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Bahraich News: चौथे दिन भी नहीं दिखा सूरज, गलन से लोग बेहाल
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बहराइच में दिन भर छायी रही बदली
- फोटो : बहराइच में दिन भर छायी रही बदली
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बहराइच। तराई क्षेत्र में कड़ाके की ठंड से जनजीवन बेहाल है। चौथे दिन भी आसमान से धूप नदारद रही और दिनभर गलन व ठिठुरन से लोग परेशान रहे। रविवार को जिले का अधिकतम तापमान महज 13.9 डिग्री, जबकि न्यूनतम तापमान 8 डिग्री सेल्सियस रिकॉर्ड किया गया।
कड़ाके की ठंड से सबसे ज्यादा बुजुर्ग, बच्चे और मजदूर वर्ग परेशान है। दिन चढ़ने के साथ लोगों को धूप निकलने की उम्मीद थी, लेकिन सुबह 11 बजे के बाद भी सूरज बादलों की ओट में ही छिपा रहा। कोहरा तो नहीं छाया, मगर करीब 5 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही पछुआ हवाओं ने गलन को और बढ़ा दिया। हालात ऐसे रहे कि रजाई-कंबल भी पूरी राहत नहीं दे पाए। लोग हीटर और अलाव के सहारे किसी तरह ठंड से बचने की कोशिश करते दिखे, लेकिन अलाव से हटते ही फिर से कंपकंपी छूटने लगी।
ठंड का असर रोजमर्रा की गतिविधियों पर भी साफ दिखाई दिया। सुबह-शाम सड़कों पर आवाजाही कम रही, बाजारों में देर से रौनक आई और लोग जरूरी काम निपटाकर जल्दी घर लौटते नजर आए। ग्रामीण इलाकों में अलाव के आसपास लोगों की भीड़ लगी रही।
आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक एके सिंह के अनुसार तराई में मौसम का यह उतार-चढ़ाव फिलहाल जारी रहेगा। अगले चार दिनों तक ठिठुरन और गलन से राहत मिलने के आसार कम हैं। इसके बाद तापमान में और गिरावट की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग ने लोगों को ठंड से बचाव के लिए सतर्क रहने और विशेषकर बच्चों व बुजुर्गों का ध्यान रखने की सलाह दी है।
फसलों को झुलसा रोग का खतरा
जिले में लगातार चल रही शीतलहर के कारण आलू, सरसों तथा गेहूं की फसलों को झुलसा रोग का खतरा बना हुआ है। जिले के किसान नवीन कुमार शुक्ल ने बताया कि लगातार शीतलहर से फसलों की पत्तियां कुंभला रही हैं। कृषि विशेषज्ञ डॉ. डीके त्रिपाठी ने बताया कि फसलों को झुलसा रोग से बचाने के लिए सिंचाई जरूरी है। साथ ही खेतों को चारों तरफ तार लगाकर उसे किसी पन्नी इत्यादि से घेर दिया जाए जिससे पाला का असर फसलों को कम से कम प्रभावित करे। उन्होंने खेतों के आस-पास अलाव जलाने की भी आवश्यकता बताई।
कठिन है झोपड़ी में रह रहे ग्रामीणों की जिंदगी
जिले की महसी, कैसरगंज तथा नानपारा तहसील के कई गांव सरयू व घाघरा नदी की कटान से प्रभावित हैं। पिछले वर्षों में आई बाढ़ व कटान से कई किसान बेघर हो गए। उनका बसेरा अब बंधा के ऊपर झोपड़ी है। दीवार के नाम पर टटिया लगी हुई। पूस की रात चलने वली बर्फीली हवाएं किसानों तथा उनके परिवार के सदस्यों को शूल जैसी चुभती हैं। सरकार की ओर से इनके लिए अलग बसाने का प्रयास किया गया लेकिन यह प्रयास अभी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है।
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कड़ाके की ठंड से सबसे ज्यादा बुजुर्ग, बच्चे और मजदूर वर्ग परेशान है। दिन चढ़ने के साथ लोगों को धूप निकलने की उम्मीद थी, लेकिन सुबह 11 बजे के बाद भी सूरज बादलों की ओट में ही छिपा रहा। कोहरा तो नहीं छाया, मगर करीब 5 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चल रही पछुआ हवाओं ने गलन को और बढ़ा दिया। हालात ऐसे रहे कि रजाई-कंबल भी पूरी राहत नहीं दे पाए। लोग हीटर और अलाव के सहारे किसी तरह ठंड से बचने की कोशिश करते दिखे, लेकिन अलाव से हटते ही फिर से कंपकंपी छूटने लगी।
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ठंड का असर रोजमर्रा की गतिविधियों पर भी साफ दिखाई दिया। सुबह-शाम सड़कों पर आवाजाही कम रही, बाजारों में देर से रौनक आई और लोग जरूरी काम निपटाकर जल्दी घर लौटते नजर आए। ग्रामीण इलाकों में अलाव के आसपास लोगों की भीड़ लगी रही।
आंचलिक मौसम विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक एके सिंह के अनुसार तराई में मौसम का यह उतार-चढ़ाव फिलहाल जारी रहेगा। अगले चार दिनों तक ठिठुरन और गलन से राहत मिलने के आसार कम हैं। इसके बाद तापमान में और गिरावट की संभावना जताई गई है। मौसम विभाग ने लोगों को ठंड से बचाव के लिए सतर्क रहने और विशेषकर बच्चों व बुजुर्गों का ध्यान रखने की सलाह दी है।
फसलों को झुलसा रोग का खतरा
जिले में लगातार चल रही शीतलहर के कारण आलू, सरसों तथा गेहूं की फसलों को झुलसा रोग का खतरा बना हुआ है। जिले के किसान नवीन कुमार शुक्ल ने बताया कि लगातार शीतलहर से फसलों की पत्तियां कुंभला रही हैं। कृषि विशेषज्ञ डॉ. डीके त्रिपाठी ने बताया कि फसलों को झुलसा रोग से बचाने के लिए सिंचाई जरूरी है। साथ ही खेतों को चारों तरफ तार लगाकर उसे किसी पन्नी इत्यादि से घेर दिया जाए जिससे पाला का असर फसलों को कम से कम प्रभावित करे। उन्होंने खेतों के आस-पास अलाव जलाने की भी आवश्यकता बताई।
कठिन है झोपड़ी में रह रहे ग्रामीणों की जिंदगी
जिले की महसी, कैसरगंज तथा नानपारा तहसील के कई गांव सरयू व घाघरा नदी की कटान से प्रभावित हैं। पिछले वर्षों में आई बाढ़ व कटान से कई किसान बेघर हो गए। उनका बसेरा अब बंधा के ऊपर झोपड़ी है। दीवार के नाम पर टटिया लगी हुई। पूस की रात चलने वली बर्फीली हवाएं किसानों तथा उनके परिवार के सदस्यों को शूल जैसी चुभती हैं। सरकार की ओर से इनके लिए अलग बसाने का प्रयास किया गया लेकिन यह प्रयास अभी पूरी तरह से सफल नहीं हो पाया है।
