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कलेजा चीर रहीं ये कहानियां: भूखे रहकर रात गुजार रहे छात्र, कोई बता रहा आंखों देखा हाल, यूक्रेन से लौटे ऋतिक की दास्तां भी दर्दनाक
अमर उजाला ब्यूरो, मेरठ
Published by: कपिल kapil
Updated Sat, 26 Feb 2022 04:26 PM IST
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यूक्रेन में फंसे यूपी के छात्र।
- फोटो : amar ujala
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यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्र अपने-अपने परिजनों को फोन करके वहां के हालातों के बारे में बता रहे हैं। अपने लाडलों की दर्दभरी दास्तां सुन परिजनों की रूह कांप रही है। वे रात-दिन अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए दुआ कर रहे हैं। वहीं मुजफ्फरनगर निवासी ऋतिक पांचाल दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर फ्लाइट से उतरा। इस दौरान परिजनों और रिश्तेदारों को देख उसकी आंखें भर आईं।
भीगी पलकें लिए यूक्रेन से खतौली पहुंचा ऋतिक
यूक्रेन के संकट से निकलकर खतौली का ऋतिक पांचाल दिल्ली के इंदिरा गांधी एयरपोर्ट पर फ्लाइट से उतरा। सामने खड़े परिवार और रिश्तेदारों को देखकर उसकी आंखें भर आईं। छात्र ने बताया कि कीव से उड़ने वाली आखिरी फ्लाइट में वह सवार था, इसके बाद एयरपोर्ट से कोई उड़ान नहीं हुई। अलमाटी के रास्ते वह किसी तरह दिल्ली तक पहुंचा।
खतौली के ढाकन मोहल्ला निवासी ऋतिक पांचाल से मिलने शुक्रवार को परिचितों का जमावड़ा लगा रहा। यूक्रेन के हालात जानने की लोगों के बीच उत्सुकता नजर आई। छात्र ने बताया कि वह विन्नित्सिया शहर में रहकर नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस के चौथे साल की पढ़ाई कर रहा है। युद्ध के हालात बनने पर उन्होंने वापसी का टिकट बुक कराया। विन्नित्सिया शहर से 300 किलोमीटर का सफर ट्रेन से पूरा करने के बाद राजधानी कीव एयरपोर्ट पहुंचे।
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यूक्रेन में फंसे शामली के छात्र।
- फोटो : amar ujala
कीव से उन्होंने बुधवार रात दो बजे उड़ान भरी। उन्हें जानकारी मिली कि उड़ान के तीन घंटे बाद ही कीव एयरपोर्ट पर कब्जा कर लिया गया। कीव से पांच घंटे का सफर करने के बाद वह आतरू पहुंचे थे। वहां से उनकी अगली फ्लाइट अलमाटी की थी। तीन घंटे अलमाटी पहुंचने में लगे। यहां से एक घंटे बाद स्वदेश लौटने की फ्लाइट मिली। सफर का आखिरी घंटा ऐसा लग रहा था कि मानों दस घंटे के बराबर हो। गुरुवार रात वह दिल्ली पहुंचा और अब परिवार के बीच खतौली में है।
पहले यूनिवर्सिटी के बेसमेंट में रहे
ऋतिक ने बताया कि खतरा बढ़ने के बाद पहले छात्र यूनिवर्सिटी के बेसमेंट में रहे। इसके बाद टिकट हो गए थे, वह निकलने शुरू हो गए। कुछ साथियों के टिकट नहीं हुए हैं।
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यूक्रेन में फंसे बिजनौर के युवा।
- फोटो : amar ujala
70 हजार रुपये में पूरा हुआ 28 हजार का सफर
