High Court : हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने हत्या के मामले में जीवित बचे एकमात्र आरोपी को किया बरी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने हत्या के मामले में जीवित बचे एकमात्र आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने बकुनी की ओर से दायर अपील पर दिया है।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने हत्या के मामले में जीवित बचे एकमात्र आरोपी को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर और न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने बकुनी की ओर से दायर अपील पर दिया है। प्रयागराज (अब कौशाम्बी) के कोखराज थाना क्षेत्र में 22 मई 1985 की रात को कल्लू नाम के व्यक्ति की लाठी-डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।
मृतक के भाई बबानी ने आरोप लगाया था कि रंजिश के कारण रहीशे, छिकनी, बकुनी और नजीर ने इस वारदात को अंजाम दिया। ट्रायल कोर्ट ने 21 मार्च 1990 को चारों आरोपियों को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। इस फैसले के खिलाफ आरोपियों ने अपील दायर की थी। सुनवाई के दौरान चार में से तीन अपीलकर्ताओं (रहीशे, छिकनी और नजीर) की मृत्यु हो गई, जिसके कारण उनके विरुद्ध अपील समाप्त कर दी गई थी। न्यायालय ने केवल जीवित बचे अपीलकर्ता बकुनी के मामले की सुनवाई की।
खंडपीठ ने साक्ष्यों का पुनर्मूल्यांकन करते हुए पाया कि अभियोजन पक्ष अपना मामला संदेह से परे साबित करने में विफल रहा है। कोर्ट ने पाया कि चश्मदीद गवाह बतूनी ने दावा किया कि उसने आरोपियों को अपने भाई को पीटते देखा, लेकिन वह उसे बचाने के बजाय भाग गया और पूरी रात नहीं आया। कोर्ट ने इसे अत्यंत अस्वाभाविक माना। घटनास्थल के पास पुलिस चौकी होने के बावजूद गवाह ने वहां सूचना नहीं दी और दूर स्थित दूसरे गांव चला गया। कोर्ट ने हत्या के मकसद को कमजोर माना। एक अन्य कथित चश्मदीद गवाह हीरा को अभियोजन पक्ष ने अदालत में पेश ही नहीं किया। इन आधारों पर कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलटते हुए बकुनी को बरी कर दिया और जेल से तत्काल रिहा करने का आदेश दिया।
