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Kanpur: 75 फीसदी अनुदान फिर भी एडेड स्कूलों की दशा सुधारने से इन्कार

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, कानपुर Published by: शिखा पांडेय Updated Mon, 24 Nov 2025 11:45 AM IST
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Kanpur: Despite receiving 75 Percent funding, aided schools refuse to improve their conditions
स्कूल की जर्जर हालत - फोटो : अमर उजाला
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जिले के कई एडेड विद्यालयों की स्थिति काफी खराब है। कहीं छत से प्लास्टर गिर रहा है तो कहीं दीवारों में गहरी दरारें हैं। यहां पर असुरक्षित रूप से बच्चे पढ़ने के लिए मजबूर हैं। इसके बाद भी विद्यालय प्रबंधन संस्थान में मरम्मत कार्य तक नहीं कराना चाहता है। यह तब है जब सरकार ने पिछले वर्ष प्रोजेक्ट अलंकार के तहत 300 से अधिक छात्र संख्या वाले एडेड विद्यालयों की मरम्मत के लिए 75 प्रतिशत अनुदान देने की योजना शुरू की थी।
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इसमें शर्त यह थी कि विद्यालय प्रबंधन को मरम्मत में होने वाले खर्च का 25 प्रतिशत धन स्वयं देना होगा। एक वर्ष बीत जाने के बाद भी किसी भी विद्यालय ने योजना में आवेदन नहीं किया है। प्रबंधकों का कहना है कि उनके पास 25 प्रतिशत अंशदान देने की क्षमता नहीं है। वहीं जानकारों का कहना है कि इसके पीछे भी बड़ा खेल है। कई शिक्षक नेताओं और प्रधानाचार्यों के अनुसार इन एडेड स्कूलों की जमीनें इतनी महंगी हैं कि प्रबंध खुद विद्यालय को समाप्त करवाना चाहते हैं।
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केस-1 : 66 वर्ष पुरानी इमारत, झड़ता प्लास्टर
1959 में स्थापित कौशल्या देवी बालिका इंटर कॉलेज किदवईनगर में कभी 20 कमरे बने थे। वर्तमान में इनमें से केवल आठ कमरे पढ़ाई के योग्य हैं। भवन का प्लास्टर झड़ चुका है, खिड़कियां–दरवाजे टूटे पड़े हैं और हाल ही में एक कमरा ढह गया था। विद्यालय में 500 छात्राएं पंजीकृत हैं। प्रधानाचार्या डॉ. स्मृति तिवारी बताती हैं कि उन्होंने अपने निजी खर्च से चार कमरों की मरम्मत कराई है। वहीं प्रबंधक अरुण कुमार बाजपेयी का कहना है कि प्रबंधन समिति के पास मरम्मत के लिए धन नहीं है और सरकार यदि 75 नहीं बल्कि 100 प्रतिशत अनुदान दे तो ही पुराने विद्यालय सुधर पाएंगे।

केस-2 : 36 कमरों से 10 की हालत खराब, पढ़ते 1800 बच्चे
मंधना स्थित भगवत प्रसाद महात्मा गांधी (बीपीएमजी) इंटर कॉलेज में करीब 1800 छात्र पढ़ते हैं। 36 कमरों में से 10 कमरों की हालत बहुत खराब है। विद्यालय का शौचालय टूटा–फूटा है और वर्षों पुराना सोलर सिस्टम भी बंद है। प्रधानाचार्य अंजू कनौजिया का कहना है कि कुछ कमरों का रंग–रोगन छात्रों की फीस और स्वयं के प्रयासों से कराया गया है। प्रबंधक कृष्ण दत्त द्विवेदी कहते हैं कि उनके पूर्वजों के पास क्षमता थी लेकिन आज आर्थिक स्थिति वैसी नहीं है। जमीन दे दी है अब सरकार ही समाधान निकाले तो हमें खुशी होगी।

केस-3 : पुरानी बिल्डिंग देख लौट जाते अभिभावक
1951 में मान्यता प्राप्त नरवल स्थित भास्करानंद इंटर कॉलेज की हालत भी बेहद खराब है। 25 कमरों में से 14 में कक्षा छह से 12 तक की पढ़ाई होती है। प्लास्टर गिर चुका है और कई छतें कमजोर हैं। 388 विद्यार्थियों और 24 शिक्षकों वाले इस विद्यालय में शौचालय भी प्रधानाचार्य लाल सिंह ने अपनी ओर से बनवाया। उनका कहना है कि अभिभावक जर्जर भवन देखकर लौट जाते हैं। प्रबंधक विवेक शुक्ला का कहना है कि यदि पीएमश्री और जवाहर मॉडल की तरह सरकार एडेड स्कूलों में भी 100 प्रतिशत राशि लगाए तो इन संस्थानों की दशा बदल सकती है।

मंडल के सभी विद्यालयों को सुरक्षित और मानकयुक्त शिक्षा देना प्राथमिकता है। प्रबंधक 25 प्रतिशत अंशदान पूरा करें विभाग 75 प्रतिशत अनुदान जारी कर विद्यालयों का कायाकल्प करेगा। - राजेश कुमार वर्मा, संयुक्त शिक्षा निदेशक माध्यमिक, कानपुर मंडल

प्रोजेक्ट अलंकार के तहत जर्जर एडेड विद्यालयों को संज्ञान में लिया जा चुका है। जिन प्रबंधकों के पास 25 प्रतिशत व्यवस्था नहीं है वे पूर्व छात्रों और क्षेत्रीय जनप्रतिनिधियों से सहयोग लें ताकि बच्चों की शिक्षा और सुरक्षा प्रभावित न हो। -संतोष कुमार राय जिला विद्यालय निरीक्षक

महंगी जमीन के कारण भी प्रबंधक कर रहे इन्कार
शहर के कुल 113 एडेड विद्यालयों में से कई स्कूल इसलिए जर्जर हालत में हैं क्योंकि जमीन महंगी होने के कारण कुछ प्रबंधक 25 फीसदी अंशदान लगाने के बजाय विद्यालय बंद कर आगे व्यवसाय करने की सोच रहे हैं। दूसरी ओर अनेक प्रबंधकों के पास वास्तव में इतना पैसा है ही नहीं कि वह योजना के तहत अपना हिस्सा जमा कर सकें। इससे भवन सुधार की प्रक्रिया आगे बढ़ ही नहीं पा रही है। - राकेश तिवारी, नेता, शिक्षक संघ
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