ऋतिक पांचाल ने बताया कि आम दिनों में कीव से भारत लौटने का टिकट करीब 28 हजार रुपये में मिलता था, लेकिन बिगड़े हालात के बाद सात घंटे का सफर 30 घंटों में बदल गया। खर्च भी 70 हजार रुपये का आया।
जर्मनी की ओर से आने में हो रही परेशानी
ऋतिक ने बताया कि उसके एक दोस्त की आने से एक दिन पहले 22 फरवरी को कीव से फ्लाइट थी। फ्लाइट को जर्मनी होकर भारत आना था। जर्मनी की ओर से वीजा न मिलने के कारण उसकी टिकट कैंसल कर दी गई। जिस कारण उसका दोस्त कीव में ही फंसकर रह गया।
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धमाकों से छात्रों में दहशत।
- फोटो : amar ujala
कब बंकर में जाना पड़ जाए, रात में जूते पहन कर सो रहे छात्र
खाना खाने का बिल्कुल मन नहीं कर रहा है, इसलिए बनाया भी नहीं। फाइटर प्लेन उड़ान भर रहे हैं, उनकी आवाज से डर लग रहा है। ज्यादा भूख लगी तो मैगी खा ली। रात को जूते पहनकर सो रहे हैं, पता नहीं कब बंकर में जाना पड़ जाए। यह बात यूक्रेन में फंसे हितेश चौधरी ने शुक्रवार को अमर उजाला से खास बातचीत में कही।
रशीदपुर गढ़ी के रहने वाला हितेश चौधरी इवानो यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस प्रथम वर्ष के छात्र हैं। उन्होंने बताया कि गुरुवार को इवानो का एयरपोर्ट तबाह हो गया था। तभी से अफरा-तफरी मच गई। इसके तुरंत बाद उन्होंने एटीएम से पैसा निकाला और खाने पीने का जरूरी सामान खरीद लिया। वह इस समय हॉस्टल में हैं, लेकिन डर लग रहा है। गुरुवार को ही एक बैग तैयार कर लिया था। जिसमें पासपोर्ट, शैक्षिक प्रमाणपत्र और जरूरी कागजात, कुछ कपड़े रखे हैं। कब बंकर में जाना पड़ जाए, इसलिए रात को जूते पहनकर ही सो रहे हैं। आधी रात तक तो बैठे ही रहे, बाद में कब नींद आ गई पता नहीं चला। रातभर इमरजेंसी के कारण लाइट नहीं रही। शाम को कुछ खाया नहीं था, सुबह से भी खाना बनाने या खाने का मन नहीं है, सिर्फ मैगी खाकर काम चला लिया। दूतावास की ओर से सूचना मिली है कि आज बस आएगी। जिससे उन्हें हंगरी, पौलेंड या रोमानिया तक भेजा जाएगा।
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बंकर में छिपकर बचाई जान।
- फोटो : amar ujala
हर समय सायरन की आवाज गूंज रही ताऊ जी...
शामली में कैराना के ऊंचागांव निवासी रविंद्र चौहान का छोटा बेटा हिमांशु चौहान यूक्रेन के पोल्टावा शहर की पोल्टावा स्टेट मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस का प्रथम वर्ष का छात्र है। शुक्रवार को ऊंचागांव में हिमांशु का ताऊ सहेंद्र व बड़ा भाई रजत चौहान चिंतित मुद्रा में बैठे थे। हिमांशु से व्हाट्सएप कॉल से संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे। उसने व्हाट्सएप पर वॉइस कॉल की।
उसने बताया कि पिछली रात से यहां इंटरनेट की स्पीड बहुत कम होने के कारण व्हाट्सएप वीडियो कॉल नहीं हो पा रही है। केवल वॉइस कॉल की जा सकती है। हिमांशु ने बताया कि उनकी यूनिवर्सिटी में भारत के करीब 500 छात्र है। यूक्रेन की राजधानी कीव यहां से 300 किलोमीटर और खार्कीव जहां पर भयंकर युद्ध हो रहा है वह 150 किलोमीटर है। उनके शहर में हर समय सायरन की आवाज गूंज रही हैं।
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