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Prayagraj: सार्वजनिक भूमि से 90 दिन में हटे अतिक्रमण, लापरवाह अधिकारियों पर हो कार्रवाई, हाईकोर्ट का सख्त आदेश

अमर उजाला ब्यूरो, प्रयागराज Published by: Digvijay Singh Updated Tue, 14 Oct 2025 01:16 PM IST
सार

कोर्ट ने दुःख जताया कि हाईकोर्ट में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिकाएं भरी पड़ी हैं। सभी जिलाधिकारियों और उपजिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ऐसे लोगों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करें जो किसी अतिक्रमण के संबंध में तहसीलदार/तहसीलदार (न्यायिक) को 60 दिनों के भीतर सूचना नहीं देते।
 

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Encroachments on public land must be removed within 90 days and action must be taken against negligent officia
इलाहाबाद हाईकोर्ट। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण को लेकर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने कहा है कि यदि कोई तहसीलदार या तहसीलदार (न्यायिक) राजस्व संहिता-2006 की धारा-67 के अंतर्गत अतिक्रमण हटाने संबंधी कार्रवाई कारण बताओ नोटिस की तिथि से 90 दिनों के भीतर नहीं करता और देरी के लिए पर्याप्त कारण नहीं बताता तो इसे कदाचार माना जाए। ऐसे में उप्र सरकारी सेवक नियम-1999 के तहत विभागीय कार्रवाई शुरू कर दंडित किया जाए।

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यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकलपीठ ने झांसी के मुन्नीलाल उर्फ हरिशरण की जनहित याचिका पर दिया। यह भी कहा है कि सार्वजनिक जमीन पर अतिक्रमण हटाने में उदासीन ग्राम प्रधान और लेखपाल के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही हाईकोर्ट में की जा सकेगी। सड़क पर अतिक्रमण होने से जीवन नर्क के समान है। ऐसे में बिना किसी भेदभाव के अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई की जानी चाहिए। फुटपाथ का उपयोग व्यावसायिक गतिविधियों या निजी ढांचे के लिए नहीं किया जा सकता। संबंधित अधिकारी इन्हें बाधाओं से मुक्त रखें।
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वहीं, कोर्ट ने झांसी के डीएम को निर्देश दिया है कि वे एसडीएम की अध्यक्षता में टीम गठित कर याची की शिकायत की जांच कराएं। यदि राजस्व अभिलेखों में दर्ज सार्वजनिक रास्ते पर अतिक्रमण है तो संबंधित क्षेत्रीय लेखपाल के विरुद्ध कार्रवाई करें जिसने पहले अतिक्रमण से इन्कार करते हुए रिपोर्ट प्रस्तुत की। यह प्रक्रिया 90 दिनों की अवधि के भीतर पूरी की जाए।

बड़ी संख्या में दाखिल हैं अतिक्रमण की जनहित याचिकाएं
कोर्ट ने दुःख जताया कि हाईकोर्ट में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण से संबंधित जनहित याचिकाएं भरी पड़ी हैं। सभी जिलाधिकारियों और उपजिलाधिकारियों को निर्देश दिया कि वे ऐसे लोगों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू करें जो किसी अतिक्रमण के संबंध में तहसीलदार/तहसीलदार (न्यायिक) को 60 दिनों के भीतर सूचना नहीं देते।

लापरवाह प्रधानों को हटाने की कार्रवाई की जाए
कोर्ट ने कहा, ग्राम पंचायत की संपत्ति के संरक्षक होने के नाते भू प्रबंधक समिति के अध्यक्ष ग्राम प्रधान व सचिव लेखपाल का दायित्व है कि वह सार्वजनिक भूमि पर हुए अतिक्रमण की सूचना तहसीलदार को दें। इसमें लापरवाही करते हैं तो यह षडयंत्र और दुष्प्रेरण के समान है। प्रधान अपने पद का दुरुपयोग करते हैं या कर्तव्यों का पालन नहीं करते तो उन्हें पंचायत राज अधिनियम के तहत पद से हटाया जाए। कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों को अतिक्रमण हटाने में राजस्व अधिकारियों का सहायोग करने का आदेश दिया है। साथ ही विभागीय आयुक्तों, जिलाधिकारियों, अध्यक्षों/सचिवों/प्रभारी अधिकारियों को निर्देशित किया गया है कि वे मुख्य सचिव को हर साल अतिक्रमण हटाने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ की गई कार्रवाई से अवगत कराएं।

तालाब व सार्वजनिक उपयोग की संपत्तियों पर भी कब्जा स्वीकार्य नहीं
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मिर्जापुर के चौका गांव के तालाब पर अतिक्रमण के मामले में दाखिल जनहित याचिका में कहा कि ग्राम समाज की भूमि विशेषकर तालाब व सार्वजनिक उपयोग की संपत्तियों पर कोई भी कब्जा स्वीकार्य नहीं। जलाशयों पर अतिक्रमण पर्यावरणीय असंतुलन और नागरिकों के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। यह आदेश न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरि की एकल पीठ ने मनोज कुमार सिंह की जनहित याचिका पर दिया। मिर्जापुर के तहसील चुनार के चौका गांव निवासी याची ने तालाब पर अवैध कब्जा हटाने की मांग करते हुए जनहित याचिका दाखिल की थी। 

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