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संभव है 'अमर होने की ख्वाहिश', तमाम लोग कर चुके हैं ऐसा
शिखा पाण्डेय, अमर उजाला, कानपुर
Updated Mon, 20 Nov 2017 01:54 PM IST
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डेमो पिक
जिसने दुनिया में जन्म लिया है उसे एक न एक दिन मरना ही है। फिर भी अमर होने की ख्वाहिश हर किसी की है। आज के आधुनिक युग में मेडिकल साइंस ने मनुष्य की इस ख्वाहिश को काफी हद तक पूरा कर दिखाया है।
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देहदान संस्थान के संस्थापक मनोज सेंगर और उनकी पत्नी माध्वी सेंगर
यहां से शुरू हुई अमर करने की मुहिम
यूपी के कानपुर शहर में लोगों को अमर करने की मुहिम युग दधीचि देहदान संस्थान व जीएसवीएम कॉलेज से शुरू हुई। वर्ष 2003 में इस मुहिम को शुरू किया गया। युग दधीचि देहदान संस्थान के संस्थापक मनोज सेंगर ने लोगों को देहदान के प्रति जागरुक करना शुरू किया। बताया कि मृत्यु के बाद देहदान करने से न सिर्फ मृतक का शरीर सालों तक सुरक्षित रखा रहता है बल्कि मेडिकल स्टूडेंट्स के डिसेक्शन में भी इसका इस्तेमाल होता है। एक व्यक्ति के अंगदान से 7 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
यूपी के कानपुर शहर में लोगों को अमर करने की मुहिम युग दधीचि देहदान संस्थान व जीएसवीएम कॉलेज से शुरू हुई। वर्ष 2003 में इस मुहिम को शुरू किया गया। युग दधीचि देहदान संस्थान के संस्थापक मनोज सेंगर ने लोगों को देहदान के प्रति जागरुक करना शुरू किया। बताया कि मृत्यु के बाद देहदान करने से न सिर्फ मृतक का शरीर सालों तक सुरक्षित रखा रहता है बल्कि मेडिकल स्टूडेंट्स के डिसेक्शन में भी इसका इस्तेमाल होता है। एक व्यक्ति के अंगदान से 7 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
कैसे किया जाता है देहदान.... (आगे की स्लाइड में )
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देहदान के दौरान मौजूद मनोज सेंगर
नेचुरल डेथ पर ही देहदान संभव
जिन लोगों की नेचुरल डेथ होती है उन्हीं की देह का दान संभव है। एमबीबीएस स्टूडेंट्स इन प्रिजर्व्ड डेडबॉडीज का डिसेक्शन करते हैं। डेडबॉडी में कोई कट होगा तो प्रिजर्वेटिव इंजेक्ट करने पर सॉल्युशन बॉडी के बाहर आ जाएगा। इसलिए डेडबॉडी की पूरी तरह जांच करने के बाद ही उसे एक्सेप्ट किया जाता है।
आखिर क्या है इसकी प्रक्रिया.... (आगे की स्लाइड में )
जिन लोगों की नेचुरल डेथ होती है उन्हीं की देह का दान संभव है। एमबीबीएस स्टूडेंट्स इन प्रिजर्व्ड डेडबॉडीज का डिसेक्शन करते हैं। डेडबॉडी में कोई कट होगा तो प्रिजर्वेटिव इंजेक्ट करने पर सॉल्युशन बॉडी के बाहर आ जाएगा। इसलिए डेडबॉडी की पूरी तरह जांच करने के बाद ही उसे एक्सेप्ट किया जाता है।
आखिर क्या है इसकी प्रक्रिया.... (आगे की स्लाइड में )
देहदान
देह समर्पण संस्कार की प्रक्रिया
देहदान से पहले देह समर्पण संस्कार प्रक्रिया पूरी की जाती है। जाति-धर्म के हिसाब से इसकी प्रक्रिया अलग-अलग है। सबसे पहले परिवार के सदस्य कपूर का जलता दीपक हाथ में लेकर अग्नि मंत्र का उच्चारण करते हुए 7 फेरे लेते हैं। इसके बाद हाथों में फू ल लेकर बारी-बारी से मृत शरीर पर चढ़ाते हैं। इस समय पुष्पांजलि मंत्र भी पढ़ा जाता है। अंत में मृतक आत्मा की शांति के लिए वैदिक शांति पाठ किया जाता है।
देहदान से पहले देह समर्पण संस्कार प्रक्रिया पूरी की जाती है। जाति-धर्म के हिसाब से इसकी प्रक्रिया अलग-अलग है। सबसे पहले परिवार के सदस्य कपूर का जलता दीपक हाथ में लेकर अग्नि मंत्र का उच्चारण करते हुए 7 फेरे लेते हैं। इसके बाद हाथों में फू ल लेकर बारी-बारी से मृत शरीर पर चढ़ाते हैं। इस समय पुष्पांजलि मंत्र भी पढ़ा जाता है। अंत में मृतक आत्मा की शांति के लिए वैदिक शांति पाठ किया जाता है।
ये भी जानें (आगे की स्लाइड में )...
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देहदान
यह जानना है जरूरी
- देहदान मृत्यु के 12 से 14 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए।
- अब तक 2500 से अधिक लोग देहदान का संकल्प ले चुके हैं।
- 188 मृत देह विभिन्न मेडिकल कॉलेज में दान की जा चुकी हैं।
- देहदान का संकल्प लेने वालों में 40 प्रतिशत महिलाएं हैं।
- शास्त्रों में महर्षि दधीचि द्वारा असुरों के विनाश हेतु अपनी अस्थियां दान की गयीं थीं, इसे प्रथम देहदान माना गया है।
- मृत देह को उचित तरीके से 3 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- यह अभियान कानपुर से प्रारम्भ होकर इलाहाबाद, लखनऊ, आगरा, मेरठ, वाराणसी, इटावा आदि जगहों पर जोर पकड़ रहा है।
- देहदान मृत्यु के 12 से 14 घंटे के भीतर किया जाना चाहिए।
- अब तक 2500 से अधिक लोग देहदान का संकल्प ले चुके हैं।
- 188 मृत देह विभिन्न मेडिकल कॉलेज में दान की जा चुकी हैं।
- देहदान का संकल्प लेने वालों में 40 प्रतिशत महिलाएं हैं।
- शास्त्रों में महर्षि दधीचि द्वारा असुरों के विनाश हेतु अपनी अस्थियां दान की गयीं थीं, इसे प्रथम देहदान माना गया है।
- मृत देह को उचित तरीके से 3 वर्ष तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
- यह अभियान कानपुर से प्रारम्भ होकर इलाहाबाद, लखनऊ, आगरा, मेरठ, वाराणसी, इटावा आदि जगहों पर जोर पकड़ रहा है।