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Hardoi News: दिल का दर्द नहीं हुआ दूर... 69 वेंटिलेटरों को अब भी सांसों की दरकार
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फोटो-04- मेडिकल कॉलेज में स्थित इमरजेंसी वार्ड। संवाद
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हरदोई। दुरुस्त स्वास्थ्य सेवाओं के दावे पूरे साल धड़ाम होते रहे। इस साल भी मेडिकल कॉलेज न तो दिल के मरीजों का दर्द दूर कर पाया और न ही यहां के वेंटिलेटर एक भी मरीज को सांस दे पाए।
मेडिकल कॉलेज का संचालन तो जनपद में हो रहा है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाएं बीमार हैं। जनपद की आबादी लगभग 50 लाख है। मेडिकल कॉलेज बनने पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद जगी थी, लेकिन फिलहाल निराशा है। आलम यह है कि जनपद के मेडिकल कॉलेज में एक भी ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं है। मेडिकल कॉलेज ही क्यों, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अधीन आने वाले अस्पतालों में भी ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं है। मतलब यह कि ह्रदय रोगियों को प्राथमिक उपचार के बाद रेफर की डोज दे दी जाती है।
इससे इतर वेंटिलेटर भी मेडिकल कॉलेज से लेकर अस्पतालों तक में मरीजों को सांस नहीं दे पाए। मेडिकल कॉलेज में 69 वेंटिलेटर हैं, लेकिन इन वेंटिलेटरों को खुद ही सांसों की दरकार है। ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती और वेंटिलेटरों का इस्तेमाल शुरू कराने को लेकर विभागीय जिम्मेदारों ने दावे भरपूर किए, लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नजर नहीं आया।
सीसीयू, नर्सिंग कॉलेज के भवन नए साल में मिलने की उम्मीद
मेडिकल काॅलेज के गौराडांडा परिसर में नर्सिंग कॉलेज निर्माणाधीन है। 9.61 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण हो रहा है। नए साल में निर्माण कार्य पूरा होने की उम्मीद मजबूत इसलिए है कि यह कार्य पूरा करने का समय ही 31 मार्च 2026 है। यह बात और है कि यह काम पूर्व में अगस्त 2025 में ही पूरा होना था। गौरा डांडा परिसर में ही क्रिटिकल केयर यूनिट का भी निर्माण हो रहा है। 34.92 करोड़ रुपये से बनाए जा रहे इस भवन का कार्य 28 फरवरी 2026 तक पूरा होना है। मुमकिन है कि तय समय में भवनाें के निर्माण पूरे हो जाएं, लेकिन इनका संचालन भी बड़ी चुनौती है।
पुराना ट्रॉमा सेंटर चला नहीं पाए, नए का हो रहा निर्माण
गंभीर मरीजों को राहत देने के लिए लखनऊ रोड पर नया गांव में 20 बेड का ट्रॉमा सेंटर बनवाया गया था। वर्ष 2016 में 2.61 करोड़ रुपये से बने भवन में इस साल भी ट्रॉमा सेंटर संचालित करने की कवायद हुई। यह कवायद फोटो शेसन से शुरू हुई और यहीं पर ही खत्म हो गई। हाल यह हुआ कि दिन में डाक्टर नहीं और रात में डाक्टर की तैनाती। जिनकी तैनाती उनके भी सिर्फ हस्ताक्षर ही होते हैं। नए साल में उम्मीद यह है कि नए ट्रॉमा सेंटर के भवन का निर्माण पूरा हो जाए। मेडिकल कॉलेज परिसर में 24.64 करोड़ रुपये से ट्रॉमा सेंटर का निर्माण हो रहा है। 50 बेड का यह ट्रॉमा सेंटर बन जाने के बाद संचालित भी हुआ, तो लोगों के लिए अनमोल तोहफा होगा।
बातें हैं बातों का क्या...कुछ न करा पाए
क्या सुखवारा की याद है। वही सुखवारा जो छत्तीसगढ़ की रहने वाली थीं और मल्लावां के पास एक ईंट भट्ठे पर काम करती थीं। एक नवंबर की सुबह परिजन उन्हें लेकर मेडिकल कालेज पहुंचे थे। हालत गंभीर थी और वेंटिलेटर की जरूरत बताई गई। वेंटिलेटर खराब थे, तो उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया गया। 110 किलोमीटर दूर लखनऊ में कई जगह भटकने के बाद उन्हें वेंटिलेटर मिला था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वेंटिलेटर न मिलने के कारण सुखवारा की मौत हो गई थी। प्राचार्य डॉ. जेबी गोगोई ने भरोसा दिलाया था कि कम से कम दो वेंटिलेटर काम लायक बना दिए जाएंगे। माह नहीं अब साल बदलने को भी आ गया, लेकिन वेंटिलेटर नहीं बन पाए। डाक्टर गोगोई का दावा अब भी वही है कि प्रयास कर रहे हैं।
