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द्रविड़, उत्कल व वंग शैली में निर्मित मंदिर बने आकर्षण का केंद्र
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अमेठी। तहसील क्षेत्र के टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम के एक ही परिसर में उत्कल, द्रविड़ व बंग शैली में निर्मित मंदिर इन दिनों आकर्षण का केंद्र बने हैं। परिसर में करीब सात करोड़ रुपये की लागत से दो द्वार एक यज्ञशाला समेत 13 देवालयों की स्थापना की गई है। टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम क्षेत्र व प्रदेश ही नहीं संपूर्ण देश के लोगों की आस्था का केंद्र है।
ऐतिहासिक आश्रम परिसर में एक साथ बने कई मंदिर पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं। स्थानीय तहसील मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम करीब 88 एकड़ में फैला है। स्वामी परमहंस आश्रम इन दिनों एक नई बात को लेकर चर्चा का केंद्र बना है। स्वामी परमहंस महाराज की प्रेरणा और आश्रम प्रबंधक स्वामी हरि चैतन्य ब्रम्हचारी महाराज के मार्गदर्शन में मुंबई के मशहूर उद्योगपति क्षेत्र के गांव पूरे जीवधर मजरे भेटुआ निवासी अवधेश नारायण पांडेय की देखरेख में आश्रम के एक ही परिसर में करीब सात करोड़ रुपये की लागत से दो द्वार, एक यज्ञशाला सहित 13 देवालयों का निर्माण कराया जा रहा है।
सभी देवालय लगभग बनकर तैयार हो गए हैं। परिसर को भव्यतम रूप प्रदान करने व लोगों की आस्था को मजबूत बनाने के लिए उत्कल शैली में दुर्गा माता का मंदिर, द्रविड़ शैली में भगवान शिव नर्वदेश्वर का मंदिर, शनि देव मंदिर, शनि शिला, नवग्रह मंदिर, पंचदेव मंदिर, बाबा काल भैरव मंदिर, 47 फिट की भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा, ध्यान गुफा, नंदी महाराज की प्रतिमा, यज्ञशाला का निर्माण किया गया है। परिसर से पहले गोपुरम शैली से बना लक्ष्मीकांतम द्वार आश्रम की शोभा को चार चांद लगाता है।
आश्रम परिसर से पहले पंडित राजा राम शुक्ल की स्मृति में राम दरबार द्वार बनाया गया है। अिप्रैल 2018 में स्वामी परमहंस आश्रम स्थित स्वामी परमहंस महाराज मंदिर से सटे परिसर में द्रविड़ शैली में 72 फीट ऊंचे हनुमान गढ़ी मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। इस मंदिर से पहले परिसर में बंग शैली में गणेश मंदिर के अंदर आयरन और पत्थर की आठ टन की मूर्ति लगाई गई है।
टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम के संस्थापक स्वामी परमहंस महाराज वर्ष 1918 में टीकर स्थित कई हेक्टेयर में फैले घने जंगल में आए। वे नदी के रास्ते टीकरमाफी स्थित जंगल में पहुंचे। स्वामीजी यहां कुटी बनाकर रहने लगे। स्थानीय लोगों ने उनके खिलाफ जंगल कब्जाने की शिकायत की। उस समय बड़े अधिकारी यहां आए और परमहंस महाराज से जगह खाली करने के लिए कहा। स्वामीजी ने कुछ नहीं कहा।
अधिकारी जाने लगे तो उनकी गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। घर पहुंचे तो परिवार में अनहोनी हो गई थी। बताते हैं कि जब अधिकारी अपने बेटे को लेकर आश्रम पहुंचे तो वह ठीक हो गया। उसी समय एक अधिकारी ने स्वामी परमहंस आश्रम के नाम जमीन दर्ज कर सुरक्षित करवा दी, बाद में लगान भी माफ कर दिया।
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ऐतिहासिक आश्रम परिसर में एक साथ बने कई मंदिर पूरे क्षेत्र में चर्चा का विषय हैं। स्थानीय तहसील मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूरी पर टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम करीब 88 एकड़ में फैला है। स्वामी परमहंस आश्रम इन दिनों एक नई बात को लेकर चर्चा का केंद्र बना है। स्वामी परमहंस महाराज की प्रेरणा और आश्रम प्रबंधक स्वामी हरि चैतन्य ब्रम्हचारी महाराज के मार्गदर्शन में मुंबई के मशहूर उद्योगपति क्षेत्र के गांव पूरे जीवधर मजरे भेटुआ निवासी अवधेश नारायण पांडेय की देखरेख में आश्रम के एक ही परिसर में करीब सात करोड़ रुपये की लागत से दो द्वार, एक यज्ञशाला सहित 13 देवालयों का निर्माण कराया जा रहा है।
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सभी देवालय लगभग बनकर तैयार हो गए हैं। परिसर को भव्यतम रूप प्रदान करने व लोगों की आस्था को मजबूत बनाने के लिए उत्कल शैली में दुर्गा माता का मंदिर, द्रविड़ शैली में भगवान शिव नर्वदेश्वर का मंदिर, शनि देव मंदिर, शनि शिला, नवग्रह मंदिर, पंचदेव मंदिर, बाबा काल भैरव मंदिर, 47 फिट की भगवान भोलेनाथ की प्रतिमा, ध्यान गुफा, नंदी महाराज की प्रतिमा, यज्ञशाला का निर्माण किया गया है। परिसर से पहले गोपुरम शैली से बना लक्ष्मीकांतम द्वार आश्रम की शोभा को चार चांद लगाता है।
आश्रम परिसर से पहले पंडित राजा राम शुक्ल की स्मृति में राम दरबार द्वार बनाया गया है। अिप्रैल 2018 में स्वामी परमहंस आश्रम स्थित स्वामी परमहंस महाराज मंदिर से सटे परिसर में द्रविड़ शैली में 72 फीट ऊंचे हनुमान गढ़ी मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। इस मंदिर से पहले परिसर में बंग शैली में गणेश मंदिर के अंदर आयरन और पत्थर की आठ टन की मूर्ति लगाई गई है।
टीकरमाफी स्थित श्रीमत स्वामी परमहंस आश्रम के संस्थापक स्वामी परमहंस महाराज वर्ष 1918 में टीकर स्थित कई हेक्टेयर में फैले घने जंगल में आए। वे नदी के रास्ते टीकरमाफी स्थित जंगल में पहुंचे। स्वामीजी यहां कुटी बनाकर रहने लगे। स्थानीय लोगों ने उनके खिलाफ जंगल कब्जाने की शिकायत की। उस समय बड़े अधिकारी यहां आए और परमहंस महाराज से जगह खाली करने के लिए कहा। स्वामीजी ने कुछ नहीं कहा।
अधिकारी जाने लगे तो उनकी गाड़ी स्टार्ट नहीं हुई। घर पहुंचे तो परिवार में अनहोनी हो गई थी। बताते हैं कि जब अधिकारी अपने बेटे को लेकर आश्रम पहुंचे तो वह ठीक हो गया। उसी समय एक अधिकारी ने स्वामी परमहंस आश्रम के नाम जमीन दर्ज कर सुरक्षित करवा दी, बाद में लगान भी माफ कर दिया।