमगार्ड तैनात किए गए हैं। उधर, 14 मई को चित्रकूट की जेल में गैंगवार में दो कुख्यात अपराधियों मुकीम काला और मेराज अली की हत्या के बाद अंशू दीक्षित के बाद में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के बाद यहां जेल की सुरक्षा और कड़ी कर दी गई थी। बताया गया था कि चित्रकूट जेल में गैंगवार में मारे गए मारे गए दो बंदी मुख्तार अंसारी के संपर्की थे। इसी के बाद दो दर्जन सशस्त्र पुलिस जवानों को जेल की बाहरी सुरक्षा में लगाया दिया गया। सीसीटीवी कैमरों से दिनरात बंदियों की निगरानी की जा रही थी। बिना अनुमति के किसी को भी जेल तो दूर परिसर में भी प्रवेश नहीं था। शाम होते ही ड्रोन कैमरा जेल परिसर में घूमने लगता था। रात में कई बार अधिकारी ड्रोन से मिलने वाली जानकारी की समीक्षा करते थे। अधीक्षक, जेलर, डिप्टी जेलर शिफ्ट में रात-दिन जेल में ड्यूटी देते हैं।

 
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बांदा जेल से कैदी भागने की सूचना के बाद पहुंचे थे अधिकारी - फोटो : amar ujala
20 घंटे बाद घास में छिपा मिला
जेल से फरार बंदी विजय आरख 20 घंटे बाद मिल गया। बंदी जेल परिसर में स्थित  कृषि फार्म की घास में छुपा हुआ था। कारागार अधीक्षक अरुण कुमार ने बताया कि बंदी विजय रविवार को कृषि फार्म में काम करने गया था। शाम को वापस नहीं लौटा। जेल बंद होने के पूर्व गिनती में एक बंदी के कम होने पर इसका खुलासा हुआ। बंदी की जेल परिसर के चप्पे-चप्पे में तलाश की गई, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। इसकी जानकारी अधिकारियों सहित पुलिस को दी गई। इसके साथ ही शक के आधार पर जेल की चेकिंग जारी रखी गई। शाम को पांच बजे बंदी फार्म के घास में छिपा मिल गया। बंदी ने बताया कि वह भागने के इरादे से घास में छिपा था, लेकिन उसे भागने का मौका नहीं मिला। उधर, जेल के कृषि फार्म में लगी घास की नियमित कटाई होती है। ऐसे में बंदी घास में छिप गया यह प्रश्न बना हुआ।


 
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बांदा जेल - फोटो : amar ujala
पिछले वर्ष भी फरार हुआ था बंदी
जेल से बंदियों के भागने की लंबी फेहरिस्त है। वर्ष 2017 में जेल में प्रवेश के दौरान गेट से शहर के बिजली खेड़ा निवासी बंदी नरेंद्र फरार हो गया था। हालांकि, जेल प्रशासन ने बंदी के फरार होने का ठीकरा सिपाहियों पर फोड़ दिया था। इसमें बंदी नरेंद्र को बरेली से यहां लाने वाले दोनों सिपाही निलंबित कर दिए गए थे। इसी तरह पिछले वर्ष जुलाई माह में दहेज हत्या समेत सात केसों में बंद बंदी ममसी खुर्द निवासी बच्छराज यादव बगिया में काम करते समय बंदीरक्षकों को चकमा देकर फरार हो गया था। 46 बंदियों के साथ कमान में उसे बगिया ले जाया गया था। वापस जेल लाते समय चकमा देकर फरार हो गया था। जिसको एक माह बाद चित्रकूट स्थित रिश्तेदार के घर से पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 


 
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बांदा जेल - फोटो : सोशल मीडिया
अप्रैल व मई में सर्वाधिक हुए निरीक्षण
मुख्तार अंसारी के अप्रैल में जेल आने व चित्रकूट की घटना के बाद से अधिकारियों ने मई माह में सर्वाधिक निरीक्षण किए। न्यायिक अफसरों ने भी जेल का जायजा लिया। डीआईजी जेल संजीव त्रिपाठी, आईजी के. सत्यनारायणा सहित तीन बार डीएम आनंद कुमार सिंह, एसपी डा. एसएस मीणा ने जेल का औचक निरीक्षण कर सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लिया। इसके अलावा अन्य कई अधिकारियों ने भी जेल का निरीक्षण किया, लेकिन उनके निरीक्षण व सुरक्षा के दावे धरे के धरे रह गए। 

 
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