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Budaun News: आरक्षण बदला तो, बदल जाएंगे गांवों के राजनीतिक समीकरण
संवाद न्यूज एजेंसी, बदायूं
Updated Wed, 10 Dec 2025 12:15 AM IST
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बदायूं। पंचायत चुनाव नजदीक आते ही जिलेभर में आरक्षण की चर्चा तेज हो गई है। अभी आधिकारिक रूप से आरक्षण की तस्वीर साफ नहीं हुई है, लेकिन कई ग्राम पंचायतों में संभावित बदलावों को लेकर राजनीति गर्म है। जिले की वे पंचायतें सबसे ज्यादा चर्चाओं में हैं, जहां पिछले दो-तीन साल से लगातार एक ही वर्ग के लिए सीट निर्धारित होती आ रही है। इससे न केवल मौजूदा प्रधानों में बेचैनी है, बल्कि जनता में भी बदलाव की उम्मीदें जग गई हैं।
जिले में 1037 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें मौजूदा प्रधानों की चिंता इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि वर्षों से एक ही श्रेणी में आरक्षण तय होने की वजह से उनकी पूरी राजनीतिक रणनीति उसी आधार पर बनाई गई थी। वे लगातार इसी भरोसे पर काम कर रहे थे कि सीट की श्रेणी बदलने की संभावना कम है, लेकिन इस बार चर्चा है कि कई पंचायतों में आरक्षण की श्रेणी बदली जा सकती है।
ऐसा हुआ तो मौजूदा प्रधानों की सीट पर दावेदारी कमजोर पड़ सकती है। जैसे महरौला में 90 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है, लेकिन यहां पर सीट सामान्य कर दी गई थी। इससे चुनाव पर काफी फर्क पड़ा था। कुछ प्रधानों ने बातचीत में स्वीकार किया कि यदि आरक्षण बदला, तो उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने में कठिनाइयां आएंगी।
वहीं, कुछेक एक प्रधान का कहना है कि सामान्य सीट में जीत दर्ज की है। जब आरक्षण लागू होगा तो पहले से अधिक वोटों से जीत दर्ज करेंगे। इधर, ग्रामीणों में भी इस बार आरक्षण बदलने की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि वर्षों से एक ही वर्ग के लिए सीट तय रहने के कारण अन्य वर्गों का प्रतिनिधित्व सीमित हो गया है। कई गांवों में लोग नए नेतृत्व और नई सामाजिक भागीदारी की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि बदलते समय के साथ आरक्षण में भी बदलाव जरूरी है, ताकि हर वर्ग को बराबर का अवसर मिल सके। हालांकि, आरक्षण की अंतिम सूची जारी होने के बाद ही स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होगी, लेकिन इतना तय है कि जहां श्रेणियां बदलेंगी, वहां पंचायतों के राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह बदल जाएंगे। उम्मीदवार बदलेंगे, रणनीतियां बदलेंगी और कई पंचायतों में नए चेहरों के उभरने की भी पूरी संभावना है। ऐसे में आरक्षण की नई सूची जिले की ग्रामीण राजनीति का भविष्य तय करेगी।
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जिले में 1037 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें मौजूदा प्रधानों की चिंता इसलिए बढ़ी हैं, क्योंकि वर्षों से एक ही श्रेणी में आरक्षण तय होने की वजह से उनकी पूरी राजनीतिक रणनीति उसी आधार पर बनाई गई थी। वे लगातार इसी भरोसे पर काम कर रहे थे कि सीट की श्रेणी बदलने की संभावना कम है, लेकिन इस बार चर्चा है कि कई पंचायतों में आरक्षण की श्रेणी बदली जा सकती है।
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ऐसा हुआ तो मौजूदा प्रधानों की सीट पर दावेदारी कमजोर पड़ सकती है। जैसे महरौला में 90 प्रतिशत आबादी ओबीसी की है, लेकिन यहां पर सीट सामान्य कर दी गई थी। इससे चुनाव पर काफी फर्क पड़ा था। कुछ प्रधानों ने बातचीत में स्वीकार किया कि यदि आरक्षण बदला, तो उन्हें दोबारा चुनाव लड़ने में कठिनाइयां आएंगी।
वहीं, कुछेक एक प्रधान का कहना है कि सामान्य सीट में जीत दर्ज की है। जब आरक्षण लागू होगा तो पहले से अधिक वोटों से जीत दर्ज करेंगे। इधर, ग्रामीणों में भी इस बार आरक्षण बदलने की उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं। उनका कहना है कि वर्षों से एक ही वर्ग के लिए सीट तय रहने के कारण अन्य वर्गों का प्रतिनिधित्व सीमित हो गया है। कई गांवों में लोग नए नेतृत्व और नई सामाजिक भागीदारी की मांग कर रहे हैं। ग्रामीणों का मानना है कि बदलते समय के साथ आरक्षण में भी बदलाव जरूरी है, ताकि हर वर्ग को बराबर का अवसर मिल सके। हालांकि, आरक्षण की अंतिम सूची जारी होने के बाद ही स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होगी, लेकिन इतना तय है कि जहां श्रेणियां बदलेंगी, वहां पंचायतों के राजनीतिक समीकरण भी पूरी तरह बदल जाएंगे। उम्मीदवार बदलेंगे, रणनीतियां बदलेंगी और कई पंचायतों में नए चेहरों के उभरने की भी पूरी संभावना है। ऐसे में आरक्षण की नई सूची जिले की ग्रामीण राजनीति का भविष्य तय करेगी।