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मेडिकल कॉलेज का संचालन तो जनपद में हो रहा है, लेकिन स्वास्थ्य सेवाएं बीमार हैं। जनपद की आबादी लगभग 50 लाख है। मेडिकल कॉलेज बनने पर बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं की उम्मीद जगी थी, लेकिन फिलहाल निराशा है। आलम यह है कि जनपद के मेडिकल कॉलेज में एक भी ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं है। मेडिकल कॉलेज ही क्यों, मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अधीन आने वाले अस्पतालों में भी ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती नहीं है। मतलब यह कि ह्रदय रोगियों को प्राथमिक उपचार के बाद रेफर की डोज दे दी जाती है।
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इससे इतर वेंटिलेटर भी मेडिकल कॉलेज से लेकर अस्पतालों तक में मरीजों को सांस नहीं दे पाए। मेडिकल कॉलेज में 69 वेंटिलेटर हैं, लेकिन इन वेंटिलेटरों को खुद ही सांसों की दरकार है। ह्रदय रोग विशेषज्ञ की तैनाती और वेंटिलेटरों का इस्तेमाल शुरू कराने को लेकर विभागीय जिम्मेदारों ने दावे भरपूर किए, लेकिन जमीन पर इसका कोई असर नजर नहीं आया।
सीसीयू, नर्सिंग कॉलेज के भवन नए साल में मिलने की उम्मीद
मेडिकल काॅलेज के गौराडांडा परिसर में नर्सिंग कॉलेज निर्माणाधीन है। 9.61 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण हो रहा है। नए साल में निर्माण कार्य पूरा होने की उम्मीद मजबूत इसलिए है कि यह कार्य पूरा करने का समय ही 31 मार्च 2026 है। यह बात और है कि यह काम पूर्व में अगस्त 2025 में ही पूरा होना था। गौरा डांडा परिसर में ही क्रिटिकल केयर यूनिट का भी निर्माण हो रहा है। 34.92 करोड़ रुपये से बनाए जा रहे इस भवन का कार्य 28 फरवरी 2026 तक पूरा होना है। मुमकिन है कि तय समय में भवनाें के निर्माण पूरे हो जाएं, लेकिन इनका संचालन भी बड़ी चुनौती है।
पुराना ट्रॉमा सेंटर चला नहीं पाए, नए का हो रहा निर्माण
गंभीर मरीजों को राहत देने के लिए लखनऊ रोड पर नया गांव में 20 बेड का ट्रॉमा सेंटर बनवाया गया था। वर्ष 2016 में 2.61 करोड़ रुपये से बने भवन में इस साल भी ट्रॉमा सेंटर संचालित करने की कवायद हुई। यह कवायद फोटो शेसन से शुरू हुई और यहीं पर ही खत्म हो गई। हाल यह हुआ कि दिन में डाक्टर नहीं और रात में डाक्टर की तैनाती। जिनकी तैनाती उनके भी सिर्फ हस्ताक्षर ही होते हैं। नए साल में उम्मीद यह है कि नए ट्रॉमा सेंटर के भवन का निर्माण पूरा हो जाए। मेडिकल कॉलेज परिसर में 24.64 करोड़ रुपये से ट्रॉमा सेंटर का निर्माण हो रहा है। 50 बेड का यह ट्रॉमा सेंटर बन जाने के बाद संचालित भी हुआ, तो लोगों के लिए अनमोल तोहफा होगा।
बातें हैं बातों का क्या...कुछ न करा पाए
क्या सुखवारा की याद है। वही सुखवारा जो छत्तीसगढ़ की रहने वाली थीं और मल्लावां के पास एक ईंट भट्ठे पर काम करती थीं। एक नवंबर की सुबह परिजन उन्हें लेकर मेडिकल कालेज पहुंचे थे। हालत गंभीर थी और वेंटिलेटर की जरूरत बताई गई। वेंटिलेटर खराब थे, तो उन्हें लखनऊ रेफर कर दिया गया। 110 किलोमीटर दूर लखनऊ में कई जगह भटकने के बाद उन्हें वेंटिलेटर मिला था, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वेंटिलेटर न मिलने के कारण सुखवारा की मौत हो गई थी। प्राचार्य डॉ. जेबी गोगोई ने भरोसा दिलाया था कि कम से कम दो वेंटिलेटर काम लायक बना दिए जाएंगे। माह नहीं अब साल बदलने को भी आ गया, लेकिन वेंटिलेटर नहीं बन पाए। डाक्टर गोगोई का दावा अब भी वही है कि प्रयास कर रहे हैं।

फोटो-04- मेडिकल कॉलेज में स्थित इमरजेंसी वार्ड। संवाद
