बात सेहत की: हैप्पी हार्मोंस की फिजूलखर्ची से बढ़ रहा अवसाद, खुशहाल शहरों में देश में नंबर-वन है कानपुर
Kanpur News: हैप्पी हार्मोन डोपामीन बर्स्ट होने से न्यूरांस सामान्य दर से काफी अधिक फ्रीक्वेंसी पर चले जाते हैं। मस्तिष्क अधिक गतिशील हो जाता है। व्यक्ति को बहुत अच्छा और खुशी महसूस होती है। डोपामीन के रुकते ही यह स्थिति खत्म हो जाती है। खुशी का ख्याल भी चला जाता है।
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केस एक: स्वरूपनगर की एक महिला अपने 18 वर्षीय पुत्र को डॉ. धनंजय चौधरी की ओपीडी में लाई। उसने बताया कि मोबाइल देखने पर वह खूब खुश रहता है। देर रात फोन लेने पर बहुत आक्रामक हो जाता है। इसके अलावा जान देने की धमकी देता है।
केस दो: ओपीडी में आई घाटमपुर की 23 वर्षीय युवती ने बताया कि रील, इंटरनेट साइट देखते वक्त बहुत खुशी महसूस होती है। इसे बंद करने पर एकदम से उदासी आ जाती है। दिल बैठने लगता है। लगता दुनिया में कुछ नहीं। जान देने का मन करता है।
वर्ष 2023 में विश्व के खुशहाल शहरों में 11वां और देश में पहला स्थान पाने वाले शहर कानपुर में हैप्पी हार्मोन की फिजूलखर्ची हो रही है। इससे अवसाद बढ़ रहा है। मस्तिष्क में डोपामीन हार्मोन के अत्यधिक रिसाव के बाद उदासी घेरने लगती है। इससे अवसाद आता है और फिर आत्महत्या की प्रवृत्ति विकसित होने लगती है। शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में अवसाद के रोगी बढ़ रहे हैं।
जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग और राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम में ऐसे रोगी आ रहे हैं जिनकी हिस्ट्री के अध्ययन से यह खुलासा हुआ है। इनमें 15 साल से लेकर 50 तक के लोग शामिल हैं। मनोरोग विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर डॉ. धनंजय चौधरी का कहना है कि इंटरनेट सिंड्रोम के लतियों में विभिन्न साइट, रील आदि देखने से डोपामीन का अत्यधिक रिसाव होने लगता है।
मति भ्रांति की स्थिति हो जाती है पैदा
उन्होंने बताया कि डोपामीन के अधिक रिसाव से खुशी महसूस होती है। इसका रिसाव रुकने पर उदासी आने लगती है। इसी से मोबाइल छीनने पर व्यक्ति आक्रामक प्रतिक्रिया व्यक्त करता है। अनिद्रा और बहुत सी दिक्कतें हो जाती हैं। इसी में आत्महत्या के विचार आने लगते हैं और मति भ्रांति की स्थिति पैदा हो जाती है। ऐसे रोगियों में महिला और पुरुष दोनों होते हैं। इसके अलावा किशोरों और युवाओं में स्थिति अधिक पनप रही है।
ग्रामीण इलाकों में महिलाओं पर असर अधिक
दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के आंकड़ों से भी यही स्थिति सामने आ रही है। मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता संदीप कुमार सिंह का कहना है कि रोगियों की हिस्ट्री से खुलासा हुआ कि आभासी दुनिया की चकाचौंध देखकर हैप्पी हार्मोन रिसने लगता है। मोबाइल बंद करने पर एकदम से उदासी की स्थिति आती है। इसी मानसिक द्वंद्व में आत्महत्या की प्रवृत्ति पैदा होने लगती है। ग्रामीण इलाकों में महिलाओं पर असर अधिक है।
ऐसे होता है बदलाव
हैप्पी हार्मोन डोपामीन बर्स्ट होने से न्यूरांस सामान्य दर से काफी अधिक फ्रीक्वेंसी पर चले जाते हैं। मस्तिष्क अधिक गतिशील हो जाता है। व्यक्ति को बहुत अच्छा और खुशी महसूस होती है। डोपामीन के रुकते ही यह स्थिति खत्म हो जाती है। खुशी का ख्याल भी चला जाता है। व्यक्ति का मस्तिष्क फिर से डोपामीन मांगता है। डोपामीन न मिलने पर उदासी और बोरियत आती है। लंबी अवधि तक डोपामीन न मिलने पर अवसाद की स्थिति होती है।