High Court : रिकवरी मेमो पर हस्ताक्षर ही गिरफ्तारी के आधार की लिखित सूचना मानी जाएगी, याचिका खारिज
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त ने उस रिकवरी मेमो पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें बरामद सामग्री और उससे जुड़े दंडात्मक प्रावधान स्पष्ट रूप से दर्ज हैं तो इसे गिरफ्तारी के आधार की प्रभावी सूचना मानी जाएगी।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अभियुक्त ने उस रिकवरी मेमो पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें बरामद सामग्री और उससे जुड़े दंडात्मक प्रावधान स्पष्ट रूप से दर्ज हैं तो इसे गिरफ्तारी के आधार की प्रभावी सूचना मानी जाएगी। इस टिप्पणी के साथ न्यायमूर्ति सलिल कुमार राय, न्यायमूर्ति प्रमोद कुमार श्रीवास्तव की खंडपीठ ने नितिन कुमार सिंह की याचिका खारिज कर दी।
याची ने 18 मई 2025 को हापुड़ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के पारित न्यायिक रिमांड आदेश को चुनौती दी थी। मामला एक यूनिवर्सिटी में फर्जी डिग्री और मार्कशीट के बड़े रैकेट से जुड़ा था। याची के अधिवक्ता ने दलील दी कि उसे औपचारिक रूप से गिरफ्तारी का आधार नहीं बताया गया। ऐसे में उसकी गिरफ्तारी अवैध है। राज्य सरकार की ओर से अपर सरकारी अधिवक्ता रूपक चौबे ने कहा कि 17 मई 2025 को वैध तलाशी वारंट के तहत कार्रवाई की गई थी। मौके पर विस्तृत रिकवरी मेमो तैयार किया गया, जिसमें फर्जी डिग्री, मार्कशीट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की बरामदगी दर्ज थी। यह मेमो अभियुक्तों को पढ़कर सुनाया गया और उसने स्वेच्छा से उस पर हस्ताक्षर किए। इस प्रकार गिरफ्तारी का उद्देश्य और आधार अभियुक्त को स्पष्ट रूप से बताया गया।
इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी के समय तैयार किए गए रिकवरी मेमो में बरामद वस्तुओं का विवरण और संबंधित धाराएं दर्ज थीं, जिसे अभियुक्त को पढ़कर सुनाया गया था। उसने स्वेच्छा से उस पर हस्ताक्षर किए हैं। ऐसे में यह माना जाएगा कि अभियुक्त को गिरफ्तारी के कारणों की वास्तविक जानकारी थी।
कोर्ट ने कहा कि गिरफ्तारी मेमो में आधार का उल्लेख न होना केवल एक प्रक्रियात्मक अनियमितता है न कि ऐसी गंभीर कमी, जिससे रिमांड आदेश रद्द किया जा सके। साथ ही फर्जी डिग्री के अपराध को गंभीर बताते हुए कहा कि यह केवल किसी एक व्यक्ति को नुकसान पहुंचाने वाला नहीं है, बल्कि समाज और राष्ट्र की शैक्षणिक-पेशेवर व्यवस्था की जड़ों को कमजोर करता है।
ऐसे अपराधों से अयोग्य लोग सार्वजनिक विश्वास और जिम्मेदारी के पदों तक पहुंच जाते हैं, जो व्यापक सामाजिक नुकसान का कारण बनता है। हाईकोर्ट ने रिकवरी मेमो को ही गिरफ्तारी के तथ्यात्मक व कानूनी आधार की लिखित-प्रभावी सूचना मानते हुए याचिका खारिज कर दी। साथ ही उसे अंतरिम जमानत देने से भी इन्कार कर दिया।
