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UP : हाईकोर्ट की अहम टिप्पणी- चकबंदी के दौरान चुप रहने वाले वारिस को बाद में वसीयत का लाभ नहीं मिल सकता

अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज Published by: विनोद सिंह Updated Wed, 31 Dec 2025 11:28 AM IST
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सार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि चकबंदी के दौरान किसी पक्ष ने वसीयत के आधार पर अपने अधिकारों का दावा नहीं किया तो बाद में वह मालिकाना हक को चुनौती नहीं दे सकता।

High Court makes important observation - heirs who remain silent during consolidation cannot later avail
इलाहाबाद हाईकोर्ट। - फोटो : अमर उजाला।
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विस्तार
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि चकबंदी के दौरान किसी पक्ष ने वसीयत के आधार पर अपने अधिकारों का दावा नहीं किया तो बाद में वह मालिकाना हक को चुनौती नहीं दे सकता। साथ ही कहा कि चकबंदी के बाद बंटवारे का मुकदमा तो चल सकता है पर राजस्व न्यायालय को वसीयत के आधार पर वादी के अधिकारों की जांच का हक नहीं है। इसी टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की एकल पीठ ने एक पुराने मामले में रामगोपाल और अन्य की ओर से दायर की गई याचिका खारिज कर दी।

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कानपुर नगर निवासी पार्वती ने पति रामनारायण की मौत के बाद बंटवारे के लिए देवर रामगोपाल के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में मुकदमा दायर कर संपत्ति में आधे हिस्से का दावा किया था। इस पर रामगोपाल ने विरोध कर वर्ष-1961 की एक वसीयत पेश की था। उनका कहना था कि भाई ने अपनी जमीन हमें वसीयत की थी। ऐसे में पार्वती को भूमि के बंटवारे या उसे बेचने का हक नहीं है। वहीं, ट्रायल कोर्ट ने पार्वती के पक्ष में फैसला सुनाया तो रामगोपाल ने उसे हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

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कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद पाया कि गांव में चकबंदी की कार्यवाही पूरी हो चुकी थी। अंतिम रिकॉर्ड में पार्वती और रामगोपाल को आधे-आधे हिस्से का सह-खातेदार बनाया गया था। रामगोपाल ने चकबंदी के समय वसीयत के आधार पर पार्वती के मालिकाना हक को चुनौती नहीं दी थी। ऐसे में अब वे इस मुद्दे को दोबारा नहीं उठा सकते। हाईकोर्ट ने बोर्ड ऑफ रेवेन्यू के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें पार्वती के पक्ष में बंटवारे की प्रारंभिक डिक्री को बहाल किया गया था।

प्रतिवादी के अधिवक्ता की दलील

रामगोपाल के अधिवक्ता की दलील दी कि पार्वती के पति रामनारायण ने 1961 में वसीयत की थी। उसके तहत सिर्फ उनके जीवित रहने तक ही संपत्ति पर पार्वती को अधिकार दिया गया था। ऐसे में वह बंटवारे व कब्जे की मांग नहीं कर सकती।

पार्वती के अधिवक्ता की दलील

अधिवक्ता ने दलील दी कि पति की मौत के बाद पत्नी उसके हिस्से की पूर्ण स्वामी है। चकबंदी के दौरान पार्वती का नाम भूमिधरी में दर्ज हो चुका है। चकबंदी के 33 साल बाद रामगोपाल की ओर से पेश की गई वसीयत संदिग्ध है।

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