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UP: पीलीभीत से 45 मिनट में विवेचना कर वापस आ गईं विवेचक, आरोप पत्र खारिज…तीनों आरोपी बरी, पढ़ें पूरा मामला

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, हरदोई Published by: हिमांशु अवस्थी Updated Fri, 12 Dec 2025 06:05 AM IST
सार

Hardoi News: हरदोई पुलिस द्वारा दहेज उत्पीड़न के मामले में 45 मिनट में पीलीभीत जाकर विवेचना करने और चार्जशीट दाखिल करने की असंभव प्रक्रिया पर न्यायालय ने सवाल उठाते हुए आरोप पत्र खारिज कर दिया। साथ ही, पति, ससुर व सास सहित तीनों आरोपियों को दोषमुक्त कर दिया।

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Hardoi investigating officer returned from Pilibhit in just 45 min charge sheet dismissed accused acquitted
हरदोई पुलिस का कारनामा - फोटो : amar ujala
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विस्तार
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पुलिस हरदोई से पीलीभीत गई। दहेज उत्पीड़न के आरोपियों और उनके पड़ोसियों के बयान लिए। नजरीनक्शा बनाया और वापस हरदोई आ गई। इस पूरी प्रक्रिया में विवेचक को महज 45 मिनट लगे। आरोप तय होने के लिए सुनवाई के दौरान सिविल जज जूनियर डिवीजन (एफटीसी महिला अपराध) लवलेश कुमार ने आरोप पत्र खारिज कर दहेज उत्पीड़न के तीन आरोपियों को आरोप मुक्त कर दिया।

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शहर कोतवाली क्षेत्र के मंगलीपुरवा निवासी महेश गुप्ता ने 11 सितंबर 2020 को महिला थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी। इसमें बताया था कि बेटी निशा गुप्ता की शादी पीलीभीत के चौक बाजार थानाक्षेत्र के मोहल्ला मलिक अहमद निवासी लक्ष्य अग्रवाल से की थी। आरोप था कि शादी में कम दहेज लाने का उलाहना देकर पति लक्ष्य अग्रवाल, ससुर विपिन कुमार अग्रवाल, सास पुष्पा अग्रवाल ने निशा का उत्पीड़न किया।

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मामले में आरोपियों ने जमानत कराई थी
पांच लाख रुपये और सोने की चेन मांगी। मांग पूरी न होने पर निशा को घर से निकाल देने का आरोप लगाया गया था। घटना तीन मार्च 2020 की बताई गई थी। महिला थाने की तत्कालीन थानाध्यक्ष सुधा सिंह इस मामले में विवेचक थीं। सात माह की विवेचना के बाद आरोप पत्र न्यायालय में पेश किया गया। आरोपियों ने मामले में जमानत कराई थी। इसके बाद 13 अक्तूबर 2025 को आरोप तय करने के लिए तारीख लगी थी।

10:45 बजे विवेचना शुरू की और 11:30 बजे खत्म कर दी
इस पर आरोपियों ने अधिवक्ता के माध्यम से डिस्चार्ज (उन्मोचित) करने का प्रार्थना पत्र दिया था। इस पर आरोपियों ने कहा था कि पूरी जांच आधारहीन है। विवेचक ने थाने में ही बैठकर आरोप पत्र दाखिल किया है। प्रार्थना पत्र और आपत्तियों के अवलोकन के बाद सिविल जज ने आरोप पत्र में बड़ी खामियां पकड़ीं। इनमें सबसे अहम थी कि केस डायरी के मुताबिक विवेचक ने रात में 10:45 बजे विवेचना शुरू की और 11:30 बजे खत्म कर दी।

दबिश भी दी और वापस हरदोई भी आ गईं
इस दौरान विवेचक ने घटनास्थल (पीलीभीत) का निरीक्षण किया। वहां आरोपियों के पड़ोसियों के बयान लिए। नजरीनक्शा बनाया। दबिश भी दी और इसके बाद वापस हरदोई भी आ गईं। सिविल जज ने अपने आदेश में स्पष्ट लिखा कि यह सभी कार्रवाइयां 45 मिनट में संभव नहीं हैं। इसी आधार पर लक्ष्य अग्रवाल, विपिन कुमार अग्रवाल और पुष्पा अग्रवाल को आरोप तय होने से पहले ही आरोपों से बरी कर दिया।

असत्य, अविश्वसनीय, संदेहास्पद
सिविल जज लवलेश कुमार ने विवेचना को लेकर बेहद कठोर टिप्पणी अपने फैसले में की। फैसले में लिखा कि समयसारिणी असत्य है। अविश्वसनीय है और संदेहास्पद प्रतीत होती है इससे संपूर्ण विवेचना की प्रमाणिकता प्रभावित होती है। अपने फैसले में सिविल जज ने यह भी लिखा कि विवेचना की सुचिता और अभियोजन की विश्वसनीयता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

इसलिए फैसले में लिखनी पड़ीं कठोर टिप्पणियां

  • पीड़िता का नाम निशा गुप्ता की जगह अंजू पाल लिख दिया गया।
  • पीड़ित पक्ष के सभी गवाहों के बयान शब्दश: एक जैसे हैं। सोने की पांच तोले की मोटी जंजीर की जगह सोने की पांच तोने की मोटी जंजीर लिख गया। फिर सभी के बयान में पांच तोने ही आया है। मतलब यह कि इसे कॉपी पेस्ट किया गया।

कुछ प्रमुख तथ्य

  • तीन मार्च 2020 को घटना होने का दावा।
  • 11 सितंबर 2020 को प्राथमिकी दर्ज।
  • 26 अप्रैल 2021 को न्यायालय में पहली पेशी।
  • 13 अक्तूबर 2025 को आरोप तय होने के लिए लगी पेशी।
  • 30 पेशियां हुईं पूरे मामले की सुनवाई में।
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